विदिशा

बेतवा और बेस नदियों के संगम पर स्थित, विदिशा शहर, सांची से सिर्फ 9 किमी दूर है। यह ऐतिहासिक रूप से विदिशा जिले का मुख्यालय था। एक समय में इस शहर को बेसनगर कहा जाता था। यह सम्राट् अशोक के राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। सम्राट् अशोक की पत्नी देवी को वेदिसा-महादेवी कहा जाता था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम विदिशा पड़ा। सम्राट् अशोक की पत्नी देवी एक व्यापारी की बेटी थी जो विदिशा के पास रहती थी। यहां कई पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के कई स्मारक हैं। यह शहर 5वीं और 6वीं शताब्दी के दौरान व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। स्थानीय किंवदंती बताती है कि विदिशा एक महत्वपूर्ण जगह थी जिसका उल्लेख महाकाव्य रामायण के साथ-साथ मेघदूतम् में भी मिलता है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, विदिशा ने मौर्यों के स्वर्णिम शासन के साथ-साथ गुप्त साम्राज्यों के दौरान भी अपना महत्व बनाए रखा। आज, यह बीजा मंडल मंदिर और गुंबज का मकबरा के दिलचस्प खंडहरों के कारण यात्रियों को आकर्षित करता है। बीजा मंडल के विशाल आयामों ने कई लोगों को इस मंदिर की तुलना उड़ीसा के प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर से करने के लिए प्रेरित किया। कुछ और प्राचीन स्थलों की यात्रा के लिए पास के ग्यारसपुर भी जा सकते हैं। प्रसिद्ध उदयगिरि गुफाएं भी इसके आस-पास में स्थित हैं। इनमें गुप्त काल के कई महत्वपूर्ण शिलालेख हैं। माना जाता है कि एक हेलियोडोरस स्तंभ 110 ईसा पूर्व में बनाया गया था और इसे खंभा बाबा के नाम से जाना जाता है। स्थानीय किंवदंती कहती है कि स्तंभ का निर्माण हेलियोडोरस ने हिंदू धर्म में परिवर्तित होने के बाद किया। वह भगवान विष्णु का भक्त बन गया था। यहां एक जिला पुरातत्व संग्रहालय है, जो 9वीं शताब्दी के पुरावशेषों को दर्शाता है।

विदिशा

उदयगिरि की गुफाएं

उदयगिरि की गुफाएं विदिशा के पश्चिम में लगभग 5 किमी और सांची से 13 किमी की दूरी पर स्थित हैं। गुप्त काल की ये गुफाएं, धार्मिक मूर्तियों की बारीक और भव्य नक्काशी करने वाले कारीगरों के कौशल का प्रमाण हैं। ये आज भी धार्मिक व्यक्तियों और कला के पारखियों को प्रेरित करती हैं। उदयगिरि में कुल 20 गुफाएं हैं। आपको यथासंभव अधिक से अधिक गुफाएं देखने की कोशिश करनी चाहिए। चौथी और पांचवीं शताब्दी में इन गुफाओं को बलुआ पत्थर की पहाड़ियों से तराशा गया था। ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख इन गुफाओं में पाए जाते हैं जो इन गुफाओं का कालक्रम को पता लगाने में उपयोगी साबित हुए हैं। गुफा 5 में भगवान विष्णु के वाराह अवतार की मूर्ति है जो गुप्त कला का एक सर्वाधिक उपयुक्त उदाहरण माना जाता है। वाराह अवतार की कहानी भगवान विष्णु द्वारा देवी पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस से बचाने की कहानी है। जो उन्हें भगाकर गहरे समुद्र में ले गया था। पैनल 7x4 वर्ग मीटर का है जो अत्यंत आकर्षक है। गुप्त राजाओं द्वारा उनकी भूमि (पृथ्वी) को सभी बुराइयों से बचाने के संकल्प को एक चित्र के रूप में दर्शाया गया है। इन गुफा मंदिरों को भारत में धार्मिक वास्तुकला का सबसे अच्छा और प्रारंभिक उदाहरण माना जाता है। शिवलिंग युक्त मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय है क्योंकि दीवारों को पौराणिक बारीक नक्काशियों से सजाया गया है।

उदयगिरि की गुफाएं

अशोक स्तंभ

सांची का शायद सबसे लोकप्रिय आकर्षण अशोक स्तंभ है। यह प्रसिद्ध सांची स्तूप के दक्षिणी प्रवेश द्वार के पास स्थित है। माना जाता है कि यह स्तंभ ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में निर्मित है। यह सारनाथ के स्तंभ के समान है। हालांकि इसके पूरे ढांचे को संरक्षित नहीं किया गया है। प्रवेश द्वार से कोई भी स्तंभ के ऊपरी भाग को देख सकता है। इसके शीर्ष को एक संग्रहालय में रखा गया है। स्तंभ का मुकुट इसकी सबसे आकर्षक विशेषता है। इसमें चार राजसी शेर जिनका मुंह चारों दिशाओं में है, एक दूसरे से पीठ सटाए बने हुए हैं। इसकी वास्तुकला ग्रीक-बौद्ध कला की सौंदर्यात्मकता और उत्कृष्ट संरचनात्मक संतुलन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चार शेरों वाली इस आकृति को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है। अशोक स्तंभ के शेर धर्मचक्र, धर्म के चक्र, या कानून का समर्थन नहीं करते। राष्ट्रीय प्रतीक की प्रेरणा को ऐतिहासिक और विरासत के परिप्रेक्ष्य में देखने के लिए सांची का संग्रहालय घूमने लायक है।

अशोक स्तंभ

सांची स्तूप

यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल सांची स्तूप एक भव्य संरचना है, जो 42 फीट ऊंची और 106 फीट चौड़ी है। स्तूप का केंद्रीय कक्ष एक विशाल गोलार्द्ध गुंबदनुमा है जो भगवान बुद्ध के कई अवशेषों को संजोए हुए है। परंपरागत रूप से, स्तूपों में अवशेष नहीं होते हैं और केवल नक्काशी के माध्यम से शिक्षा और दर्शन को दर्शाते हैं। सांची स्तूप भव्य तोरणों से घिरा हुआ है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला में स्वतंत्र, विस्तृत और मेहराबदार द्वार हैं। इसके द्वार पर की गई बारीक नक्काशी बौद्ध जातक कहानियों से ली गई हैं। जातक कथाएं भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की घटनाओं और चमत्कारों से प्रेरित हैं। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित मूल स्तूप ईंट से बनी कम ऊंचाई की एक संरचना थी, जो वर्तमान इमारत का केवल आधे व्यास का था। इसके आधार पर एक ऊंची छत थी जो लकड़ी की रेलिंग से घिरी थी जिसके ऊपर पत्थर का छाता था। स्तूप को 4 किमी दूर से देखा जा सकता है, जो चारों ओर हरे-भरे पेड़ों से घिरा हुआ है जो आस-पास के बने हुए स्तूपों के केन्द्र की तरह दिखता है। सांची स्तूप के निकट कई स्तूप बाद में निर्मित किए गए।

सांची स्तूप