समुद्र तल से लगभग 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित, गीउ का अनूठा गांव अपने मनोरम दृश्यों और बेहद ही सुंदर परिवेश के लिए जाना जाता है। इस छोटे से शांत गांव में प्रकृति द्वारा संरक्षित 500 साल पुरानी 'ममी' (मानव अवशेष) पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि यह ममी एक बौद्ध लामा की है, जिसकी मृत्यु 45 वर्ष की आयु में हो गई थी। यह ममी अभी भी एक योगाभिषेक मुद्रा स्थिति में है।इसके हाथ में एक माला है, और उसके नाखून, दांत और बाल बरकरार हैं। कोई रासायनिक संरक्षण नहीं होने के बावजूद भी उनके शरीर के अंगों का पूरी तरह से क्षय नहीं हुआ है। इसके शरीर पर एक पट्टी बंधी है, जिसके बारे में यह माना जाता है कि यह गोमथक है। इस पट्टी को बौद्ध भिक्षु ध्यान करते वक्त घुटने से लेकर अपनी गर्दन तक लपेटते हैं। कुछ लोगोंं का विश्वास है कि जिस योगाभिषेक मुद्रा में भिक्षु बैठा है, वह मुद्रा ही शरीर को अपने आप सुरक्षित रख सकती है। गेलुगपा वर्ग के इस भिक्षु का नाम संघ तेनजिन था, इसे गांव के लोग प्यार से 'ममी लामा' भी बुलाते हैं।

आजकल यह ममी पहाड़ी की चोटी पर एक अकेले कमरे में स्थित है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। कार्बन डेटिंग के अनुसार यह ममी सन् 1475 की है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि यह ममी आज भी गांव के लोगों की रक्षा करती है। एक किंवदंती है कि इस भिक्षु ने गांव को बिच्छुओं से बचाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और तब से लेकर आज तक, गांव में बिच्छू नहीं देखे गए।

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