शहर के बाहरी इलाके में स्थित, पवनार एक शांत और आध्यात्मिक पड़ाव है। पर्यटक एक मध्ययुगीन किले के अवशेषों का अन्वेषण कर सकते हैं जो वाकाटक राजवंश (250 ईस्वी से 500 ईस्वी), जिसने पवनार को अपनी राजधानी बनाया, के कलाकारों की कलात्मक प्रतिभा के प्रमाण के रूप में उपस्थित है । सबसे लोकप्रिय आकर्षण परमधाम आश्रम है जिसकी स्थापना 1934 में भूदान आंदोलन के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे ने की थी। आश्रम के निर्माण के दौरान किए गए उत्खनन से 250 ई. से 1200 ई. के बीच विभिन्न कालखंडों से संबंधित कई प्रतिमाएं और मूर्तियाँ सामने आईं, जो आश्रम में प्रदर्शित की जाती हैं। इनमें देवी गंगा की मूर्तियां और महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों के दृश्यों को दर्शाती अन्य मूर्तियां शामिल हैं। इनमें से सबसे चित्तग्राही है अपने भाई भरत के साथ भगवान राम की मुलाकात का चित्रण। पवनार आश्रम के रास्ते में, पर्यटक क्रमशः भगवान विष्णु और भगवान हनुमान को समर्पित दो मंदिरों के दर्शन भी कर सकते हैं। आश्रम ब्रह्म विद्या मंदिर का भी घर है जिसे आचार्य विनोबा भावे, मानव अधिकारों के भारतीय समर्थक, ने स्थापित किया था और अब भारत के सभी हिस्सों की महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता है। आश्रम की यात्रा पर्यटकों को आचार्य विनोबा भावे के जीवन और कार्यों से परिचित कराती है।

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