भारत के अंतिम आर्य गांवों के रूप में प्रसिद्ध दाह और हनु गांव लेह की मूल संस्कृति का जीता-जागता नमूना हैं। दुनिया भर में मेहमाननवाजी के लिए मशहूर लेह की ड्रोग्पा जनजाति का असली घर है। ड्रोग्पा जनजाति को मूल आर्यन या इंडो-यूरोपीय जाति का वंशज कहा जाता है। ये गाँव इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता का पता लगाने का एक शानदार तरीका हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये गांव और यहां के लोग फोटोग्राफी के लिए कमाल की चीज हैं। शौकीन फोटोग्राफरों के लिए इस गांव के चित्र और दृश्य देखने लायक हैं। यहां के ग्रामीणों के पास अनूठे जेवरात हैं और बहुत ही आकर्षक सिर के सजावट की वस्तुएं हैं, जिनसे अनूठे चित्र बनते हैं। दाह और हनु गांव लेह के ब्रोकपा इलाके में स्थित हैं। ये दोनों गांव भारत के अंतिम आर्य गांवों के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहां एक किंवदंती बताई जाती है कि जब सिकंदर, विजेता, सिंधु घाटी में आया और फिर ब्यास में चला गया, तो उसने अपने कुछ वंशजों को यहां छोड़ दिया, जो यहां बस गए थे। कई ब्रोकपा गांवों में से ये दोनों ही गांव पर्यटकों के लिए खुले हैं। यहां का धर्म बौद्ध धर्म है, लेकिन स्थानीय लोग देवताओं की पूजा भी करते हैं। दाह और हनु गाँव लेह के उत्तर-पश्चिम में लगभग 163 किलोमीटर दूर स्थित हैं। यहां पर वाइन बनाने वाले अंगूर, चेरी, अखरोट और खुबानी की खेती होती है। इसलिए पर्यटकों की पसंद बने हुए हैं।

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