केरल का कासरगोड क्षेत्र यहाँ के मंदिरों और चर्चों में की जाने वाली लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। बेकल और उसके आस-पास के इलाकों में मंदिरों के दरवाजों पर देवी-देवताओं की छवियों को उकेरा गया है, जबकि मंदिर के शीर्ष पर की जाने वाली लकड़ी की त्रियायामी नक्काशी इनकी प्रमुख विशेषता है। लकड़ी नक्काशी की प्रक्रिया में कागज के एक टुकड़े पर उसके चित्र को उकेरा जाता है जिसे एक तेज चाकू का उपयोग करके किनारों से काट लिया जाता है। ऐसा करने से प्राप्त कटे हुए चित्र को फिर से नक्काशी का प्रारूप चिन्हित करने के लिए लकड़ी पर रखा जाता है, जिसके बाद कलाकार अंत में लकड़ी को विभिन्न आकृतियों और रूपरेखाओं के अनुसार उकेरते हैं। यह बात ध्यान में रखना दिलचस्प है कि कागज़ पर कटे हुए प्रारूपों का उपयोग केवल बुनियादी रूपरेखा निर्धारित के लिए किया जाता है, जबकि आगे की अधिकांश जटिल नक्काशी का कार्य यहाँ के कलाकार अपनी कल्पना और रचनात्मकता के आधार पर ही करते हैं। लकड़ी की वस्तुओं को तराशने के लिए आधार बनाए जाने वाले विषयों में पौराणिक महाकाव्यों, पुष्पसज्जा और पशुओं की मूर्तियों के दृश्य शामिल हैं। इसी प्रकार यहाँ लकड़ी की चौखटें और प्राचीन फर्नीचर की वस्तुएँ भी लकड़ी की नक्काशी के उपयोग से बनाई जाती हैं। कुछ शिल्पकार भगवान बुद्ध और ईसा मसीह की मूर्तियाँ, कथकली के मुखौटे, पेन स्टैंड और ऐसी अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए गुलाब की लकड़ी का उपयोग करते हैं।

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