बसवकल्याण शहर दक्षिण भारत के सबसे पुराने और सबसे भव्य किलों में से एक, अपने ऐतिहासिक बसवकल्याण किले के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। 10 वीं शताब्दी में निर्मित यह किला यह वास्तव में एक अद्भुत संरचना है। इसे  रणनीतिक रूप से एक रक्षा बिंदु के रूप में बनाया गया था और पहाड़ियों पर बिखरी चट्टानें इस मजबूत किले की दीवारों के साथ परस्पर जुड़ी हुई हैं। किले में प्रवेश सात द्वारों से होता है, जिनमें से पांच भलीभांति संरक्षित हैं। मुख्य द्वार पर बुलंद गलियारों वाली एक ठोस मेहराब स्थित है। इस मेहराब से दो सीढ़ियाँ जुड़ी हुई हैं, जिनके माध्यम से गलियारों तक पहुँचा जा सकता है। इस किले के मुख्य द्वार को अखंड दरवाजा कहा जाता है और इसे लाल पत्थर के चार प्रस्तरों से बनाया गया है।  

अतीत में कल्याणी के रूप में जाना जाता बसवकल्याण 1050 से 1195 तक पश्चिमी चालुक्यों की राजधानी थी। कलचुरियों ने भी यहां अपनी राजधानी बनाए रखी। यह लिंगायत सुधारवादी, बासवन्ना की जन्मभूमि भी है, जो वीरशैवों के शैव संप्रदाय के संस्थापक थे। बासवकल्याण में बसवन्ना की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक स्थित है, जो हर साल बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित करती है।  

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