अपनी पत्नी नूरजहां के लिए मुग़ल बादशाह जहांगीर ने 1619 ईस्वी में शालीमार बाग का निर्माण कराया था। यह कश्मीर घाटी का सबसे बड़ा मुगल उद्यान है। 'शालीमार’ नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है, इसका मतलब है 'प्यार का निवास'।

डल झील के दाहिने किनारे पर स्थित इस उद्यान में सीढ़ीनुमा एक के ऊपर एक, चार परतें हैं। इसके किनारों पर लंबे चिनार के पेड़ों ने इस उद्यान की खूबसूरती को और बढ़ा दिया है। फारसी बकाइन और खिलते चेरी के पेड़ बड़ी संख्या में पर्यटकों को यहां आकर्षित करते हैं।

दूसरी शताब्दी के आसपास, वाकाटक वंश के राजा प्रवरसेन द्वितीय (79 ईस्वी-139 ईस्वी) ने एक कुटिया का निर्माण करवाया था। यह कुटिया डल झील के पास है जो एक उद्यान से घिरी थी। इसे शालीमार के नाम से जाना जाता था। वह अक्सर राजा प्रवरसेन द्वितीय हरवन में संत सुकर्मा स्वामी से मिलने जाते थे और मुलाकात के बाद, शालीमार कॉटेज में ठहरते थे। जब तक राजा संत के पास आते रहे, तब तक झोपड़ी सही स्थिति में रही, लेकिन उसके बाद रखरखाव की कमी से यह कुटीर पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो गई। इसके बावजूद भी शालीमार नाम बना रहा। अपनी पत्नी नूरजहां को प्रभावित करने के लिए मुगल बादशाह जहांगीर ने कश्मीर में एक उद्यान बनाने का निर्णय किया। उसने इस उद्यान के लिए शालीमार को चुना। 1619 ईस्वी में, इस पुराने बगीचे को एक शाही मुगल उद्यान में परिवर्तित कर दिया गया और इसका नाम फराह बख्श रखा गया, जिसका अर्थ है 'रमणीय'। राजा और रानी यहां गर्मियां बिताने आते थे। उन्होंने शाही ग्रीष्मकालीन निवास के रूप में इसे चुना। लगभग 10 साल बाद, शाहजहां के आदेश पर, कश्मीर के गवर्नर ज़फ़र खान ने बाग़ का विस्तार किया और इसे फ़ैज़ बख्श नाम दिया जिसका अर्थ है 'भरपूर'।

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