आगरा संगमरमर पर जड़ाऊ कार्य के लिए प्रसिद्ध है जो पत्थर को काटकर किया जाता है। आगरा पच्चीकारी के लिए भी प्रसिद्ध है। इसमें महीन नक्काशी का कार्य किया जाता है। इस कला का उत्थान मुग़लकाल के दौरान हुआ विशेषरूप से ताजमहल के निर्माण के बाद। इस तकनीक में पत्थर व संगमरमर रंगीन आकार में काटे जाते हैं। तत्पश्चात् इन्हें संगमरमर की वस्तु में पहले से बने खांचों में डाल दिया जाता है जो फूलों की पंखुड़ियों एवं पत्तियों के आकार के होते हैं। जब इन्हें जोड़कर तैयार किया जाता है तब यह संपूर्ण फूल अथवा पशु की आकृति बन जाती है।

ऐसा माना जाता है कि यह इतालवी कला जिसे पच्चीकारी कहा जाता है, उसी के समान होती है। इसकी शुरुआत 16वीं सदी में हुई थी। यूरोप से भारत आए यात्रियों के साथ यह कला भारतीय उपमहाद्वीप में आई थी, जिन्होंने इस कला से सम्राट शाहजहां को प्रभावित किया था। ताजमहल पच्चीकारी का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसमें फूलों की आकृतियां उकेरी गई हैं। 350 वर्षों से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। अमीर खुसरो के मकबरे में भी पच्चीकारी की गई है।  

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