औंधा नागनाथ

भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि यह महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर माना गया है। कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण तेरहवीं सदी में यादवों के शासनकाल में करवाया गया था। स्थानीय मान्यता है कि मूल मंदिर असल में सात मंजिला था जो बाद में ध्वस्त हो गया। मंदिर का गर्भग्रह भूमि तल से नीचे है और भक्तों को शिवलिंग के दर्शनों के लिए पत्थर से बनी दो सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। यहां के स्थानीय लोग बड़े उत्साह से यह बात बताते हैं कि संत नामदेव भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आ चुके हैं। भगवान शिव के भक्त इस मंदिर में नियमित रूप से आया करते हैं।यह मंदिर हेमाड़पंती शैली की स्थापत्य कला का नमूना है जिसमें पत्थरों की बहुत सारी जटिल नक्काशी भी दिखाई देती है। पुराणों में इस जगह को दारुकावन कहा गया है। धार्मिक कारणों से इतर इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला को देखने के लिए भी यहां जरूर आना चाहिए।

औंधा नागनाथ

किनवट वन्यजीव अभ्यारण्य

करीब 138 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभ्याण्य किनवट वन क्षेत्र का भाग है। यवतमाल से यहां तीन घंटे की ड्राइव से पहुंचा जा सकता है। यहां बाघ, तेंदुआ, भालू, नीले बैल, सांभर, चिंकारा, हिरण, चीतल, जंगली सुअर जैसे जानवर देखे जा सकते हैं।

किनवट वन्यजीव अभ्यारण्य

अंबेजोगई

मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित अंबेजोगई के भ्रमण के लिए सैंकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं क्योंकि यही वह जगह है जहां पर प्रसिद्ध मराठी संत कवि मुकुंदराज महाराज और दसोपंत ने जन्म लिया और अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। मुकुंदराज की समाधि निकट स्थित एक घाटी में है। इनके अनुयाई इन समाधियों के दर्शन के लिए यहां बड़ी संख्या में आते हैं। यहां नजदीक स्थित अन्य मंदिरों में योगेश्वरी मंदिर, अमलेश्वर मंदिर, खोलेश्वर मंदिर, नागजरी तीर्थ, श्री गणेश मंदिर, नरसिंह तीर्थ, जैन गुफाएं, सकालेश्वर मंदिर आदि प्रमुख हैं। योगेश्वरी मंदिर की मान्यता एक शक्तिपीठ के तौर पर है और इसीलिए इस मंदिर में पूरे वर्ष बड़ी तादाद में श्रद्धालु भक्तों का तांता लगा रहता है।

अंबेजोगई

पराली वैजनाथ

देश भर में स्थित भगवान शिव को समर्पित लोकप्रिय ज्योतिर्लिंगों में से एक पराली वैजनाथ या पराली वैद्यनाथ के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। पत्थरों से बना यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर है और पारंपरिक औषधीय पौधों से घिरा हुआ है। यह मंदिर यहां आने वाले भक्तों को व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना करने की अनुमति भी देता है। हर शिवरात्रि पर यहां 15 दिन तक चलने वाला मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर से एक दिलचस्प कथा भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि लंका नरेश रावण एक बार ज्योतिर्लिंग को लंका में ले जाना चाह रहा था लेकिन भगवान ऐसा होने नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने महर्षि नारद को रावण को रोकने के लिए भेजा। नारद मुनि ने अपनी चतुराई से रावण को ज्योतिर्लिंग नीचे गिराने पर राजी कर लिया। कहते हैं कि जहां-जहां उस ज्योतिर्लिंग के टुकड़े गिरे, वहां-वहां भगवान शिव के मंदिर बनाए गए।

पराली वैजनाथ

श्री क्षेत्र माहुर

माहुर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का हिस्सा है। सड़क मार्ग से यह नागपुर शहर से लगभग चार घंटे की दूरी पर है। यह एक गांव है और माना जाता है कि यह संत दत्तात्रेय का जन्म स्थान है और देवी रेणुका का निवास भी। यहां देवी रेणुका को समर्पित एक मंदिर भी है जिसके बारे में मान्यता है कि यह आठ सौ साल पुराना है। हर साल इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए इस मंदिर में नई पक्की सीढ़िया बनाई गई हैं। इस मंदिर में देवी को भोग के रूप में सुपारी चढ़ाई जाती है जो कि अपने-आप में अनोखी बात है। इस गांव में और भी बहुत सारे प्राचीन मंदिर हैं जिनमें श्री दत्तात्रेय मंदिर, देव देवेश्वरी मंदिर, अनुसूया मंदिर और सर्वतीर्थ प्रमुख हैं। अनुसूया मंदिर दत्तात्रेय की माता देवी अनुसूया को समर्पित है। यहां नजदीक ही रामगढ़ किले के अवशेष भी देखने योग्य हैं।

श्री क्षेत्र माहुर

हुजूर साहिब में लेजर और संगीतमय फव्वारा शो

यहां का लेजर शो बहुत अनोखा है और यह यहां आने वाले यात्रियों का ध्यान लगातार अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। यह शो यहां के गोबिंद बाग में होता है जिसे लोकप्रिय कलाकार जसबीर सिंह धम ने निर्देशित किया है और जिस का पार्श्व स्वर मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह ने दिया है। यह शो सिक्खों के दसों गुरुओं के जीवन के बारे में दर्शकों को बहुत खूबसूरती से और संक्षेप में बताता है। पर्यटक यहां रोजाना शाम साढ़े सात बजे और रात साढ़े आठ बजे शो देख सकते हैं।

हुजूर साहिब में लेजर और संगीतमय फव्वारा शो