बांस और बेंत के उत्पाद

यहां के अधिकांश आदिवासी अपनी टोपियां स्वयं बनाते हैं, जो सुपरिष्कृत रूप से सजी हुई होती हैं जिन्हें पक्षियों की चोंच और पंखों से सजाया जाता है और इसमें बालों के गुच्छे लाल रंग से रंग कर लगाए जाते हैं। इसके अलावा यहां टोकरी, बैग, और सामान रखने के डिब्बे जैसे कई उत्पाद बनाए जाते हैं। बेंत और बांस के उत्पाद बनाने का कौशल विशेष तौर से पुरुषों तक ही सीमित रहता है। इनसे रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें, जैसे धान, ईंधन, पानी को रखने और ढ़ोने के लिए टोकरियां, और देशी शराब बनाने के लिए पात्र बनाए जाते हैं। बांस की महीन पट्टियों और घास का इस्तेमाल करके और भी कई चीजें बनाई जाती है, जैसे कई प्रकार की चावल की प्लेट्स, तीर और धनुष, सर की टोपी, चटाई, कंधे पर टांगे जाने वाले झोले, आभूषण और गले का हार इत्यादि। नोक्टे और वेंचो जनजाति के लोग अधिकतर रंगीन बेंत वाली पट्टी का इस्तेमाल अपनी टोपी, कमरबंध, सिर की पट्टी और बाजू बंध आदि बनाने के लिए करते हैं।

 बांस और बेंत के उत्पाद

बैप तेंग कांग जलप्रपात

यह अद्भुत दूधिया बैप तेंग कांग जलप्रपात, जिसे नुरानंग जलप्रपात भी कहा जाता है, यहां का एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है, जो तवांग से 80 किमी की दूरी पर स्थित है। यह जलप्रपात, 100 फीट की ऊंचाई से, एक सफेद चादर के रूप में गिरता है, और अरुणाचल प्रदेश के हरे भरे पहाड़ों के बीच अपना रास्ता बनाते हुए बहता है। यह एक अद्भुत पिकनिक स्पॉट विश्व के छत पर है, और इस जगह की ऊंचाई आपको बादलों के बीच चलने का अहसास दिलाती है। इस जलप्रपात के आस-पास के क्षेत्र में हरियाली ही हरियाली है, जहां कुछ घंटे पैदल घूमकर इस क्षेत्र के सोंदर्य का लुफ्त उठाया जा सकता है। कुछ दूर से आती पानी का घनघोर गर्जन और आसपास की हल्की-हल्की धुंध का एक अपना ही मज़ा है। दिन के समय यात्रा कराने वाली बसें और टैक्सी भी शहर में उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा बहुत ही आसानी से इन झरनों तक पहुंचा जा सकता है। यहां कुछ फूड स्टाल भी हैं, जहां गर्म चाय के साथ-साथ स्नैक्स भी आसानी से मिल जाते हैं। हिमालय के समृद्ध और खनिज से भरे पानी को चिकित्सीय माना जाता है, और आप झरने द्वारा बने छोटे छोटे तालाबों में गर्मियों के महीनों में तैराकी भी कर सकते हैं।

 बैप तेंग कांग जलप्रपात

बुमला दर्रा

बुमला दर्रा, 15,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, और अपनी तीखी ऊंचाई कारण यहां लगभग सालो भर बर्फबारी होती रहती है। यहां से तिब्बती पठारों की सुंदरता देखते ही बनती है। इस दर्रा की ओर जाने वाले मार्ग आगंतुकों को कई तंद्रालु बस्तियों और प्राकृतिक झीलों के समीप से ले जाते है, जो आपकी यात्रा को यादगार बना देते हैं। भारतीय सेना बुमला दर्रा का रखरखाव करती है, और यह दर्रा उन लोगों को जरूर देखना चाहिए, जो यह देखना चाहते हैं कि भारतीय सेना कितनी विषम जलवायु में हमारी सीमा की सुरक्षा करती है। यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को अपने साथियों को कहने के लिए कई कहानियों होंगी कि भारतीय सेना ने उनका कैसे स्वागत किया, या क्या जलपान कराया और साथ ही उन्हें यह भी बताया कि ऊंचे इलाकों और तीव्र ठंढ़े जलवायु में कैसे रहा जाता है। बुमला दर्रा, भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच, आधिकारिक तौर पर सहमत बीपीएम (बॉर्डर पर्सनेल मीटिंग) के चार बिंदुओं में से एक है। निर्दिष्ट तिथियों पर, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी दोनों पक्षों द्वारा आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें लोग बड़े चाव से देखते हैं। एक टेलिस्कोप और कुछ दूरबीन भी भारतीय सेना की चेक पोस्ट के पास रखी रहती है। यह टेलिस्कोप और दूरबीन उन पर्यटकों के लिए होती है, जो यह देखना चाहते हैं कि सीमा के उस पार क्या है। यहां मौजूद सेना कैंटीन में गर्म चाय, पानी और कुछ गर्म मिठाई मिल जाती है जो उच्च ऊचाई (हाई ऑल्टिट्यूड) पर पर्यटकों की भूख और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा करती है। दर्रा पर जाने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जिसे तवांग में उपायुक्त कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है।

 बुमला दर्रा

दिरांग

दिरांग गांव अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी भाग में एक ऐसा स्थान है, जहां रास्ते में पर्यटक रात भर ठहर सकते हैं। यह गांव असम के जोरहाट और तवांग के ठीक बीचोबीच, नैसर्गिक कमेंग नदी के तट पर स्थित है। यह अक्षुण स्वार्गिक गांव का मौसम, अधिक ऊंचाई न होने के कारण, सुहावना रहता है। यह छोटा सा गांव, इस क्षेेत्र की सभी विशिष्ट गुणों को संजोये हुए है, चाहे वह परिदृश्य हो, संस्कृति या भोजन। यहां की यात्रा से पर्यटक, अरुणाचल प्रदेश की सभी बेहतरीन चीजों से परिचित हो सकते हैं। यहां के सबसे पुराने मठों में से एक है, खस्तुंग गोम्पा मठ, जो गांव से थोड़ी चढ़ाई पर स्थित है। गांव की पहाड़ी के नीचे, हिमालय झंडों से सज्जित एक फुट ब्रिज के माध्यम से, तेज तरंग वाली दुरंग नदी तक पहुँचा जा सकता है। यहां, भेड़-बकरियों को चरते हुए देखा जा सकता है, और कभी-कभी पर्यटक यह पायेंगे कि गांव के स्थानीय लोगों उन्हें अपने घरों में चाय के लिये आमंत्रित कर रहें हैं। यह गांव अपनी मेजबानी के लिये प्रसिद्ध है। गांव में एक बाज़ार है, जहां से आप स्थानीय हस्तशिल्प और कलाकृतियों के उम्दा स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं। इस पहाड़ी की चोटी पर दिरांग जॉन्ग किला स्थित है, जो भूटानी पाषाण वास्तुकला की शैली में निर्मित है। वहां तक चट्टानो से कटे, पत्थर की बनी लम्बी सीड़ियों से चढ़ कर पहुंचा जा सकता है। इस किले का डिजाइन कुछ स्थानीय तकनीकियों का इस्तेमाल करके किया गया है, ताकि इसके निवासियों को कड़ाके की सर्दी से बचाया जा सके। इस गांव का एक और रोचक आकर्षण, गर्म पानी का एक सोता है, जिसे यहां के स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं।

 दिरांग

गोरीचेन चोटी

समुद्र तल से 21,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित, अरुणाचल प्रदेश की गोरीचेन चोटी सबसे ऊंची आरोह्य चोटी है। अपनी अधिक ऊंचाई के कारण, यह सालो भर बर्फ से ढ़की रहती है, और यही कारण है कि यह कई अनुभवी पर्वतारोहियों और एडवेंचर पसंद ट्रेकर को अपनी ओर आकर्षित करती है। मुख्य शहर से 164 किमी की दूरी पर स्थित, इस चोटी को स्थानीय नाम सा-न्गा-फु से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है 'देव का राज्य'। इस चोटी का, बोमडिला और तवांग के बीच की सड़क से, सबसे स्पष्ट दृश्य देखने को मिलता है। मोनपा जनजाति के लोग इस चोटी की पूजा करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है और यह उन्हें सभी अमंगलों से सुरक्षित रखती है। स्थानीय लोग इसे अक्सर विशाल सफेद हाथी कहते हैं, क्यों कि इस पर आच्छादित सफेद बर्फ इसे इस क्षेत्र की सबसे विशिष्ट और सहज ही पहचाने जाने वाली चोटियों में से एक बनाती है। इसका दृश्य मंत्र मुग्ध करने वाला है, क्योंकि जहां नीचे की तरफ घाटियों के हरे-भरे घास के मैदान और ताजे जंगल के कई टुकड़े दिखाई देते हैं, वहीं उससे उपर की ओर उभरती चमकदार सफेद बर्फ से ढकी चोटियां हैं जो सूर्य की किरणों से जगमगाती रहती हैं।

 गोरीचेन चोटी

सेला दर्रा

सेला दर्रा बहुत ही ऊंचाई वाला एक पर्वतीय दर्रा है, जो तवांग का प्रवेश द्वार है। यह तवांग और पश्चिमी कामेंग जिले को जोड़ने का एकमात्र और अत्यधिक ही महत्वपूर्ण मार्ग है। यह दर्रा समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और तवांग शहर के केंद्र से लगभग 67 किमी दूरी पर है। दर्रे के ऊबड़-खाबड़ और बीहड़ इलाके में शायद ही कोई वनस्पति देखने को मिलती है। साल के ज्यादातर समय यहां बर्फ जमी रहती है, पर यह भव्य हिमालय का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। यहां ढलानों पर मौजूद छिटपुट हरियाली में कुछ याकों को चरते हुए देखा जा सकता है। कुछ लामाओं को, इस क्षेत्र के आसपास के गांवों और मठों से आते जाते भी देखा जा सकता है। दर्रे के आसपास के क्षेत्र में सौ से अधिक छोटी-बड़ी झीलें हैं, और दर्रे के सबसे ऊपर दर्शनीय सेला झील है जहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। अपनी ऊंचाई के कारण यह झील, साल के अधिकांश समय जमी रहती है। सेला झील यहां की निवासी जनजाति के लिए काफी पवित्र माना जाता है, साथ ही यह हिमालयी परिदृश्य का बहुत ही असाधारण दृश्य प्रस्तुत करता है जो इसे चारो से घेरे है। पर्वत शृखला की सफेद चोटियों के परिपेक्ष में सुंदर सेला दर्रा द्वार, राजसी अंदाज में शान से खड़ा दिखता हैं जिसे लाल, नीले, हरे और सुनहले बौद्ध रंगों से डिज़ाइन किया गया है। यहां का अन्य आकर्षण है, जसवंत गढ़ द्वार, जो उस मार्ग पर है जो जसवंत सिंह युद्ध स्मारक की ओर जाता है। यह स्मारक उस भारतीय सैनिक के नाम पर रक्खा गया है, जो चीनी सेना से लड़ते हुए यहां शहीद हुआ था।

सेला दर्रा