हुक्के

यहाँ के हुक्के त्रिपुरा की रियांग जनजाति द्वारा बनाए जाते हैं और आम तौर पर तंबाकू जला कर धूम्रपान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इस की बनावट में एक मिट्टी का कटोरा छोटी बांस की नली द्वारा एक पानी के बर्तन से जुड़ा होता है। बर्तन का व्यास काफी बड़ा होता है और लंबाई में दो स्पर्शबिन्दु शामिल होते हैं। एक छोटे व्यास के बाँस से बनी नली, जल स्तर से नीचे से बर्तन में प्रवेश करती है। दूसरे छोर से मिट्टी का जुड़ा हुआ होता है जिसमें तंबाकू जलाया जाता है।

हुक्के

मछली जाल और मछली पकड़ने की टोकरी

मछली जाल और मछली पकड़ने की टोकरी इस राज्य की जनजातियों के मध्य प्रचलित सम्मानित शिल्प हैं। सुधा मूल रूप से आयत के आकार में बनाई गई बांस की जालनुमा चटाई होती है जिसे खुली बुनाई के माध्यम से बुना जाता है। इसे पानी में लटका कर दोनों ओर से हाथों में पकड़ लिया जाता है ताकि जाल के सामने का झुकाव पानी के प्रवाह के खिलाफ हो। जाल में फँसने वाली मछलियों को पानी से बाहर निकाल लिया जाता है और एक टोकरी में रखा जाता है। ये टोकरियाँ विभिन्न आकृतियों और आकारों में आती हैं और शंक्वाकार या बेलनाकार हो सकती हैं। 

मछली जाल और मछली पकड़ने की टोकरी

बेंत और बांस हस्तशिल्प

बेंत और बांस के हस्तशिल्प त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था में काफी बड़ा योगदान करते हैं। बेंत और बांस का उपयोग करके बनाई गई विभिन्न वस्तुओं जैसे कुर्सियां, टेबल, मैट, टोपी, बैग, हाथ के पंखे, कंटेनर आदि अत्यधिक टिकाऊ होते हैं और विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते हैं, जहां उनकी बहुत मांग है। बेंत और बांस का उपयोग आंतरिक सजावट उत्पादों जैसे कि पट्टिका, चौखटा, छत, बर्तन आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।

बेंत और बांस हस्तशिल्प

हथकरघा

त्रिपुरा राज्य में हथकरघा सबसे बड़ा और शायद सबसे पुराना उद्योग है। त्रिपुरा की जनजातियाँ अपने लिए कपड़े स्वयं ही बुनती और डिजाइन करती हैं, जो विभिन्न रंग संयोजनों व आकर्षक कलास्वरूपों में बनाए जाते हैं। रिहा और रिसा यहाँ की दो प्रसिद्ध कपड़ा निर्माण सामग्रियाँ हैं और आप त्रिपुरा में हों तो इन दोनों की जाँच करना हरगिज़ न भूलें। राज्य के प्रामाणिक हथकरघा निर्मित कपड़े विभिन्न एम्पोरियम और सड़क किनारे की दुकानों पर उपलब्ध हैं।

हथकरघा

टोकरी

त्रिपुरा की जनजातियों के लिए टोकरी निर्माण एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है। यहाँ जामेटिया फायरवुड टोकरी, रयांग टोकरी, करवला टोकरी, लाई, सेमपा खारी, खजूर की टोकरी, टुरी और अनाज भंडारण टोकरी जैसी विभिन्न प्रकार की टोकरियाँ आसानी से मिल जाएंगी। परंपरागत रूप से बाँस का उपयोग टोकरी बनाने के लिए किया जाता है, जैसे खुली बुनाई वाली टोकरियाँ, बंद-बुनाई की ढोने वाली टोकरियाँ इत्यादि।

टोकरी

बरसाती टोपियाँ व सिर के आकर्षक पहनावे

त्रिपुरा कुशल कारीगरों और कारीगरों की भूमि है, जो बहुत होशियारी से बारिश से ‘पथला’ नामक एक विशिष्ट गोलाकार बरसाती टोपी बनाते हैं। इसके शीर्ष शंकु का आधार 230 मिमी व ऊँचाई 110 मिमी होती है। वृत्ताकार आकृति को थोड़ा नीचे की ओर झुकाया जाता है और अमूमन इसका व्यास लगभग 550 मिमी होता है। यह पांच तत्वों से बने पंचकोण जैसा दिखता है, जिनमें से प्रत्येक में बांस की तीन पट्टियाँ होती हैं, जो शंकु के शीर्ष को घेरे रहती हैं। शंकु पर प्रत्येक तत्व को निरूपित षट्कोण भी तीन पट्टियों के साथ बनाए जाते हैं। बांस की पांच परस्पर जुडी हुई पट्टियाँ शंकु के शीर्ष को मजबूत बनाती हैं। इन पट्टियों को शंकु के साथ बुन कर मज़बूती से स्थापित कर दिया जाता है।

स्थानीय लोग सिर ढंकने के लिए आकर्षक पहनावा भी बनाते हैं, जो पीतल और रंगीन बेंत से बना होता है और इसे साही के काँटों, तोते के पंखों व लाल ऊन से सजाया जाता है। इस आकर्षक पहनावे का उपयोग विशेष रूप से लोक नृत्य प्रदर्शन के दौरान किया जाता है।

बरसाती टोपियाँ व सिर के आकर्षक पहनावे

स्थानीय फर्नीचर

अगरतला में बांस, बेंत और लकड़ी की बहुतायत होती है, जिनका उपयोग अनेक प्रकार के फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है। विभिन्न प्रकार के बांस सोफे, सुन्दरतापूर्वक तैयार की गई लकड़ी की अलमारियाँ, सेंटर टेबल, डाइनिंग टेबल, दीवान-कम-बेड, फोम के दीवान और डाइनिंग टेबल इत्यादि बड़े पैमाने पर अगरतला में बनाए और निर्यात किए जाते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध त्रिपुरा मूढ़ा है, जो बांस और बेंत के छिले हुए तंतुओं से बना एक छोटा सा स्टूल होता है। बाँस का उपयोग इसका बुनियादी ढाँचा खड़ा करने में किया जाता है, जबकि बेंत के छिले हुए तंतुओं से सभी तत्वों को बाँधा जाता है और सीट की बुनाई की जाती है। मूढ़े की मज़बूती व टिकाऊपन इसके बंधन की शक्ति में निहित है।

स्थानीय फर्नीचर