राजस्थान की भूमि अभी भी अपनी पुरानी परंपराओं को सहेजे हुए है और राज्य में प्राचीन संगीत वाद्ययंत्रों की कोई कमी नहीं है। रावणहत्था उनमें से सबसे पुराना है और उसे स्थानीय और राह चलने वाले संगीतकारों द्वारा उपयोग किया जाता है। यह एक प्राचीन मुड़ा हुआए तारवाला वाद्य है और इसे वायलिन के पूर्वज के रूप में सुझाया गया है।  वास्तव मेंए यहां तक कि इसे बजाने का तरीका भी वायलिन के समान है।
रावणहत्था में वायलिन की तरह ही मधुर ध्वनि निकलती हैए यह आपको तुरंत एक ऐसे युग में ले जाएगीए जब आप महाराजा और महारानी को शाम की धूप में बैठे हुए काल्पन करके कोमल धुन के साथ बेहद शांति का माहौल महसूस करेंगे।इस यंत्र का संबंध रावण के समय के श्रीलंका के तमिल और हेला लोगों के साथ होगाए इसी कारण इस उपकरण का नाम रखा गया होगा। इतिहास से पता चलता है कि रावण ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए रावणहत्थे का उपयोग किया था।
रावनहत्थे को पारंपरिक रूप से बांसए धातु के पाइपए नारियल के गोलेए चमड़े और यहां तक कि घोड़ों के बाल जैसी स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों के उपयोग से बनाया जाता है। यन्त्र का पारंपरिक डिजाइन एक लंबे बांस के तने से बना होता हैए जिसके अंत में एक नारियल का आधा खोल जुड़ा होता है।

अन्य आकर्षण