मलखा एक हाथ से बना हुआ सूती कपड़ा है, जो प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है। इसका उपयोग साड़ी, मेज़पोश, दुपट्टे और चादर बनाने के लिए किया जाता है और इसे शहर भर के स्थानीय हस्तकला की दुकानों पर खरीदा जा सकता है।मलखा के विकास की कहानी काफी प्रेरणादायक है। औद्योगिक क्रांति से पहले, हथकरघा कपड़ा उद्योग भारतीय समाज का प्रमुख उद्योगों में से एक था। यह उद्योग काफी विकसित था और सदियों से फलता-फूलता रहा था। हालांकि, औद्योगिक क्रांति के बाद, ध्यान इस पर केन्द्रित हो गया कि मशीनों से कितना सस्ता और कितना ज्यादा कपड़ा बनाया जाए। इस प्रकार, बड़ी बड़ी करघा मशीनों उन हथकरघा कारीगरों पर हावी हो गईं जो इस पारंपरिक कला से अपनी आजीविका चलाते थे। इसके अलावा, इस नये तरीके से कपड़ा बनाने से आज पृथ्वी, वातावरण और पानी भी प्रदूषित हो रहे हैं।

इस चलते मलखा, पहले के हथकरघा की पुनः बहाली के रूप में आया। इसकी अनूठी इंजीनियरिंग प्राकृतिक रंगों के साथ, भारतीयों के हजार साल पुराने कपड़ा बनाने के कौशल को जोड़ती है।मलखा के विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान, बड़ी इकाइयों को छोटी इकाइयों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, यानी मशीनों को दरकिनार करते हुए, कच्चे माल पर स्थानीय कौशल का उपयोग कर, कताई को एक व्यवहार्य व्यवसाय बनाया गया। इस प्रकार इस उद्योग से, किसान, कताई-बुनाई करने वाले सभी लाभान्वित हो रहे हैं।