calendar icon Thu, June 18- Fri, June 19, 2020

यह पर्व लद्दाख में दो दिनों के लिए मनाया जाता है। युरू ख्बग्यात बौद्ध सम्प्रदाय का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसका आयोजन ऐतिहासिक बौद्ध मठ लामायुरू के प्रांगण में किया जाता है। दुनिया भर से श्रद्धालुगण, जापान, कोरिया, तिब्बत इत्यादि देशों से लामा एवं बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु इस पर्व में हिस्सा लेने यहां आते हैं। इस त्योहार की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मुखौटे पहनकर पारंपरिक नृत्य किया जाता है। वे यह नृत्य इसलिए करते हैं ताकि बुरी आत्माएं इस स्थान से दूर रहें। ढोल और करताल की धुन पर बौद्ध भिक्षु चेहरे पर बड़े-बड़े मुखौटे धारण करके तथा रंग-बिरंगी पोशाकें धारण कर गोले में एक साथ नृत्य करते हैं। इस अवसर पर बड़े आकार की पारंपरिक तूतियां भी बजाई जाती हैं। इनकी मधुर धुन पूरी घाटी में गूंज उठती हैं। यहां का अतिसुंदर परिदृश्य देखकर और यह पारंपरिक संगीत सुनकर आगंतुकों को बहुत संतोष प्राप्त होता है और शांति की अनुभूति होती है। प्रार्थना-चक्र को हर कोई घूमाता है, इन्हें घूमते हुए देखना अपने आप में अद्भुत अनुभव प्रदान करता है। बौद्ध धर्म की परंपराओं को करीब से देखना हो अथवा भगवान बुद्ध की शिक्षा के संबंध में जानना हो तो, इस पर्व में हिस्सा लेना एक सुअवसर होगा।

क्यों मनाते हैं यह पर्व?

यह पर्व मृत्यु के देवता यम और दूसरे बुद्ध अर्थात पद्मसंभव को समर्पित होता है।