वृंदावन के प्रवेश द्वार पर ही सफेद संगमरमर से बना एक भव्य मंदिर है। इसका निर्माण पागल बाबा नामक एक संत ने करवाया था, जिनका असली नाम श्री शीला नंद जी महाराज था। ऐसा कहा जाता है कि शीला नंद जी कलकत्ता (अब कोलकाता) के उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश थे, और उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद का समय आध्यात्मिकता की तलाश में वृंदावन में बिताने का फैसला किया। वे पागल आदमी की तरह इधर-उधर भटकते रहते थे, इसलिए स्थानीय लोग उन्हें 'पागल बाबा' कहकर पुकारना शुरु कर दिया।
इस मंदिर में सात मंजिलें हैं, और प्रत्येक मंजिल भगवान कृष्ण के अलग-अलग अवतारों को समर्पित है। अगर आपको आसपास के क्षेत्र का नज़ारा देखना हो तो इसके शीर्ष मंजिल पर चढ़ कर अवश्य देखें। इस इमारत के भूतल पर महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों के दृश्यों को कठपुतलियों द्वारा दिखाया जाता है, और इसका आनंद अवश्य लें। होली और जन्माष्टमी के त्योहारों के समय यहां आना सबसे उत्तम है।

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