भव्य 'स्वराज भवन' से लेकर जीवंत 'सरस्वती घाट' तक, प्रयागराज में यात्रियों के देखने के लिए बहुत कुछ है।

बेंत का फर्नीचर

प्रयागराज शहर बेंत के खूबसूरत फर्नीचरों के लिए प्रसिद्ध है। बेंत से बने हुए सोफे से लेकर कुर्सियों तक पर्यटकों के लिए यहां बहुत कुछ है। बेंत और बांस के फर्नीचर बनाने की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है और यह कई चरणों में बनाया जाता है। सबसे पहले लंबे बांस की छड़ें जरूरत के अनुसार काट ली जाती हैं और फिर उन्हें कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो दिया जाता है ताकि वे नमी को सोख सकें। इसके बाद इन लकड़ियों को मिट्टी के तेल वाले लैम्प से गर्म किया जाता है और मुंगरी से हल्के हाथों से पीटकर मन मुताबिक आकार में मोड़ दिया जाता है। फर्नीचर के अन्य हिस्सों को भी इसी तरह बनाया जाता है और फिर बेंत की पतली पट्टियों से कसकर बांध दिया जाता है। फर्नीचर के सिरों को कील ठोंककर एक फ्रेम बनाया जाता है और फिर सैंड पेपर से उसकी पॉलिश की जाती है।

बेंत को तब तक पानी में डुबोया जाता है, जब तक वह नमी सोख नहीं लेता। फिर, इसे आवश्यक आकारों में काट दिया जाता है और इसे एक बांस के फ्रेम के चारों ओर बुन दिया जाता है। वस्तु को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए बेंत पर विभिन्न प्रकार की डिजाइन बना दी जाती है।

बेंत का फर्नीचर

झूंसी

झूंसी प्रयागराज से लगभग 7 किमी की दूरी पर स्थित है, और यह अनेक मंदिरों और आश्रमों के लिए प्रसिद्ध है।

झूंसी

म्योर कॉलेज

म्योर कॉलेज में भारतीय और गोथिक वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट संगम देखा जा सकता है। इसे ब्रिटिश वास्तुकार विलियम इमर्सन द्वारा डिज़ाइन किया गया था। इस कॉलेज के चतुष्कोणीय वीथिका में 200 फुट ऊंचा मीनार या टॉवर बनी है। इसकी फर्श संगमरमर और मोज़ेक से बनी है और इस गुंबदनुमा मीनार में मुल्तान की चमकती टाइलों का प्रयोग हुआ है। यह कॉलेज निस्संदेह शहर की सबसे प्रभावशाली इमारतों में से एक है।

म्योर कॉलेज

मायो मेमोरियल हॉल

मायने मेमोरियल और थॉर्न हिल के निकट स्थित मायो मेमोरियल हॉल के अंदरूनी हिस्से, लंदन के साउथ केंसिंगटन संग्रहालय के प्रोफेसर गैंबल के डिजाइन और चित्र द्वारा अलंकृत हैं। 180-फुट ऊंचे टॉवर के साथ बना यह बड़ा हॉल वर्ष 1879 में बनकर तैयार हुआ था और इसका उपयोग सार्वजनिक बैठकों और रिसेप्शन के लिए किया जाता था।

मायो मेमोरियल हॉल

स्वराज भवन

शहर का प्रमुख संग्रहालय, 'स्वराज भवन' नेहरू परिवार की अनदेखी तस्वीरों से सुशोभित है। यह कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू का घर हुआ करता था। मोतीलाल नेहरू ने इसे एक जीर्ण भवन के तौर पर 19,000 रूपए में खरीदा था। फिर उन्होंने इसे एक राजसी निवास में बदल दिया। उन्होंने वर्ष 1930 में अपना यह घर देश को दान कर दिया।आरंभ में स्वराज भवन कांग्रेस का मुख्यालय था। देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जन्म स्थली स्वराज भवन ही थी।

इस संग्रहालय का दौरा करते समय पर्यटक यहां ऊंची-ऊंची छत वाले वे कमरे देख सकते हैं, जहां कई ऐतिहासिक बैठकें हुआ करती थीं और अनेक अभियानों की योजना बनाई जाती थी। आप वह आलीशान फर्नीचर भी देख सकते हैं; जिसका प्रयोग नेहरू जी किया करते थे। फ़ारसी चित्रपट से लेकर वेनिस के कांच के बने सामानों से सजा यह घर भव्यता की एक अलौकिक तस्वीर बयां करती है।

स्वराज भवन

सरस्वती घाट

प्रयागराज का सबसे पवित्र, 'सरस्वती घाट' प्रयागराज किले के पास स्थित है। यह घाट प्रतिदिन होने वाली गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है। रात के वक्त होने वाली आरती के दौरान, जब इसे दियों, मोमबत्तियों और दीपों की पंक्ति से सजाया जाता है, तब यह घाट बेहद शानदार दिखाई देता है। यह अनुष्ठान देवी गंगा का एक पूजा समारोह है, जिसमें हजारों भक्त दूर-दूर से शामिल होने आते हैं। आरती का नेतृत्व भगवा पहने पुजारियों द्वारा किया जाता है, जो बहु-स्तरीय लैंप के साथ अनुष्ठान आरंभ करते हैं। आप यहां से नाव की सवारी भी कर सकते हैं और संगम तक भी जा सकते हैं।

सरस्वती घाट