बड़ा इमामबाड़ा

बड़ा इमामबाड़ा संभवतः लखनऊ का सबसे जाना पहचाना और लोकप्रिय प्रतीक है। साल भर हज़ारों पर्यटक यहां आते रहते हैं।किसी अकाल के दौरान अवध के लोगों को रोज़गार मुहैया कराने के लिए एक राहत परियोजना के रूप में निर्मित बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण नवाब असफ.उद्.दौला द्वारा 18वीं सदी के दौरान किया गया थाए और बुनियादी रूप से इसके नाम का मतलब इबादत का एक बड़ा मुक़ाम है। नफीस मेहराबों और झरोखों वाली इसकी वास्तुकलाए राजपूतए मुग़ल और गोथिक प्रभाव समेटे हुए है। इमामबाड़ा के दो मुख्य प्रवेश हैंए दोनों ही बड़े दरवाज़ों से महफूज़ हैं। कहा जाता है कि इसके सेंट्रल हॉल की छत में बिना बीम या खंभों के इंटरलॉकिंग ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। ढांचे में गलियारों का एक अद्भुत चक्रव्यूह है जिसे श्भूल भूलैयाश् कहा जाता है। इसमें 1000 से अधिक पेचीदा गलियारों का एक संजाल हैए जिनमें से कुछ प्रवेशद्वारों या निकास बिंदुओं तक जाते हैं और बाकी बंद गलियों तक। उलझते.उलझाने वालेए रास्तों के मुहानों पर 489 द्वार भी बने हैं। नवाब की कब्र एक छतरी के नीचे मौजूद है। एक समय मेंए गोमती नदी तक जाती एक मील.लंबी अंडरग्राउंड सुरंग होती थी जो इसके तिलिस्म को और बढ़ाती थी। प्रमुख इमारत को घेरे हरे.भरे वृक्ष और बग़ीचे हैं जो एक इत्मीनानी टहल के लिए या बड़ा इमामबाड़ा की शान में आराम करने के लिए एकदम सही हैं।

बड़ा इमामबाड़ा

रूमी दरवाज़ा

तुर्की में कॉन्स्टैंटिनोपल में एक प्राचीन द्वार की डिज़ाइन से मिलता.जुलता रूमी दरवाज़ा 1780 में एक अवध नवाब नवाज़ए असफ.उद्.दौला द्वारा बनवाया गया था। इसे तुर्की गेट के रूप में भी जाना जाता हैए इसकी सजावटी इमारत के सबसे ऊपरी हिस्से में एक आठ.मुखी छाते जैसी संरचना बनी है। अब लखनऊ के एक प्रतीक के बतौर जाना जाने वालाए रूमी दरवाज़ा पहले पुराने शहर के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल किया जाता थाए और इसकी ऊंचाई 60 फीट है। इसे वर्ष 1784 के अकाल के दौरान रोज़गार पैदा करने के लिए बनवाया गया था। द्वार की स्थापत्य शैली एकदम नवाबी है। इसमें प्रयुक्त सामग्री इसे उस मुग़ल शैली से अलग करती हैए जिसमें बलुआ लाल पत्थर पसंद किया जाता थाए जबकि यहां चूने में लिपीं ईंटें इस्तेमाल होती थींए जिनमें ज्‍़यादा मुखर मूर्तिकला मुमकिन हैए जो पत्थर पर नामुमकिन होती। यह दरवाज़ाए अपनी बारीक फूल.नक्काशी पर इठलाता है। पुराने समय मेंए इसके प्रवेश द्वार के माथे पर एक विशाल लालटेन होती थीए जो रात में जलायी जाती थीए और मेहराब से पानी के फव्वारे निकला करते थे। शहर में पहली बार आने वाले पर्यटकों के लिएए रूमी दरवाज़ा देखने की चीज़ है। लगभग सभी संचालित भ्रमण यात्राओं व हेरिटेज गश्तों में इसे ज़रूर शामिल किया जाता है।

रूमी दरवाज़ा

रेज़िडेंसी

गोमती नदी के निकट सीढ़ीदार लॉन और उद्यानों से घिरी रेज़िडेंसीए शहर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। मूल रूप से इसे वर्ष 1780 और 1800 के बीच नवाब सआदत अली खान के शासन में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि द्वारा बनवाया गया था। इस रेजीडेंसी में ब्रिटिश जनरल के लिए आवासीय क्वार्टरए शस्त्रागारए अस्तबलए औषधालयए पूजा स्थलों हेतु बड़े परिसर मौजूद हैं। इमारत के खंडहर इसकी पूर्व महिमा को दर्शाते हैं। आज इन खंडहरों को देखकर कोई भी इसके औपनिवेशिक आकर्षण में डूब जाता है। यहां पर बेली गार्ड गेट नामक एक प्रवेश द्वार है जिसका नामकरण इस रेज़िडेंसी के प्रथम निवासी कर्नल जॉन बेली के नाम पर किया गया था। इस गेट से अंदर जाने पर आपको वास्तुकला और डिज़ाइन की बेहतरीन झलकियां दिखाई देंगी। मुख्य भवनों की ओर चलने पर आपको दो संरचनाएं दिखाई देंगी। पहली संरचना वह कोषागार हैए जो वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। दूसरी संरचना में तत्कालीन बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने वाली संगमरमर की पट्टिकाएं लगी हैं। यहां के बैंक्वेट हॉल की छत काफ़ी ऊंची और नक्काशीदार है और इसके केंद्र में एक सुंदर फौव्वारा लगा हुआ है। इसको देखकर आपको भव्य बॉलरूम नृत्य और भव्य पार्टियों के समय की याद आ जाऐगी। इस हॉल के सामने डॉण् फैयरर का ;रेज़िडेंट सर्जनद्ध घर हैए जिसका उपयोग विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के आश्रय एवं अस्पताल के रूप में किया जाता था। इस परिसर के भीतर स्थित रेज़िडेंसी संग्रहालय में वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह के चित्रों और दस्तावेज़ों का प्रदर्शन किया गया है। यहां एक ब्रिटिश मेजर जनरल और उसकी पत्नी का स्मारक भी है जिसे ब्रिगेड मेस और बेगम कोठी के नाम से जाना जाता है। इस स्मारक पर अवध नवाब से निकाह करने वाली एक विदेशी महिला बेगम मख़दराह आलिया ने क़ब्ज़ा जमा लिया था। पर्यटकए रेज़िडेंसी के पास चर्च के खंडहरों को भी देख सकते हैं।

रेज़िडेंसी