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मुसलमानों द्वारा मनाए जाने वाले बेहद अहम पर्वों में से एक ईद-उल-अज़हा भी है। यह पर्व देशभर में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु मस्जिदों में जाकर नमाज़ अता करते हैं। उसके बाद एक दूसरे को गले लगकर ईद मुबारक कहते हैं। वे एक दूसरे को मिठाइयां व उपहार भी देते हैं। यह बकरीद भी कहलाती है क्योंकि इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। ऐसी कथा प्रचलित है कि अल्लाह ने एक बार अपने वफ़ादार पैगंबर इब्राहिम को आदेश दिया कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दें। उन्होंने अल्लाह का आदेश मानकर अपने बेटे को वेदी पर लिटा दिया। उन्होंने जब आंखें खोलीं तब देखा कि वेदी पर तो बकरी का बच्चा लेटा हुआ है और उनका बेटा उनके सामने सही-सलामत खड़ा है। इस्लाम की मान्यता के अनुसार, तभी से बकरे की कुर्बानी देने की प्रथा आरंभ हो गई। ऐसा कहा गया है कि तीन दिवसीय इस पर्व के दौरान हर एक मुसलमान को 400 ग्राम सोने या इससे अधिक की कीमत का बकरा कुर्बान करना होगा। कुर्बान किए गए बकरे का मांस निर्धन लोगों में बांटा जाता है।