कोलकाता हेरिटेज वॉक

यह वाक शहर के विरासत को उसके समृद्ध औपनिवेशिक अतीत के आलोक में प्रस्तुत करता है। यह वॉक आपको सेंट एंड्रयूज चर्चए ग्रेट ईस्टर्न होटलए मुद्रा कार्यालयए डेड लेटर ऑफिस आदि स्थानों पर ले जाती है। कोलकाता के चंदननगरए चिनसुराहए बंदल और सेरामपुर पर औपनिवेशिक शासन का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। फ्रांसए पुर्तगाल और डचों के शासन के बाद यह ब्रिटिश प्रभाव में आया। जब भारत वर्ष 1947 में गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ तो यहां मौजूद कई इमारतों और सांस्कृतियों से औपनिवेशिक छाप आसानी से नजर आती थी। पर्यटक यहां से चहलकदमी करते हुए यह जान सकते हैंए इन देशों ने कैसे कोलकाता के स्थापत्य और संस्कृति को प्रभावित किया।

कोलकाता हेरिटेज वॉक

विवेकानंद ट्रेल

विवेकानंद ट्रेल की वॉक बेहद स्वच्छ रामकृष्ण मंदिर से शुरु होती है। यहां देश और विदेश से सभी धर्मों के अनुयायी आते हैं। इसके पास में ही बेलूर मठ हैए जो हुगली नदी के पास स्थित है। स्वामी विवेकानंद इस दो मंजिला घर में रहते थे और आज इसमें कई संतों की निजी चीजें रखी हुई हैं। यहां का अगला आकर्षण बागबाज़ार के पास स्थित शारदा माँ का घर है। जब वह 23 मईए 1909 को इसमें रहने के लिए आई तो इस घर को बने एक सदी बीत चुकी थी। वह जीवनपर्यंत यहीं रही और उनकी मृत्यु 28 जुलाईए 1920 को हुई। पर्यटक बालाराम बासु का घर भी जा सकते हैं। बालाराम रामकृष्ण के शिष्य थेए और इस घर को वर्ष 1922 में एक मंदिर में बदल दिया गया। यहां श्री श्रीरामकृष्ण और शारदा मां अपने कई शिष्यों के साथ प्रायः आते थे। रामकृष्ण मिशन एसोसिएशन की स्थापना यहां की गई थी और यहां स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1897 में फाउंडेशन की अपनी योजनाओं के बारे में बात करने के लिए एक विशेष सभा का आयोजन किया था। 3ए गौर मोहन मुखर्जी स्ट्रीट स्वामी विवेकानंद का अपना घर है। यह एक विशाल भवन हैए जहां प्रायः भक्त आते थे। कहा जाता है कि रानी रश्मोनी देवी को स्वयं देवी ने दक्षिणेश्वर में एक मंदिर बनाने के लिए कहा था। इस करिश्माई महिला ने एक विशिष्ट नवरत्न वाला मंदिर बनायाए जिसकी ऊंचाई 100 फीट है। इन 12 शिखरों वाले मंदिर में एक सुंदर गलियारा हैए जिसके इर्दण्गिर्द भगवान शिव के 12 मंदिर हैं। माना जाता है कि रामकृष्ण ने यहां साधना की थी और पचबती की छांव में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआए जो कि विशाल बरगद का एक पेड़ है। गिरिश चंद्र घोष य28 फरवरीए 1844 से 8 फरवरीए 1912द्ध एक प्रसिद्ध बंगाली कविए संगीतकारए रंगमंच निर्देशक और अभिनेता थे। उनका घर इस सफर का अंतिम पड़ाव है।

विवेकानंद ट्रेल

सुतानाती ट्रेल

यह दिलचस्प ट्रेल सोवा बाजार राजबाड़ी में शुरू होती हैए जो शहर के सबसे पुराने शाही घरों में से एक है। इसका निर्माण लॉर्ड क्लाइव के ट्यूटर राजा नबकृष्ण देब ने किया था। यह महलनुमा संरचना अक्टूबरण्नवंबर में होने वाले दुर्गा पूजा समारोहों के लिए जानी जाती है। इस स्मारक की उल्लेखनीय विशेषताओं में इसका नट मंडप हैए जो इसके प्रांगण के बिल्कुल मध्य में स्थित है। सोवा बाजार राजबाड़ी का निर्माण वर्ष 1700 में किया गया। यह मुरीशए हिंदू और ब्रिटिश वास्तुकला शैलियों का एक बेहतरीन संयोजन है।पर्यटक इसके बाद श्जोरासंको ठाकुर बाड़ीश् या श्द हाउस ऑफ द ठाकुर्सश् जा सकते हैं। यह कवि और नोबल पुरस्कार विजेता टैगोर का पुश्तैनी घर है। टैगोर का जन्म इसी घर में हुआ था और उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय यहीं बिताया था। अब उनके घर की मरम्मत कर इसे टैगोर संग्रहालय में बदल दिया गया हैए जो अब एक दर्शनीय स्थल है। पर्यटक यहां आप टैगोर के परिवार के बारे में कई ऐतिहासिक जानकारी पा सकते हैं। पर्यटक यहां यह भी जान सकते हैं कि बंगाल पुनर्जागरण और ब्रह्म समाज में इसका क्या योगदान रहा है। यहां ध्यान देने योग्य 700 पेंटिंग्स है और साथ में टैगोर की शादी का निमंत्रण पत्र भी हैए जो खुद टैगोर ने तैयार किया था। इस संग्रहालय को तीन दीर्घाओं में विभाजित किया गया हैए जिसमें कई पुस्तकेंए पांडुलिपियां और पुरानी चीजें हैं। आप राजेंद्र नारायण रॉय का बरामदाए छत और कच्चे लोहे की जाली वाला जोरांसको राजबाड़ी भी जा सकते हैं। इसके बाद पर्यटक एक ऐसे संग्रहालय का रुख कर सकते हैं जो पहले कभी राजेंद्र नाथ मलिक का आवास हुआ करता था। यह 46ए मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट पर स्थित है। इस वैभवशाली महल का निर्माण 19वीं शताब्दी में किया गया था। ट्रेल समाप्त होती है कुमारतुली परए जो कोलकाता का एक अनोखा क्षेत्र हैए जो दुर्गा पूजा उत्सव के लिए मूर्तियां बनाने की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यह हुगली नदी के तट पर स्थित हैए जो कुम्हारों का गढ़ है। इसमें 30 महिला कारीगर हैं और कई पुरुष कारीगर हैंए जो हिंदू देवीण्देवताओं की मिट्टी के मूर्ति बनाते हैं। इन मूर्तियों की बारोवरी पूजा के लिए पूरे शहर और आसण्पास के क्षेत्रों में आपूर्ति की जाती है और इनका निर्यात भी किया जाता है। दुर्गा पूजा के कुछ सप्ताह पहले पूरा ध्यान देवी की प्रतिमा बनाने पर होता है। कुमारतुली की पूजा को कोलकाता की सबसे पुरानी पूजा के तौर पर जाना जाता है।

सुतानाती ट्रेल