कपड़ा

तवांग और उसके आसपास के लोगों के वस्त्रों पर पाए जाने वाले रंग और डिज़ाइन, अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न जनजातियों और उनकी जीवन शैली के प्रतीक हैं, और उनमें विविधता उनकी जनजाति की भिन्नता के कारण पाई जाती है। कुछ खास प्रकार के कपड़े और आभूषणों का उपयोग. उस परिवार की सामाजिक स्थिति और उपलब्धियों को दर्शाता है। कपड़े पर मौजूद डिजाइन, ज्यादातर बस्ती के आसपास के क्षेत्रों के परिदृश्य, वनस्पतियों और जीवों की आकृतियों को दर्शाते हैं। यहां के कपड़ों का डिज़ाइन ज्यामितीय आकार के होते हैं, जो काफी जटिल होते हैं और उनका एक अपना सांकेतिक अर्थ होता है। दरी बनाना मोनपा जनजाति की विशेषता है, जिसमें वे ड्रैगन, पुष्प और ज्यामितीय शैली में बेहद सुंदर प्रतीतों की बुनाई करते हैं। हालांकि यह उत्पाद दैनिक जीवन में उपयोग के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन आज यह यहां की महिलाओं का प्रमुख व्यवसाय बन चुका है।

 कपड़ा

थंगका पेंटिंग

थंगका पेंटिंग, जिसे टंगका, थंका या टंका के नाम से भी जाना जाता है, इसे कपड़े पर किया जाता है। तिब्बती शब्द 'थंगका' का शाब्दिक अनुवाद है, लिखित संदेश। यह कला के रूप में, एक उच्च विकसित और महत्वपूर्ण माध्यम है, जिसके माध्यम से बौद्ध दर्शन को समझाया जा सकता है। थंगका पेंटिंग, ऐक्रेलिक पेंटिंग की तरह सपाट कैनवास पर नहीं बनाई जाती। वे स्क्रॉल-पेंटिंग की तरह ज्यादा होती हैं, जहां एक पिक्चर पैनल को एक कपड़े के ऊपर चित्रित किया जाता है, जिसे बाद में एक रेशम के बोर्डर/कवर पर लगाया गया है। आम तौर पर, थंगका बहुत लंबे समय तक चलता है, और अगर उसे नमी से दूर रखा जाए, तो उसकी चमक भी लंबे समय तक बरकरार रहती है। विषय वस्तु और डिजाइन की दृष्टि से कई तरह के थंगका होते हैं। पेंटिंग्स की विषय वस्तु, बुद्ध, बोधिसत्व, देवियां, क्रोधी जीव, मनुष्य, निर्जीव वस्तुएं (स्तूप), मठ की वस्तुएं, धार्मिक वस्तुएं, पशु, पौधे, फूल आदि हो सकते हैं।

 थंगका पेंटिंग

हथियार

हथियार, सदियों से इस राज्य की आदिवासी जीवन का अभिन्न अंग रहा है। इन्हें युद्ध के समय सुरक्षा के उपयोग के अलावा, रोजमर्रा के कार्यों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से अधिकतर हथियार स्थानीय रूप से बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ का चलन अब खत्म हो चुका है, और उनका स्थान अधिक आधुनिक और नये हथियारों ने ले ली है। अकास जनजाति तीर और कमान बनाने के लिए जानी जाती हैं, जिन्हें यहां की भाषा में क्रमशः त्केरी और मू कहा जाता है। इनका उपयोग बड़े पैमाने पर शिकार के दौरान किया जाता है, और उपयोगकर्ता की आवश्यकता के अनुसार ये भिन्न-भिन्न आकार के होते हैं। शिकार में उपयोग किए जाने वाले तीर आकार में बड़े होते हैं, और उनकी नोक पर लोहा और एकोनाइट ज़हर लगा रहता है। इन्हें बांस के खोल में रखा जाता है, जिसे थूओवू कहते है। वहीं आमतौर पर धनुष को कंधे पर लटकाया जाता है।

 हथियार

आभूषण

अरुणाचल प्रदेश राज्य में आभूषण बनाने के शिल्प का अभ्यास व्यापक रूप से किया जाता है। ज्यादातर ये आभूषण यहां की जनजातियों द्वारा डिजाइन किए जाते हैं, और उन्हें विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों और उत्पादों का उपयोग करके बनाया जाता है। यहां के स्त्री और पुरुष जो आभूषण पहनते हैं, वे बांस के पंख, जंगली बीज, कांच के मनके, बीटल के पंख इत्यादि चीजों से बनाए जाते हैं। वैसे तो यहां आभूषण बनाने में अनेक धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन आभूषणों में मुख्य रूप से चांदी और पीतल का इस्तेमाल अधिक होता है। आभूषणों में विविधता यहां की रोचक विशेषता है। यूं तो यहां की सभी जनजाति एक ही तरह का कच्चा माल आभूषण बनाने में इस्तेमाल करती हैं, लेकिन फिर भी उनके डिजाइन और शैली में काफी विभिन्नता होती हैं, और इसे बनाने का कौशल हर जनजाति का अपना एक अलग किस्म है। यदि आप यहां आने की सोच रहे हैं, तो यहां की बांस की चूड़ियां और कान में पहने जाने वाले आभूषण को खरीदना न भूलें। इन आभूषणों का डिजाइन यहां की अकास जनजाति द्वारा किया जाता है।

 आभूषण

बांस और बेंत के उत्पाद

यहां के अधिकांश आदिवासी अपनी टोपियां स्वयं बनाते हैं, जो सुपरिष्कृत रूप से सजी हुई होती हैं जिन्हें पक्षियों की चोंच और पंखों से सजाया जाता है और इसमें बालों के गुच्छे लाल रंग से रंग कर लगाए जाते हैं। इसके अलावा यहां टोकरी, बैग, और सामान रखने के डिब्बे जैसे कई उत्पाद बनाए जाते हैं। बेंत और बांस के उत्पाद बनाने का कौशल विशेष तौर से पुरुषों तक ही सीमित रहता है। इनसे रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें, जैसे धान, ईंधन, पानी को रखने और ढ़ोने के लिए टोकरियां, और देशी शराब बनाने के लिए पात्र बनाए जाते हैं। बांस की महीन पट्टियों और घास का इस्तेमाल करके और भी कई चीजें बनाई जाती है, जैसे कई प्रकार की चावल की प्लेट्स, तीर और धनुष, सर की टोपी, चटाई, कंधे पर टांगे जाने वाले झोले, आभूषण और गले का हार इत्यादि। नोक्टे और वेंचो जनजाति के लोग अधिकतर रंगीन बेंत वाली पट्टी का इस्तेमाल अपनी टोपी, कमरबंध, सिर की पट्टी और बाजू बंध आदि बनाने के लिए करते हैं।

 बांस और बेंत के उत्पाद

लकड़ी पर नक्काशी

चूंकि यह क्षेत्र हरे-भरे जंगलों से संपन्न है, इसलिए दैनिक उपयोग की विभिन्न वस्तुओं को बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियां यहां मिल जाती हैं। अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ लकड़ी से बनी चीजें की कला में बहुत निपुण हैं। लकड़ी की नक्काशी में लगे कारीगरों को त्रूक्पा (Trukpa) नाम से जाना जाता है। हाथ से बनाए नक्काशीदार फर्नीचरों में 'चो त्ज़े' लोकप्रिय फर्नीचर है, जो एक प्रकार की छोटी टेबल होती है, जिसमें एक तरफ से लोग बैठते हैं, और अन्य तीनों तरफ का हिस्सा लकड़ी के पैनलों से ढका होता है, जिन पर चमकीले रंगों से बने ड्रैगन, पक्षी या फूलों के नक्काशीदार आकृतियां चित्रित होती हैं। मोनपा लोग रोजमर्रा की जरुरतों के अनेक बर्तनें भी लकड़ी से बनाते हैं। जान शोंग्बू (Zan Shongbu) आटा गूंधने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्रकार का उथला सपाट आयताकार बर्तन होता है, जिसे लकड़ी के एक ब्लॉक को अंदर से खोखला करके बनाया जाता है। वहीं जांधौंग (Jandhong) एक लंबा बेलनाकार पात्र होता है, जो लकड़ी से बना होता है और इसके चारों ओर पीतल की परत लगी होती है। इसका उपयोग मक्खन की चाय को मथने के लिए किया जाता है। दूध को मथने के लिए वे लोग ज़ौब (Zob) का इस्तेमाल करते हैं, जो दिखने में जांधौंग जैसा है, लेकिन यह आकार में बड़ा होता है। शेंग त्सुमरौंग (Sheng Tsumrong) एक प्रकार की लकड़ी की ओखली होती है, जिसमें अनाज और अन्य खाद्य सामग्री को लकड़ी के मूसल से कूटा जाता है

लकड़ी पर नक्काशी

कागज बनाना

कागज बनाना एक कला है, जिस कला में मोनपा बहुत आगे हैं। संभवतः वह अरुणाचल प्रदेश की एकमात्र जनजाति हैं, जो कागज बनाने की कला जानती है। कागज को उस झाड़ी की छाल से बनाया जाता है, जिसे डैपने बॉटनिकल पैपरसिया (Dapne Botanical Papercia) कहा जाता है। इसका स्थानीय नाम शुगु शेंग है। मोनपा द्वारा निर्मित कागज की गुणवत्ता बहुत उच्च कोटि की होती है। वे इसका उपयोग मुख्य रूप से धार्मिक प्रयोजन के लिए करते हैं, और उनके अधिकांश धार्मिक ग्रंथ हाथ से बने कागजों पर लिखे जाते हैं। यहां के कई पवित्र ग्रंथ ऑरनेट कार्डबोर्ड पर लिखे गए हैं। यह कार्डबोर्ड हाथ की बनी कागज के कई पन्नों की होती है, जिनको एक साथ चिपकाया जाता है। इसे काले रंग से वार्निश किया किया जाता है, जिस पर रजत या स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाता है।

 कागज बनाना

बुनाई

यहां बुनाई का काम विशेष रूप से मोनपा महिलाओं द्वारा किया जाता है। लड़कियों को यहां बहुत ही कम उम्र से ही बुनाई कला में प्रशिक्षित कर दिया जाता है, और इस तरह से यह कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे चलती रहती है। बुनाई में उनके द्वारा जो मूल कच्चा माल उपयोग में लाया जाता है, उनमें ऊनी और सूती धागा शामिल हैं। वे याक के बालों से ऊन के कपड़े, कंबल, टेंट आदि बुनते हैं। मोनपा महिलाओं द्वारा बुने हुए ऊनी कालीन उच्च कोटि के होते हैं। विभिन्न रंग के ऊनी धागों को मिलाकर वे कालीन को बुनते हैं, जिन पर ड्रैगन, बर्फ का शेर, पक्षियों या फूलों के भव्य डिजाइन उकेरे होते हैं। उसी तरह झोले के डिजाइन भी जितने जटिल होते हैं उतने ही कलात्मक भी होते हैं, जिन्हें पांच रंग, लाल, पीले, सफेद, काले और हरे रंग के धागों से मिलाकर बुने जाते हैं।

 बुनाई

धूम्रपान के पाइप

तवांग के पालिबोस जनजाति के लोग धूम्रपान के शौकीन होते हैं, और वे धूम्रपान के पाइप, लकड़ी और बांस की जड़ों पर बेहद बारीक काम कर के बनाते हैं। वे अपने पड़ोसी जनजातियों, बोकारो, रामोस और मेम्बास, से विनिमय व्यापार के माध्यम से धातु के पाइप भी खरीदते हैं।

धूम्रपान के पाइप

मिट्टी के बर्तन

मिट्टी के बरतन बनाने में मोनपा के लोग बहुत कुशल माने जाते हैं। वे विभिन्न आकारों के मिट्टी के बर्तन बनाते हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से खाना पकाने, शराब बनाने के लिए और फर्मेन्टेड पनीर के भंडारण में होता है। इन उत्पादों का आपसी विनिमय किया जाता है, और इन्हें बेचा भी जाता है। तवांग बस्ती के दक्षिणी पश्चिम में स्थित कानटेंग गांव, अपने मिट्टी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है।

 मिट्टी के बर्तन