गोरीचेन चोटी

समुद्र तल से 21,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित, अरुणाचल प्रदेश की गोरीचेन चोटी सबसे ऊंची आरोह्य चोटी है। अपनी अधिक ऊंचाई के कारण, यह सालो भर बर्फ से ढ़की रहती है, और यही कारण है कि यह कई अनुभवी पर्वतारोहियों और एडवेंचर पसंद ट्रेकर को अपनी ओर आकर्षित करती है। मुख्य शहर से 164 किमी की दूरी पर स्थित, इस चोटी को स्थानीय नाम सा-न्गा-फु से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है 'देव का राज्य'। इस चोटी का, बोमडिला और तवांग के बीच की सड़क से, सबसे स्पष्ट दृश्य देखने को मिलता है। मोनपा जनजाति के लोग इस चोटी की पूजा करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है और यह उन्हें सभी अमंगलों से सुरक्षित रखती है। स्थानीय लोग इसे अक्सर विशाल सफेद हाथी कहते हैं, क्यों कि इस पर आच्छादित सफेद बर्फ इसे इस क्षेत्र की सबसे विशिष्ट और सहज ही पहचाने जाने वाली चोटियों में से एक बनाती है। इसका दृश्य मंत्र मुग्ध करने वाला है, क्योंकि जहां नीचे की तरफ घाटियों के हरे-भरे घास के मैदान और ताजे जंगल के कई टुकड़े दिखाई देते हैं, वहीं उससे उपर की ओर उभरती चमकदार सफेद बर्फ से ढकी चोटियां हैं जो सूर्य की किरणों से जगमगाती रहती हैं।

 गोरीचेन चोटी

शोंगा त्सेर झील

बर्फ से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा, शोंगा त्सेर झील एक खूबसूरत, नीरव और शांत झील है, जो तवांग शहर के बाहरी इलाके में पड़ता है। यहां की शांति, इसे ध्यान लगाने के लिए इसे एक आदर्श स्थल बनाती है। पर्यटक, इस झील के आसपास के क्षेत्रों में ट्रैकिंग कर सकते हैं, और साथ ही सदाबहार देवदार के जंगलों और घाटि के सुरम्य दृश्य का आनंद ले सकते हैं। इस झील के चारों ओर, पेड़ों और शिलाखंडों पर बंधे, बौद्ध प्रार्थना के अनेक झंडे हवा में लहराते देखे जा सकते हैं। यह झील पक्षी प्रेमियों को काफी आकर्षित करता है क्यों कि वे यहां, झील के चारों ओर की पगडंडियों पर सैर करते हुए रूडी शेलडक पक्षियों को, जो वायुमंडल में बहुत ऊचाई पर उड़ने वाली पक्षियों की एक प्रजाति है, मुख्यतः सर्दियों में देख सकते हैं। इस पक्षी को आम भाषा में ब्राह्मणी बतख कहा जाता है। इस झील को माधुरी झील के नाम से भी जाना जाता है क्यों कि यहां कोयला नामक हिंदी फिल्म के एक गीत को, अभिनेत्री माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया था। पर्यटक इस क्षेत्र की नैसर्गिक सुंदरता का लुफ्त उठाने के लिए, यहां एक प्रकृति सैर के लिये भी आ सकते हैं।

इस प्राकृतिक झील का निर्माण, कई दशक पहले एक प्राकृतिक दवाब के चलते बना जब इस क्षेत्र में आये एक भूकंप बाद अनेक तेज बाढ़ों का सिलसिला आया। प्राकृतिक दवाब से बने इस बड़े खड्डे में, आस पास की नदियों की धाराओं का पानी भरने लगा और यह झील हिमालय के खनिज समृद्ध पानी की हो गई। भूकंप के दिनों के कुछ सूखे पेड़ के तने, अभी भी इस झील के तल में दबे पड़े हैं, जो इसके परिदृश्य को और अद्भुत बनाते हैं।

 शोंगा त्सेर झील

मेचुका

मेचुका, जो आम बोलचाल की भाषा में मेनचुखा के नाम से जाना जाता है, अरुणाचल प्रदेश का एक छोटा सा शहर है जो देवदार के पेड़ों और झाड़ियों से घिरा है और समुद्र के तल से 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस हिमालयी क्षेत्र में अभी तक ज्यादा पर्यटक नहीं आए हैं, अतः इसका सौंदर्य अभी भी बरकरार है। इसका मुख्य आकर्षण, महायान बौद्ध संप्रदाय का 400 वर्ष पुराना सामतेन योंगचा मठ है। यहां कई प्राचीन प्रतिमाएं है जिनमें गुरु पद्मसंभव की प्रतिमा भी है, जिन्हें निंगमा संंप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। यहां, तिब्बती पौराणिक कथाओं पर आधारित लोक कथा के पात्रो की रंगीन वेशभूषा और मुखौटे भी मिलते हैं। पारंपरिक नृत्य के दौरान, जिसे चाम नृत्य कहा जाता है, अक्सर इन मुखौटों को पहना जाता है। यह एक ओजपूर्ण और जीवंत नृत्य है, जो लोगों को अपने भीतर की गलत भावनाओं को त्यागने और बौद्ध धर्म के अनुसार करुणा और प्रेम जैसे सद्गगुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यहां कई तिब्बती त्योहार, विशेषकर लोसार, पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। लोसार त्योहार, नए साल की शुभ शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी यहां उपासना करने आते हैं।

मेचुका अपने अक्षुण सोंदर्य, सांस्कृतिक जनजातियों और लहराती नदियों के लिए भी जाना जाता है, जो कि कयाकिंग और राफ्टिंग जैसे खेलों के लिए उपयुक्त स्थान है। तिब्बत में मानसरोवर झील के आसपास के ग्लेशियरों से निकलने वाली स्यांग नदी, मेचुका से होकर बहती है और घाटी की एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है। यहां कई बांस के पुल हैं, जो इस नदी के किनारों को जोड़ते हैं। नदी के ऊफनते पानी के ऊपर जब ये बांस के पुल, चलने से हिलने लगते हैं तो यह अनुभव पर्यटकों को रोमांच से भर देता है। इस कृषि क्षेत्र की घाटियों की ढलानों पर, चावल के सीड़ी नुमा खेत और अनेक छोटे फार्म देखे जा सकते हैं। मेचुका घाटी मेम्बा, रामो, बोकर और लिबो जनजातियों का घर है।

 मेचुका

बुमला दर्रा

बुमला दर्रा, 15,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, और अपनी तीखी ऊंचाई कारण यहां लगभग सालो भर बर्फबारी होती रहती है। यहां से तिब्बती पठारों की सुंदरता देखते ही बनती है। इस दर्रा की ओर जाने वाले मार्ग आगंतुकों को कई तंद्रालु बस्तियों और प्राकृतिक झीलों के समीप से ले जाते है, जो आपकी यात्रा को यादगार बना देते हैं। भारतीय सेना बुमला दर्रा का रखरखाव करती है, और यह दर्रा उन लोगों को जरूर देखना चाहिए, जो यह देखना चाहते हैं कि भारतीय सेना कितनी विषम जलवायु में हमारी सीमा की सुरक्षा करती है। यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को अपने साथियों को कहने के लिए कई कहानियों होंगी कि भारतीय सेना ने उनका कैसे स्वागत किया, या क्या जलपान कराया और साथ ही उन्हें यह भी बताया कि ऊंचे इलाकों और तीव्र ठंढ़े जलवायु में कैसे रहा जाता है। बुमला दर्रा, भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच, आधिकारिक तौर पर सहमत बीपीएम (बॉर्डर पर्सनेल मीटिंग) के चार बिंदुओं में से एक है। निर्दिष्ट तिथियों पर, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी दोनों पक्षों द्वारा आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें लोग बड़े चाव से देखते हैं। एक टेलिस्कोप और कुछ दूरबीन भी भारतीय सेना की चेक पोस्ट के पास रखी रहती है। यह टेलिस्कोप और दूरबीन उन पर्यटकों के लिए होती है, जो यह देखना चाहते हैं कि सीमा के उस पार क्या है। यहां मौजूद सेना कैंटीन में गर्म चाय, पानी और कुछ गर्म मिठाई मिल जाती है जो उच्च ऊचाई (हाई ऑल्टिट्यूड) पर पर्यटकों की भूख और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा करती है। दर्रा पर जाने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जिसे तवांग में उपायुक्त कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है।

 बुमला दर्रा

बैप तेंग कांग जलप्रपात

यह अद्भुत दूधिया बैप तेंग कांग जलप्रपात, जिसे नुरानंग जलप्रपात भी कहा जाता है, यहां का एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है, जो तवांग से 80 किमी की दूरी पर स्थित है। यह जलप्रपात, 100 फीट की ऊंचाई से, एक सफेद चादर के रूप में गिरता है, और अरुणाचल प्रदेश के हरे भरे पहाड़ों के बीच अपना रास्ता बनाते हुए बहता है। यह एक अद्भुत पिकनिक स्पॉट विश्व के छत पर है, और इस जगह की ऊंचाई आपको बादलों के बीच चलने का अहसास दिलाती है। इस जलप्रपात के आस-पास के क्षेत्र में हरियाली ही हरियाली है, जहां कुछ घंटे पैदल घूमकर इस क्षेत्र के सोंदर्य का लुफ्त उठाया जा सकता है। कुछ दूर से आती पानी का घनघोर गर्जन और आसपास की हल्की-हल्की धुंध का एक अपना ही मज़ा है। दिन के समय यात्रा कराने वाली बसें और टैक्सी भी शहर में उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा बहुत ही आसानी से इन झरनों तक पहुंचा जा सकता है। यहां कुछ फूड स्टाल भी हैं, जहां गर्म चाय के साथ-साथ स्नैक्स भी आसानी से मिल जाते हैं। हिमालय के समृद्ध और खनिज से भरे पानी को चिकित्सीय माना जाता है, और आप झरने द्वारा बने छोटे छोटे तालाबों में गर्मियों के महीनों में तैराकी भी कर सकते हैं।

 बैप तेंग कांग जलप्रपात

दिरांग

दिरांग गांव अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी भाग में एक ऐसा स्थान है, जहां रास्ते में पर्यटक रात भर ठहर सकते हैं। यह गांव असम के जोरहाट और तवांग के ठीक बीचोबीच, नैसर्गिक कमेंग नदी के तट पर स्थित है। यह अक्षुण स्वार्गिक गांव का मौसम, अधिक ऊंचाई न होने के कारण, सुहावना रहता है। यह छोटा सा गांव, इस क्षेेत्र की सभी विशिष्ट गुणों को संजोये हुए है, चाहे वह परिदृश्य हो, संस्कृति या भोजन। यहां की यात्रा से पर्यटक, अरुणाचल प्रदेश की सभी बेहतरीन चीजों से परिचित हो सकते हैं। यहां के सबसे पुराने मठों में से एक है, खस्तुंग गोम्पा मठ, जो गांव से थोड़ी चढ़ाई पर स्थित है। गांव की पहाड़ी के नीचे, हिमालय झंडों से सज्जित एक फुट ब्रिज के माध्यम से, तेज तरंग वाली दुरंग नदी तक पहुँचा जा सकता है। यहां, भेड़-बकरियों को चरते हुए देखा जा सकता है, और कभी-कभी पर्यटक यह पायेंगे कि गांव के स्थानीय लोगों उन्हें अपने घरों में चाय के लिये आमंत्रित कर रहें हैं। यह गांव अपनी मेजबानी के लिये प्रसिद्ध है। गांव में एक बाज़ार है, जहां से आप स्थानीय हस्तशिल्प और कलाकृतियों के उम्दा स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं। इस पहाड़ी की चोटी पर दिरांग जॉन्ग किला स्थित है, जो भूटानी पाषाण वास्तुकला की शैली में निर्मित है। वहां तक चट्टानो से कटे, पत्थर की बनी लम्बी सीड़ियों से चढ़ कर पहुंचा जा सकता है। इस किले का डिजाइन कुछ स्थानीय तकनीकियों का इस्तेमाल करके किया गया है, ताकि इसके निवासियों को कड़ाके की सर्दी से बचाया जा सके। इस गांव का एक और रोचक आकर्षण, गर्म पानी का एक सोता है, जिसे यहां के स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं।

 दिरांग