इस क्षेत्र में कुशल कलाकार अद्भुत मीनाकारी शिल्प का उपयोग आभूषण के बक्से, मूर्तियाँ, डाइनिंग सेट, ट्रे, कटोरे, चाबियों के छल्ले आदि जैसे सजावटी उत्पादों को बनाने के लिए करते हैं। जो कारीगर मीनाकारी का काम करते हैं उन्हें मीनाकार कहा जाता है और उनके शिल्प को सदियों से पुश्तैनी रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया जा रहा है।  

मीनाकारी रंगीन कांच के पाउडर से बने अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर की जाती है। इस कला विधा में कांच के अलावा विभिन्न अर्ध-कीमती और कीमती पत्थरों के रंगीन चूर्ण का उपयोग भी किया जाता है। इस कच्चे माल का उपयोग बाद में पक्षियों, फूलों और पत्तियों के नाटकीय रूपांकनों से विभिन्न प्रकार की धातुओं को सुशोभित या चित्रित करने के लिए किया जाता है। मीनाकारी शिल्प मूल रूप से फारस का है और राजस्थान में सबसे पहले आमेर के शासक राजा मान सिंह प्रथम (1550-1614) द्वारा लाया गया था । शुरुआत में इस शिल्प का उपयोग पारंपरिक पोल्की आभूषणों के पृष्ठ भाग पर डिजाइन बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे यह लोकप्रिय होता गया, इसमें नए-नए रूप और आकृतियों का समावेश होता चला गया जिसके सुन्दर बिम्ब यहाँ के आभूषणों में भी दिखाई देने लगे।