चित्तौड़गढ़ के सबसे मनोरम आध्यात्मिक स्थलों में से एक यहाँ का प्राचीन कालिका माता मंदिर है। इस मंदिर की बनावट 8वीं से 11वीं शताब्दी तक चले प्रतिहार काल की वास्तुकला से प्रभावित है, और एक ऊंचे मंच पर स्थापित इस मंदिर के अद्भुत कलात्मकता से तराशे गए मंडप, छत, स्तंभ और प्रवेश द्वार आंखों को दिव्य आभा की अनुभूति प्रदान करते हैं। इस मंदिर का परिसर काफी विशाल है और यहां समय-समय पर 'रात्रि जागरण' का आयोजन किया जाता है। इतना ही नहीं, इस परिसर में भगवान शिव को समर्पित जोगेश्वर महादेव नाम का एक मंदिर भी है। नवरात्रों के दौरान जब इस मंदिर को दीपों से सजाया जाता है, तब इसका अद्भुत स्थापत्य व सौन्दर्य श्रद्धालुओं को एक अलग ही प्रकार का आनंद देता है। इस मंदिर को मूल रूप से 8वीं शताब्दी में सूर्य देवता को समर्पित एक मंदिर के रूप में बनाया गया था। लेकिन 14वीं शताब्दी में इसके खंडहरों से देवी काली को समर्पित एक नए मंदिर का निर्माण किया गया। पद्मिनी महल और विजय स्तंभ के बीच स्थित इस मंदिर की निराली शान देखते ही बनती है, और इसीलिए यह यहाँ के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित है।  

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