मिट्टी की झोपड़ियों से भरा यह गांव सुंदर आकर्षणों को अपने में समेटे हुए है। आमतौर पर मठ पहाड़ियों पर बने होते हैं। लेकिन इसके विपरीत ताबो मठ पहाड़ियों के बीच एक समतल घाटी के तलहटी में बसा हुआ है। मठ की दीवारों पर चित्रों और प्लास्टर की मूर्तियां बनी हुईं हैं। महाराष्ट्र की अजंता की गुफाओं से प्रेरित होकर लोग इसे 'हिमालय का अजंता' भी कहते हैं। 996 ई. में स्थापित ताबो मठ, स्पीति घाटी का सबसे बड़ा बौद्ध मठ परिसर है। इसे 'ताबो चोस कोर मठ' के नाम से भी जाना जाता है। यह मठ, तिब्बती बौद्ध भिक्षु, रिनचेन ज़ंगपो द्वारा पश्चिमी हिमालय में गुगे के राजा, येशे हे के लिए स्थापित किया गया था।

इसमें नौ मंदिर, 23 चोर्तेंस (बौद्ध स्थल) और भिक्षुओं के रहने के कक्ष हैं। इसके अलावा, इसमें चट्टान में खोदी गई कई गुफाएं हैं जहां बौद्ध भिक्षु ध्यान लगाते थे। इस मठ के आसपास कुछ समकालीन संरचनाएं हैं, जिनमें से स्क्रॉल पेंटिंग और पांडुलिपियां विशेष हैं। जो महत्त्व बौद्ध धर्म में तिब्बत के थोलिंग मठ का है, वही महत्त्व हिमालय के बौद्ध अनुयायी के बीच टाबो मठ का है। तिब्बती भाषा सीखने के लिए वर्षों से भारतीय पंडित ताबो मठ का दौरा करते रहे हैं। सन् 1975 के भूकंप के बाद, मठ का पुनर्निर्माण किया गया और एक नया असेंबली हॉल भी बनाया गया जिसे स्थानीय भाषा में 'डु-कांग' भी कहते हैं। वर्ष 1983 और 1996 में 14वें दलाई लामा ने यहां कालचक्र समारोह का आयोजन किया। इस कालचक्र समारोह में दीक्षा एवं पुनर्जीवन जैसे विषयों पर चर्चा की गई। ऐतिहासिक खजाने के रूप में इस मठ का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के जिम्मे है। यह विभाग हेरिटेज टूरिज़म में रूचि रखने वाले पर्यटको को ताबो मठ आने के लिए प्रोत्साहित करता है।

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