पीतलखोरा की गुफाएं, चंदोरा पहाड़ी पर पत्थरों को काट कर बनाई गई 14 बौद्ध गुफाओं का एक समूह है जो 2री शताब्दी ईसा पूर्व की हैं। ये बेसाल्ट पाषाण गुफाएं देश में पत्थरों को काटकर बनाई गईं वास्तुकला के शुरुआती उदाहरणों में से हैं, और यह इस क्षेत्र के सभी जगहों से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। जबकि गुफाओं में से चार चैत्य यानी प्रार्थना कक्ष हैं, बाकी विहार यानी आवासीय कक्ष हैं। यहां की सभी गुफाएं हीनयान काल की हैं, पर साथ ही यह महायान काल (छठी शताब्दी) के चित्रों को दर्शाती हैं। गुफाओं के पास के एक सुन्दर झरने को पार कर आप एक सुन्दर परिसर में आते हैं, और इस परिसर में यक्ष आकृतियों, सैनिकों, हाथियों की मूर्तियों के साथ साथ गज लक्ष्मी की एक पुरानी मूर्ति भी है। इसके अलावा यहां बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए एक प्राचीन और अनोखी प्रणाली भी देखने को मिलती है। तीसरी गुफा को मुख्य चैत्य माना जाता है, जिसमें मूल स्तंभों को अजंता शैली वाली चित्रकारियों से सजाया गया है। यहां भगवान बुद्ध के कई सुंदर चित्र हैं जिनमें उन्हें बैठे और खड़ी मुद्राओं मे दिखाया गया है।गुफा विहार का निर्माण पारंपरिक योजना के साथ किया गया है जिसमें केंद्र में एक बड़ा कक्ष और इसके तीन दीवारों के पीछे छोटे छोटे आवासीय कक्ष हैं। चौथी गुफा एक अनोखी नक्काशी की गई विहार है, जो स्तंभों और जाली की खिड़कियों से सजी है। इसका विशाल द्वार के दोनो ओर दो द्वारपाल (संतरी) हैं, जिनकी वेशभूषा पर शक शैली का प्रभाव दिखता है, विशेष रूप से सुंदर हैं। साथ की दीवार के पीछे, एक नहर के माध्यम से बहने वाला पानी, नक्काशीदार नाग की मूर्ति के पांच फनों से गिरता है। यहां एक और अनोखी श्रृंखला है जिसमें नौ हाथियों की एक पंक्ति के साथ एक प्राकृतिक आकार के घोड़े की मूर्ति भी है जिसके साथ एक पुरुष की आकृति है जिसे 'चौरी' धारक कहा जाता है। यहां पायी गई अधिकांश अन्य मूर्तियां नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हैं।

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