विख्यात और लोगों की पसंदीदा पटोला साड़ियां आमतौर पर रेशम से बनी होती हैं, जिसमें डबल इकत बुनाई होती है। कपड़े को रंगने में वेजिटेबल डाई का इस्तेमाल किया जाता है। पहले शाही घराने की महिलाएं और कुलीन लोगों की पत्नियां पटोला साड़ी को पहनती थी जो बेहद सुन्दर कलाकृति है। बीस हजार से बीस लाख के बीच बिकने वाली इन साड़ियों का दाम इस बात से तय होता है कि काम कितना बारीक है और बुनाई में सोने के धागों का कितना प्रयोग किया गया है। इन साड़ियों को बुनने का हुनर पीढ़ी दर-पीढ़ी केवल पुत्रों को दिया जाता है और आज, पाटन में केवल तीन परिवार हैं, जो इन बेशकीमती साड़ियों की बुनाई करते हैं। बुनाई की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है और बुने जाने से पहले धागे के प्रत्येक रेशे को अलग-अलग रंगना पड़ता है।    

पाटन का एक अन्य लोकप्रिय उत्पाद मशरू है। यह साटन में रेशम और कपास का उपयोग करके बुना हुआ एक वस्त्र है। इसमें रेशम बाहरी सतह पर और कपास अंदर की तरफ होता है। इससे यह गर्म और आर्द्र जलवायु में बहुत आरामदायक पहनावा बन जाता है। माना जाता है कि 19वीं शताब्दी में यह बुनाई पश्चिम एशिया में शुरू हुई थी। कहा जाता है कि रेशम के कीड़ों को मारकर रेशम के कपड़े बनाये जाने के कारण इसे मुस्लिम समुदायों में प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस प्रकार, मशरू कपड़े का निर्माण किया गया, जिसमें कपास की एक आंतरिक परत होती थी, और रेशम की चमक ही बाहर से दिखाई देती थी। इस प्रकार रेशम त्वचा के संपर्क में नहीं आती है, लेकिन इसकी चमक देखी जा सकती है। मशरु का उपयोग वस्त्र बनाने के साथ ही कुशन और रजाई सहित घर की सजावट में भी होता है।  

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