धनकड़

 धनकड़ शहर स्पीति के सबसे लोकप्रिय स्थलों में से एक है। पर्यटको के लिए यहां का धनकड़ गोम्पा या धनकड़ मठ प्रमुख आकर्षण का केद्र है। 1,000 साल पुराना यह मठ लगभग 3,370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 'धंकार' शब्द का अर्थ स्थानीय बोली में 'किला' है। यह कभी स्पीति के शासक गैरो का महल था। निर्माण के शुरुआती दिनों में इस किले नुमा मठ का उपयोग जेल के रूप में भी किया गया था। भोटी लिपि में लिखित कई बौद्ध धर्मग्रंथ यहां मिल सकते हैं, साथ ही इस मठ में वज्रधारा की चांदी की आदमकद मूर्ति है, जो एक कांच की वेदी पर स्कार्फ और फूलों से सुसज्जित है। इस मठ का एक अन्य आकर्षण, वैरोचन या 'ध्यान बुद्ध' की एक प्रतिमा है, जो अपनी भव्यता से सबको विस्मित कर देती है। इस मठ में लगभग 150 बौद्ध लामाओ के रहने की व्यवस्था है। धनकड़ मठ के ऊपर स्थित धनकड़ झील, इस मठ से लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित है, पर्यटक यहां ट्रैकिंग का लुप्त भी उठा सकते हैं।

 धनकड़

ताबो मॉनेस्ट्री

मिट्टी की झोपड़ियों से भरा यह गांव सुंदर आकर्षणों को अपने में समेटे हुए है। आमतौर पर मठ पहाड़ियों पर बने होते हैं। लेकिन इसके विपरीत ताबो मठ पहाड़ियों के बीच एक समतल घाटी के तलहटी में बसा हुआ है। मठ की दीवारों पर चित्रों और प्लास्टर की मूर्तियां बनी हुईं हैं। महाराष्ट्र की अजंता की गुफाओं से प्रेरित होकर लोग इसे 'हिमालय का अजंता' भी कहते हैं। 996 ई. में स्थापित ताबो मठ, स्पीति घाटी का सबसे बड़ा बौद्ध मठ परिसर है। इसे 'ताबो चोस कोर मठ' के नाम से भी जाना जाता है। यह मठ, तिब्बती बौद्ध भिक्षु, रिनचेन ज़ंगपो द्वारा पश्चिमी हिमालय में गुगे के राजा, येशे हे के लिए स्थापित किया गया था। इसमें नौ मंदिर, 23 चोर्तेंस (बौद्ध स्थल) और भिक्षुओं के रहने के कक्ष हैं। इसके अलावा, इसमें चट्टान में खोदी गई कई गुफाएं हैं जहां बौद्ध भिक्षु ध्यान लगाते थे। इस मठ के आसपास कुछ समकालीन संरचनाएं हैं, जिनमें से स्क्रॉल पेंटिंग और पांडुलिपियां विशेष हैं। जो महत्त्व बौद्ध धर्म में तिब्बत के थोलिंग मठ का है, वही महत्त्व हिमालय के बौद्ध अनुयायी के बीच टाबो मठ का है। तिब्बती भाषा सीखने के लिए वर्षों से भारतीय पंडित ताबो मठ का दौरा करते रहे हैं। सन् 1975 के भूकंप के बाद, मठ का पुनर्निर्माण किया गया और एक नया असेंबली हॉल भी बनाया गया जिसे स्थानीय भाषा में 'डु-कांग' भी कहते हैं। वर्ष 1983 और 1996 में 14वें दलाई लामा ने यहां कालचक्र समारोह का आयोजन किया। इस कालचक्र समारोह में दीक्षा एवं पुनर्जीवन जैसे विषयों पर चर्चा की गई। ऐतिहासिक खजाने के रूप में इस मठ का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के जिम्मे है। यह विभाग हेरिटेज टूरिज़म में रूचि रखने वाले पर्यटको को ताबो मठ आने के लिए प्रोत्साहित करता है।

 ताबो मॉनेस्ट्री

नाग्यूड गोम्पा

तिब्बती ग्रंथों में से एक, तांग आरग्यूड, के 87 खंडों का संशोधन बौद्ध विद्वानों द्वारा इसी गोम्पा में रह कर किया गया था। यह शुरु में हिक्किम गांव में था लेकिन सन् 1975 के भूकंप में यह नष्ट हो गया। हिक्किम में अभी भी इसके कुछ अवशेष हैं। आजकल नाग्यूड गोम्पा जो सा-क्या-पा संप्रदाय से संबंधित है, कॉमिक गांव के पास स्थित है।

नाग्यूड गोम्पा

की (क्ये, की) मठ

स्पीति घाटी में सबसे बड़े मॉनेस्ट्री (बौद्ध मठ) में से एक है 'की मॉनेस्ट्री', यह समुद्र तल से 4,166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आध्यात्म में रूचि रखने वाले यात्रियों के लिए 'की मॉनेस्ट्री' एक दिलचस्प पड़ाव है। इस शांत बौद्ध स्थल की दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग और प्लास्टर की छवियां मौजूद हैं। ये सब 14वीं शताब्दी की मॉनेस्ट्री वास्तुकला के उदाहरण हैं। दर्शकों को इनकी भव्यता अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इसके साथ-साथ यहां पर अद्भुत वाद्य यंत्र भी रखे हुए हैं। इन यंत्रों का प्रयोग छाम नृत्य के दौरान ऑर्केस्ट्रा में  किया जाता है। यहां हथियारों का एक सुंदर संग्रह भी है, शायद इनका उपयोग तब होता होगा, जब मठ पर हमलावरों द्वारा हमला किया जाता होगा, या फिर उन लोगों पर नज़र रखने के लिए इनका उपयोग किया जाता होगा, जो मठ के उपदेशों का पालन करने से इनकार करते होंगें। अगस्त 2000 में दलाई लामा ने यहां कालचक्र समारोह का आयोजन किया था। इस आयोजन का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के बुद्धत्व को जगाना है। इसके लिए प्रार्थना, शिक्षण, आशीर्वाद, भक्ति, मंत्र, योग और ध्यान आदि विधि का उपयोग किया जाता है। यह मूल रूप से शांति की खोज का मार्ग है। लोगोंं का मानना है कि इस दीक्षा समारोह में उपस्थिति मात्र से व्यक्ति कष्टों से मुक्त हो सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह समारोह मुख्य पांच आयामों पर केंद्रित है जैसे-ब्रह्मांड विज्ञान, मनोभौतिकी, दीक्षा, साधना-अध्ययन और बुद्धत्व। यह मठ विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें अनेक कमरे हैं। ये कमरे एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े है मानो कोई भूल भुलैया हो। इसके कुछ हिस्से तीन मंजिल ऊंचे हैं। यह गोम्पा मठ और किले, दोनो के रूप में इस्तेमाल होता था, माना जाता है कि इसका निर्माण बौद्ध गुरु अतीसा के शिष्य ड्रोमन ने (1008–1064 ईस्वी)  करवाया था। इसके निर्माण के निश्चित समय का पता नहीं है। आज की तारीख में यहां सैकड़ों लामा धार्मिक शिक्षा लेने आते हैं।

 की (क्ये, की) मठ

ल्हालुंग मठ

हालुंग मठ, हालुंग गांव के शीर्ष पर स्थित है और साधारण संरचना के बावजूद एक प्राचीन रत्न जैसा दिखता है। इसका मुख्य चैपल (सेरखांग गोम्पा) एक पीले रंग से रंगी टीन की छत के नीचे स्थित है और आंतरिक दीवारें तीन तरफ से जीवंत और रंगीन मिट्टी-प्लास्टर की मूर्तियों की एक सुंदर शृंखला सी बनाती हैं। वे इतने पुराने हैं कि कुछ लोग मानते हैं, कि वे ईश्वर द्वारा बनाए गए थे, इनको मनुष्य ने नहीं बनाया। यह मठ घाटी के सबसे पुराने मठों में से एक है और समुद्र तल से 3,658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पास में लैंगखारपो चैपल के पास सफेद देवता की एक विशिष्ट चौमुखी प्रतिमा है, जो बर्फ से बने शेरों के पोडियम पर स्थित है।

 ल्हालुंग मठ

शशूर गोम्पा

द्रुग्पा संप्रदाय का यह छोटा बौद्ध मंदिर कीलोंग से 2 किमी दूर प्रकृति की गोद में बसा है। इसे 16वीं शताब्दी में बनाया गया था, घाटी से 6,000 मीटर बसे, यह नीले देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है। यह एक प्रसिद्ध शिक्षण केंद्र है और इसकी वास्तुकला भी काफी प्रसिद्ध है।

शशूर गोम्पा

नाको मठ

लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, इस मठ की स्थापना 11वीं शताब्दी में एक प्राचीन प्रसिद्ध अनुवादक लोचन रिंचेन ज़ंगपो ने की थी। यह स्पीति घाटी से लगभग 116 किमी दूर नाको गांव में स्थित है। मठ को लोत्सवा झकांग भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है अनुवादक का परिसर। नाको झील के बगल में स्थित, इस शांत मठ का निर्माण प्रसिद्ध ताबो मठ की तर्ज पर किया गया है। इसे चार हॉल या चैपल में विभाजित किया गया है। मठ के द्वार पर बारीक नक्काशी की गई है। वज्रयान बौद्ध धर्म से प्रेरित इस मठ की दीवारें सुंदर चित्रों से सजी हैं। नाको मठ में स्तूप के साथ-साथ मिट्टी और धातु से बनी कई मूर्तियों और शास्त्रों (कंग्युर) का संग्रह भी है, इन शास्त्रों में भगवान बुद्ध की दी शिक्षाएं संग्रहित हैं।

नाको मठ

कुंगरी गोम्पा

पिन घाटी में स्थित, कुंगरी गोम्पा 1330 ई. में निर्मित स्पीति घाटी का दूसरा सबसे पुराना मठ है। इसमें एक दूसरे से अलग तीन आयताकार खंड हैं और इनका मुख पूर्व की ओर है। हाल ही में, इस मठ को नवीकरण के लिए खासा विदेशी दान मिला। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि बौद्ध धर्म में प्रचलित तांत्रिक पंथ के लोग यहां भी रहे हैं।

कुंगरी गोम्पा