14वीं और 15वीं शताब्दी में बना, ईटा किला, जिसका शाब्दिक अर्थ है ईंटों का किला, अरुणाचल प्रदेश राज्य का एक महत्वपूर्ण विरासत स्थल है। इसका आकार अनियमित है और उसी युग की ईंटों से बना है। अपनी ऊंची, लगभग अटूट दीवारों के बूते, किले ने कई वर्षों तक इस क्षेत्र की रक्षा की है सो शहर का नामकरण भी उसी पर हुआ।
ईटा किला, ईंट की प्राचीरों और कुदरती मेंड़ों से सीमाबद्ध है। माना जाता है कि उन दिनों किले के निर्माण में कोई 80 लाख ईंटों का उपयोग किया गया था। किले के निर्माण के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि इसके बनने में 45,000 मानव-दिवस (मैन डेंज़) लगे। किले में तीन अलग-अलग प्रवेश द्वार हैं-पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी। किले की पूर्वी प्राचीर जहां आधे किलोमीटर से अधिक लंबी है और उसमें एक द्वार है, वहीं दो फाटकों वाली पश्चिमी प्राचीर 1.4 किमी से अधिक लंबी है। उत्तरी और दक्षिणी दिशाओं में एक-एक किलोमीटर से अधिक लंबी खड़ी मेंड़ें इसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थीं। पत्थर की चिनाई से बना पूर्वी द्वार, डिक्रांग घाटी के दोइमुख गांव में खुलता है, जबकि दक्षिणी द्वार ईंट के साथ-साथ पत्‍थर व पत्थर-स्लैबों से बनाया गया था। फूलों और भावपूर्ण डिज़ाइनों से उन चौखटों को सुशोभित किया गया था जो दक्षिण में गोहपुर और रामघाट से किले की ओर आने वाले दुश्मनों के लिए एक चौकी के रूप में काम करते थे। मुख्य प्रवेश द्वार संभवतः पश्चिम में था और सेन्‍खी नदी के सामनेे पड़ता था।
हालांकि विद्वान लोग, ईटा किले को जितारी राजवंश के उन राजा रामचंद्र के साथ जोड़ते हैं, जिन्होंने ज़ाहिरा तौर पर 1350 और 1450 ईस्वी के बीच इसका निर्माण किया था, लेकिन एक हालिया मतानुसार इसे 1688 ईस्वी में अहोम राजा, चक्रध्वज सिम्हा द्वारा बनवाया गया था।

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