'देवताओं की घाटी' के रूप में जाने वाले शहर कुल्लू, हिमाचल प्रदेश के मुकुट का एक महत्वपूर्ण रत्न है। 547 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले अद्भुत परिदृश्य के साथ इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और मेहमाननवाज निवासियों ने, वर्षों से यात्रियों को यहां आकर्षित किया है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, कुल्लू शहर को अतीत में कुलंथपीठ के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है कि रहने योग्य दुनिया का आखिरी छोर। इसका उल्लेख हिंदू महाकाव्यों रामायण और महाभारत में भी मिलता है। इतिहासकारों का मत है कि एक समय में कुल्लू में, कई हिंदू मंदिरों के साथ-साथ कई बौद्ध मठें भी थे, और दोनों धर्मों के लोगों ने कुल्लू घाटी में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बनाए रखा था। इस घाटी के बारे में कहा जाता है कि यह कभी सोना, चांदी, लाल तांबा, क्रिस्टल और बेल धातुओं से समृद्ध था।इसके कई सुखद ट्रेकिंग मार्ग, इसकी सुंदर परबती घाटी और इसके मंदिरों की अनोखी वास्तुकला अत्यंत ही आकर्षक हैं। द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की जैव विविधता, पर्यटकों के लिए एक और आकर्षण है। अक्टूबर से फरवरी महीने में सर्दियों के दौरान, कुल्लू की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है, और यदि आपको ज्यादा ठंड पसंद है, तो जनवरी में यात्रा की योजना बनाएं। कुल्लू, मनाली से लगभग 40 किमी की दूरी पर है।हिमाचल संस्कृति और लोक कला संग्रहालय (विरासत)यह दिलचस्प संग्रहालय, हडिम्बा मंदिर के ठीक बगल में है जो राज्य की प्राचीन और पारंपरिक विरासत का एक शानदार संग्रह को संजोये है। इसे सन् 1998 में स्थापित किया गया था और इसके कुछ प्रदर्शनों में कुल्लू घाटी और उसके आसपास के मंदिरों और किलों के छोटे आकार के मॉडल भी शामिल हैं। इसके अलावा यहां पारंपरिक वस्त्र, पोशाकें और आभूषण, फर्नीचर, स्थापत्य लकड़ी पर नक्काशी, नृत्य और धार्मिक देवता के मुखौटे, धार्मिक अवशेष और स्थानीय संगीत वाद्ययंत्रों का संग्रह है। यह संग्रहालय न केवल पारंपरिक कलाओं और जीवन शैलियों को संरक्षित करने में मदद करता है, बल्कि राज्य की ह्रास होती विरासत और रीति-रिवाजों के बारे में भी जागरूकता पैदा करता है। यह पर्यटकों के लिए उतना ही रोचक है जितना उन इतिहासकारों और विद्वानों के लिए जो इस क्षेत्र के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं।

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