मुख्य एर्नाकुलम से 10 किमी दूर स्थित, मट्टनचेर्री पैलेस या डच पैलेस, औपनिवेशिक प्रभावों के साथ मिश्रित मलयालम शैली की वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसके अंदरूनी भाग सुंदर रूप से सुशोभित हैं, जिनमें 17 वीं और 18 वीं शताब्दी के महाकाव्यों रामायण और महाभारत के दृश्यों का चित्रण है। इसके अलावा, पर्यटक 1864 के बाद के चीन के सभी राजाओं के बड़े आकार के चित्रों को भी वहां देख सकते हैं। तलवार, खंजर और कुल्हाड़ियों के अतिरिक्त, पंख, शाही टोपी, कोचीन के राजाओं द्वारा जारी किए गए सिक्के, रूपहले सितारों वाले गाउन, रेशम व पीतल की शाही छतरियों के साथ यहां  डच द्वारा कोचीन के बनाए नक्शे भी यहां रखे हैं। सबसे आकर्षक तो राजा के शयनकक्ष में लगे चित्र हैं जो रामायण की कहानियों का चित्रण करते हैं, राज्याभिषेक हॉल में लगे भित्ति-चित्र हैं जिनमें देवी लक्ष्मी कमल पर चित्रित हैं, भगवान विष्णु, भगवान शिव और अर्धनारीश्वर रूप में देवी पार्वती, भगवान राम का राज्याभिषेक, भगवान कृष्ण का गोवर्धन पर्वत उठाना और अन्य देवी देवताओं के चित्र भी यहां हैं। कोरोनेशन हॉल के सामने वाले कमरे में भगवान शिव, भगवान विष्णु और देवी के चित्र हैं और एक अधूरा चित्र भी, और एक अन्य कमरे में कुमारसंभव के भित्ति-चित्र हैं और प्रसिद्ध कवि कालीदास द्वारा बनाए गए कुछ चित्र भी वहां प्रदर्शित हैं। महल को पुर्तगालियों ने राजा वीरा केरल वर्मा (1809-1828) को उपहार स्वरूप देने के लिए बनाया था। यह डच पैलेस के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि डचों ने इसमें कई बदलाव व नवीनीकरण किए थे। महल में शाही परिवार की पीठासीन देवी पझायनन्नूर भगवती (पझायनन्नूर की देवी) का मंदिर भी है। 

अन्य आकर्षण