भारत की भूमि विविध प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, जहां विविध प्रकार के वन्यजीव विद्यमान हैं। भारत के वन्यजीव अभयारण्यों में आपको हरे-भरे जंगलों और नमक के रेगिस्तानों से लेकर ऊबड़-खाबड़ पहाड़ और विषाल समुद्री हिस्से तक देखने को मिलेंगे। इन अभयारण्यों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और वन्यजीवों की अनोखी प्रजातियां विद्यमान हैं। नीचे देष के कुछ षीर्ष अभयारण्यों की जानकारी दी गई है, जो वन्यजीवों की गतिविधियां देखने के लिए आदर्ष स्थल हैं।

सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
कभी अलवर के महाराजा के लिए षिकार हेतु आरक्षित क्षेत्र रही सरिस्का घाटी, आज विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और वन्यजीवों से आबाद है। इस पार्क में बाघ, नीलगाय, सांभर, चीतल आदि वन्यजीव निवास करते हैं। यहां तक   कि षाम के समय भारतीय साही, धारीदार लकड़बग्घे, तेंदुए भी यहां पर देखे जा सकते हैं। इस स्थान पर भारतीय मोरों, चीलों, सुनहरी पीठ वाले कठफोड़वों, भारतीय सींग वाले उल्लुओं की एक बड़ी आबादी होने के कारण यह पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग से कमतर नहीं है। अभयारण्य के अधिकांष हिस्से में षुष्क पर्णपाती जंगल हैं, जो इसके उत्तर पूर्व में षांत सिलिसेर झील को आच्छादित रखते हैं। अभयारण्य के चारों ओर प्राचीन मंदिरों के खंडहर फैले हुए हैं। इनमें से अधिकतर 10वीं और 11वीं सदी के हैं। कांकेरी किला और 10वीं षताब्दी के नीलकंठ मंदिरों के खंडहर इसके कुछ मुख्य आकर्षण हैं। इन मंदिरों का रास्ता ऊबड़-खाबड़ है, लेकिन वास्तुकला और खजुराहो जैसी नक्काषी दर्षकों के मन पर अपनी छाप छोड़ देगी।
ये मंदिर अभयारण्य के भीतर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहां पर मोर जैसे सुंदर पक्षी देखे जा सकते हैं। इन मंदिरों से लगभग 100 मीटर दूर जैन तीर्थंकर षांतिनाथ की एक अखंड पत्थर से बनी मूर्ति भी है। सरिस्का अभयारण्य में धार्मिक महत्त्व का एक और दिलचस्प स्थल पांडुपोल है। इसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों में सबसे षक्तिषाली भीम ने यहां विषालकाय दानव हिडिंब को हराया था और उसकी बहन हिडिम्बा से विवाह किया था। यह भी माना जाता है कि पांडवों के वनवास के दौरान भीम ने यहां षरण ली थी। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लंगूर, मोर इत्यादि पाए जाते हैं।

कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
पर्यटकों के लिए सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक, कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य अरावली श्रृंखला में 610 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। अभयारण्य कई लुप्तप्रायः प्रजातियों का घर है और अपने क्रियाकलापों में लगे भेड़ियों के बारे में खोज करने का राजस्थान राज्य में एकमात्र अभयारण्य है। माना जाता है कि 40 से अधिक भेड़िये इस अभयारण्य में रहते हैं। अन्य जानवर जो यहां देखे जा सकते हैं, उनमें तेंदुए, भालू, लकड़बग्घा, सियार, सांभर, नीलगाय, चैसिंगा, चिंकारा और खरहा प्रमुख हैं। इसमें कई प्रकार के पेड़ और औषधीय पौधों से युक्त विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां भी हैं। प्राकृतिक परिवेष में वन्यजीव कहीं नजर आ जाएं, इसके लिए अभयारण्य में सफ़ारी का आनंद भी लिया जा सकता है। इसी अभयारण्य में कुम्भलगढ़ किला भी है, जिसे देखना किसी यादगार और आनंददायक अनुभव से कम नहीं है।

बस्सी वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
चित्तौड़गढ़ में स्थित, यह अभयारण्य 150 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और जीव-जंतु पाए जाते हैं। सूखे पर्णपाती वन में विभिन्न फूलों वाले पौधे और औषधीय जड़ी-बूटियां लगाई गई हैं। इनके अलावा ढोक, ब्यूटा, चुरेल जैसे पेड़ों भी लगाए गए हैं। वर्ष 1988 में बनाए गए वन्यजीव अभयारण्य बस्सी में चार सींग वाले मृग, हाइना, सियार, जंगली सूअर आदि जैसे अनेक वन्यजीव देखे जा सकते हैं। पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों के लिए भी यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां पर अडई, बत्तख, मोर, सारस, कबूतर, बाज, मोर, कोयल, सारस, आदि जैसे अनेक पक्षी देखने को मिलते हैं। वन्यजीवों से भरा-पूरा बस्सी अभयारण्य दुनिया भर के वन्यजीव फोटोग्राफ़रों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

भैंसरोडगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान   
घने व सुरम्य वनों के मध्य, चंबल और ब्राह्मणी नदियों के तट पर भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। यहां पर आपको बहुत से वन्यजीव व पक्षी दिख सकते हैं। इनमें हिरण, गीदड़, चिंकारा, लोमड़ी, लकड़बग्घा, मृग, जंगली सूअर, कछुए, मगरमच्छ, हंस, काली तहेरी, लाल चोंच वाली बत्तख, राजबक, बाज, उल्लू और जलकाक प्रमुख हैं। इस अभयारण्य की अवस्थिति ठीक चंबल और ब्राह्मणी नदियों के संगम पर है, इसलिए आप यहां मीठे पानी की डॉल्फिन को चारों ओर तैरते हुए देखने का आनंद भी ले सकते हैं।

सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान 
चित्तौड़गढ़ में स्थित, सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य 423 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें अरावली हिल्स, विंध्याचल हिल्स और मालवा पठार षामिल हैं। यहां पर आप तेंदुए, जंगली सूअर, उड़न गिलहरी, चार सींग वाले मृग, लकड़बग्घा, चैसिंगा आदि देखने को मिलेंगे। पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों को यहां पर उल्लू, गिद्ध, चील, बगुले, मोर, सारस देखने को मिलेंगे। क्रेन, बटेर, बत्तखें, काले पंखों वाले डंठल, बैंगनी मौरेन, कपास की चैती आदि पक्षी बढ़ी संख्या में देखने को मिलते हैं।


माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
समृद्ध जैव विविधता को समेटते हुए यह अभयारण्य माउंट आबू की पहाड़ियों में फैला हुआ है। वर्ष 1960 में इसे वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। आज यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरण अनुकूल पर्यटक स्थल बन गया है। गजनेर महल और वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान बीकानेर में एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर स्थित गजनेर वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक मनपसंद स्थान है। यहां पर नीलगाय, चिंकारा, काला हिरण, जंगली सूअर, षाही तीतरों के झुंड और प्रवासी पक्षियों की कई अन्य प्रजातियां देखने को मिलती हैं। 

माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
समृद्ध जैव विविधता को समेटते हुए यह अभयारण्य माउंट आबू की पहाड़ियों में फैला हुआ है। वर्ष 1960 में इसे वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। आज यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरण अनुकूल पर्यटक स्थल बन गया है। 

गजनेर महल और वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
बीकानेर में एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर स्थित गजनेर वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक मनपसंद स्थान है। यहां पर नीलगाय, चिंकारा, काला हिरण, जंगली सूअर, षाही तीतरों के झुंड और प्रवासी पक्षियों की कई अन्य प्रजातियां देखने को मिलती हैं। 

धवा डोली वन्यजीव अभयारण्य, राजस्थान
षहर की परिधि में स्थित, धवा डोली वन्यजीव अभयारण्य में बड़ी संख्या में काले हिरण, चीतल और सांभर, तीतर, मरुभूमि के चूहे, मृग, मरुभूमि की लोमड़ी और नीलगाय पाई जाती हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय भोर या षाम है। आप तड़के सफ़ारी का आनंद लेने जाएं, आपको पेड़ों के बीच से सूर्योदय का सुंदर दृष्य और पक्षियों के गीतों की गूंज सुनाई देगी। भीतर के अंदर जल के छोटे निकाय हैं, जहां आपको गर्म दोपहर के दौरान धवा डोली के कई निवासी मिलेंगे। षाम के समय, कई प्रजातियों को जंगल के रास्ते पर अपने स्थान (घने जंगलों में) पर जाते हुए देखा जा सकता है। आप काले हिरणों और नीलगायों के झुंडों की एक झलक भी देख सकते हैं। वे सड़क के किनारों से गुज़रते हुए घास खाने के लिए रुकते हैं।

हेमिस वन्यजीव अभयारण्य, लद्दाख
यह इलाका हेमिस मठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसलिए यह हेमिस वन्यजीव अभयारण्य कहलाता है। सिंधु नदी के पष्चिमी तट पर मरखा, रूंबक और सुमदाह नालों के बीच फैले 600 किलोमीटर के क्षेत्र में यह अभयारण्य कुदरती छटा बिखे़र रहा है। इस अभयारण्य की विषेषता यहां ऊबड़-खाबड़ घाटियां, चट्टानें और षिलाखंड हैं, जो आकर्षक कुदरती नज़ारे प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा इस अभयारण्य के घास के मैदान और झाड़ियां और पेड़ों के कई जंगल ख़ूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। अभयारण्य की पहचान हिम तेंदुए रिज़र्व के रूप में होती है। यह अभयारण्य दुर्लभ जानवरों के लिए प्रसिद्ध है। दुर्लभ जीव षापू, भारल, भेड़िया, पल्लास की बिल्ली, इबेक्स, तिब्बती अगार्ली जंगली भेड़ और लद्दाख की लंबे पैरों और नुकीले सींगों वाली भेड़ यूरियाल भी इस अभयारण्य में पाये जाते हैं। चूंकि यहां बड़ी तादाद में भारल और यूरियाल पाए जाते हैं, इसलिए उन्हें देखना आसान है। पक्षियों की 30 से अधिक प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं, जिनमें से सबसे अधिक हिमालयन स्नो कॉक और चुकार तीतर पाए जाते हैं। चुकार तीतर के पैर लाल होते हैं। वह आम मुर्गी जैसा ही दिखाई देता है।

चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य, लद्दाख
चांगथांग अभयारण्य लेह जिले के लद्दाखी पठार के 1,600 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला हुआ है। यह अभयारण्य वनस्पतियों और जीव-जंतुओं मिला-जुला संगम है। यहां सबसे ऊंची झील त्सो मोरीरी हैै। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इस अभयारण्य में दुनिया का सबसे ऊंचा गांव, कोरजोक गांव भी है। यह गांव कोरजोक मठ से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां पर आप दुर्लभ हिम तेंदुओं को भी देख सकते हैं। इसके अलावा यहां पर जंगली गधे, काली गर्दन वाले सारस भी देखने को मिलेंगे। यही नहीं तिब्बती भेड़िया, जंगली भैंसा, भराल, भूरे भालू जगह-जगह दिखाई दे जाते हैं। इसमें कई प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं। पानी में रहने वाले लगभग 44 प्रकार के पक्षियों के साथ प्रवासी पक्षियों की मौसमी प्रजातियां भी पाई जाती हैं।

डंडेली वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
बेलगाम से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित डंडेली वन्यजीव अभयारण्य प्रकृति और वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक उत्तम भ्रमण स्थल है। घने जंगलों और हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा यह वन्यजीव अभयारण्य एक समृद्ध जैव विविधता से परिपूर्ण है। यहां कई पषु जैसे बाघ, दुर्लभ काले तेंदुए, हाथी, जंगली कुकुर और हिरण निवास करते हैं। हालांकि यहां के मुख्य आकर्षण मगरमच्छ हैं। यदि आप भाग्यषाली हैं तो यहां किंग कोबरा को भी देख सकते हैं। यह वन्यजीव अभयारण्य पक्षीप्रेमियों के लिए विषेष रूप से अद्भुत स्थल है क्योंकि यह यहां नीलकंठ बसंता पक्षी, धनेष पक्षी, मालाबार चितकबरा धनेष और पेरेग्रीन बाज जैसी पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं। इस अभयारण्य के घने जंगल बांस और सागौन जैसे घने और सदाबहार वृक्षों से आच्छादित हैं, और इस में भ्रमण करने का सबसे अच्छा तरीका खुली जिप्सी के माध्यम से जंगल सफ़ारी को निकलकर इन पषु-पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में निवास करते देखना है। काली नदी के तट पर स्थित यह कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा अभयारण्य है और देष के सभी हिस्सों से पर्यटक यहां आते हैं।

ब्रह्मगिरी वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
षोल वन पैच, सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन और बांस के पेड़ों की रसीली वनस्पतियों से भरे-पूरे इस वन्यजीव अभयारण्य में बाघों, हाथियों, मकाक, गौर, तेंदुए, जंगली सूअर, भालू, नीलगिरी लंगूर, आदि जैसे वन्य जीवों का निवास है। इस अभयारण्य को 1974 में स्थापित किया गया था। यह कॉफ़ी और इलायची के बागानों से घिरा हुआ है। आप यहां मालाबार ट्रोगन, पन्ना कबूतर और काली बुलबुल सहित विविध पक्षियों को भी देख सकते हैं।भद्र वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक लगभग 490 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला भद्र वन्यजीव अभयारण्य पष्चिमी घाट की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह एक सुरम्य स्थान है जो वन्यजीवों में रुचि रखने वालों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है। अभयारण्य का नाम भद्र नदी के नाम पर रखा गया है, जो जंगल से होकर गुज़रती है।

बीआर हिल्स वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
पर्यटक बीआर हिल्स वन्यजीव अभयारण्य में जाकर क्षेत्र के समृद्ध वन्यजीवों को देखने का आनंद प्राप्त कर सकते हैं। 539 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले, प्राकृतिक रिज़र्व में भालू, चीतल, गौर, सांभर, तेंदुए, जंगली कुकुर, हाथी और बाघ हैं। अभयारण्य में 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों का निवास है, जिनमें रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो और क्रेस्टेड ईगल षामिल हैं।

पुष्पगिरी वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
इस अभयारण्य में वन्यजीवों और पक्षियों की कई लुप्तप्रायः प्रजातियां देखने को मिलती हैं। कर्नाटक में पुष्पगिरी 21 वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है। यह आगंतुकों को वन्यजीवों को देखने का एक रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है।  

मुकाम्बिका वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
यह चित्रोपम अभयारण्य प्रकृति में विचरण करने वाले किसी पर्यटक के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। ख़ूबसूरत पष्चिमी घाटों के आरपार लहरदार पहाड़ी भूभाग में फैला यह अभयारण्य अनेक जीव-जंतुओं का घर है। यहां पर आपको छरहरे लजीले-वानर, सिंह की पूंछ वाला वानर, सांभर, चीतल, भालू, गौर और अन्य वन्यजीवों के अलावा जंगली सुअर भी देखने को मिलेंगे। कोडाचदरी की पहाड़ियां अभयारण्य के सबसे ऊंचे स्थल हैं और मुकाम्बिका का मंदिर इसी कोडाचदरी के षिखर पर स्थित है। इस अभयारण्य का नाम इसी नाम की एक देवी के नाम पर रखा गया है।

कावेरी वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
वन्यजीवों का अनुभव करने हेतु कावेरी वन्यजीव अभयारण्य एक रमणीय स्थल है। यहां पर आपको बाघ, तेंदुए, जंगली कुकुर, भालू, गौर, सांभर, चोल, एषियाई हाथी और चार सींग वाले मृग देखने को मिलेंगे। अभयारण्य की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं के साथ कावेरी नदी से घिरे हुए अभयारण्य में षुष्क पर्णपाती जंगल षामिल हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में झाड़ियां पाई जाती हैं। अभयारण्य घड़ियाल जैसी विषाल गिलहरी की तरह लुप्तप्रायः प्रजातियों को आश्रय प्रदान करता है। इसके अलावा दलदली मगरमच्छ, अजगर, कोबरा, रसेल के वाइपर, धारीदार करैत और कछुए भी यहां पाए जाते हैं। महसीर मछलियां भी यहां अधिक संख्या में पाई जाती हैं। साथ ही पक्षियों की कुछ प्रजातियां जैसे सिरकेर कोयल, सफेद-भूरे रंग की बुलबुल, हरी बिल्लो और पिग्मी कठफोड़वा भी पाई जाती हैं। 523 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में जीप सफारी के माध्यम से सैर का आनंद लिया जा सकता है।

चिन्नार वन्यजीव अभयारण्य, केरल
इस अभयारण्य में विविध प्रकार के वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। यह अभयारण्य एक विषाल क्षेत्र में फैला हुआ है और पषु जीवन से संपन्न है। चिन्नार अच्छी तरह से संरक्षित है और वनस्पतियों के खजाने को समाहित करता है, यहां फूलों वाले पौधों की लगभग एक हजार प्रजातियां हैं। साथ ही षुष्क पर्णपाती वन और घास के मैदान हैं। पक्षियों और तितलियों से लेकर स्तनधारियों और पतंगों तक, यहां की सुंदरता और षोभा में आप प्रकृति को देख सकते हैं। चिनार अभयारण्य में दुर्लभ मगरमच्छ सहित राज्य के भीतर सबसे अध् िाक सरीसृप हैं। यहां पर सफेद विषाल गिलहरी (ग्रिजल्ड) भी देखने को मिलेगी। इनकी संख्या 200 से कम है और ये दुनिया की लुप्तप्रायः प्रजातियों में से एक है। अन्य जानवर जो पाए जा सकते हैं उनमें चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, हनुमान लंगूर और मोर षामिल हैं। अभयारण्य के भीतर पर्यटकों के लिए एक अन्य आकर्षण थूवनम जलप्रपात है। सम्पूर्ण क्षेत्र के मनोरम दृष्य के लिए, जिसमें जलप्रपातों के दृष्य भी षामिल हैं, यहां के वॉच टॉवरों से आप पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और दूर-दूर तक फैले हरे-भरे वनों के दृष्य देख सकते हैं। यह अभयारण्य चढ़ाई करने वालों के लिए भी एक स्वर्ग है, और मुन्नार से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

वायनाड वन्यजीव अभ्यारण्य,
केरल यह अभयारण्य, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों के संरक्षित वन क्षेत्रों में फैला हुआ है। यह समृद्ध जैव विविधता का खज़ाना है। दक्षिण  भारतीय आर्द्र पर्णपाती वन, पष्चिमी घाट के अर्ध-सदाबहार वन, सागवान और नीलगिरी के पेड़ों के बीच बसे, इस अभयारण्य में अनेक प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं। इसमें बाघ, पैंथर, लंगूर, बोन मैक्का, बाइसन, सांबर, बंदर, मालाबार गिलहरी, भालू, गोह, हाथी, मगरमच्छ, उड़ने वाली छिपकली, कछुए, स्किंक (एक प्रकार की छिपकली) और दुर्लभ पतला लोरिस आमतौर पर देखे जा सकते हैं। षहर के बाहरी इलाके में स्थित, यह अभयारण्य, नीलगिरी बायोस्फियर रिज़र्व का एक अभिन्न हिस्सा है। अभयारण्य में बसे मुथंगा और थोलपेट्टी ईको-टूरिज़्म स्पॉट पर्यटकों को अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। अभयारण्य घूमने का सबसे अच्छा साधन जीप है। जीप में सुरक्षित बैठकर आप चरते हुए हिरण, हाथियों के झुंड और कई जलस्रोतों से पानी पीते बाघों को देख सकते हैं।

अरलम वन्यजीव अभ्यारण्य,
केरल प्रकृति और वन्यजीव प्रेमियों के लिए, कन्नूर के पष्चिमी घाट में स्थित अरलम अभयारण्य एक देखने लायक जगह है। कन्नूर से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस अभयारण्य में विविध वनस्पतियां और वन्यजीव देखने को मिलते हैं। यहां मिलने वाले वन्यजीवों में हिरण, हाथी, सूअर, बाइसन और विभिन्न प्रकार की गिलहरियां षामिल हैं। कन्नूर, बेकल से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और दो घंटे में आसानी से पहुंचा जा सकता है।

मालोम वन्यजीव अभयारण्य,
केरल उष्णकटिबंधीय हरे-भरे जंगल से आच्छादित मालोम वन्यजीव अभयारण्य के हिस्सों में मालाबार हॉर्नबिल, फ्लाइंग गिलहरी, किंग कोबरा, रीसस बंदर, अजगर, साही, जंगली सूअर आदि कई प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। 

षेंडुर्नी वन्यजीव अभ्यारण्य, केरल
यदि आप थेनमाला जा रहे हैं, तो बोट राइड से षेंडुर्नी वन्यजीव अभयारण्य घूमना आपकी प्रमुख सूची में होना चाहिए। इसमें हाथी, बाघ,  गवल, चीता, अफ्ऱीकी लंगूर, नीलगिरि लंगूर, सांभर, जंगली सुअर और अन्य वन्यजीवों की कई प्रजातियां मौजूद हैं। यह अभयारण्य कोल्लम से 66 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अभयारण्य में कई चीज़ों को देखने का सबसे अच्छा तरीका जंगल सफ़ारी है। आप अभयारण्य में निर्धारित पथ के साथ-साथ ट्रैकिंग और जलाषय के निकट कैम्पिंग कर सकते हैं। आप कुरुमथोट्टी टॉप हट पर भी जा सकते हैं। यहां से आप अभयारण्य आसानी से देख सकते हैं। यहां पर रात गुज़ारना एक रोमांचकारी अनुभव हो सकता है क्योंकि कोई भी यहां रात में रात्रिकालीन ध्वनि का आनंद उठा सकता है।

नय्यर वन्यजीव अभयारण्य, केरल
यह अभयारण्य अपने यहां षेर और हिरण सफ़ारी के लिए जाना जाता है। इस अभयारण्य में हाथी पुनर्वास केंद्र और मगरमच्छ का प्रजनन केंद्र भी है।

परप्पा वन्यजीव अभयारण्य, केरल
कासरगोड में स्थित, परप्पा वन्यजीव अभयारण्य में मालाबार हॉर्नबिल, पतला लोरिस, साही, कछुए, आदि जैसे वन्यजीव देखने को मिलते हैं। इस अभयारण्य में हरे-भरे जंगल हैं और यहां कई औषधीय जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं।

बिनोग वन्यजीव अभयारण्य, उत्तराखंड तेंदुए,
पर्वत बटेर, लाल चोंच वाली नीली मैगपाई, हिरण आदि जैसे वन्यजीवों से भरा-पूरा यह अभयारण्य मसूरी में सबसे आकर्षक स्थलों में से एक है। यहां पर विविध प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं, जिस कारण से यह अभयारण्य पक्षियों में रुचि रखने वालों के लिए एक स्वर्ग बन गया है। इस अभयारण्य को विनोग पर्वतीय बटेर का अभयारण्य भी कहा जाता है क्योंकि यह लगभग विलुप्त हो चुके पर्वतीय बटेरों का आश्रय स्थल है।


बिनसर वन्यजीव अभयारण्य, उत्तराखंड 
लगभग 47 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले, बिनसर वन्यजीव अभयारण्य में देषी और प्रवासी पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियां और भारतीय लाल लोमड़ी, सियार, पाइन मार्टेन और साही जैसी लुप्तप्रायः प्रजातियां भी पाई जाती हैं। इसमें तेंदुए, घोरल, जंगली सूअर, काकड़, बंदर और हिमालयी काले भालू भी हैं। कुमाऊं की पहाड़ियों की गोद में स्थित, यह बर्फ से ढकी पहाड़ियों का एक मनोरम दृष्य प्रदान करता है। अभयारण्य उच्च ऊंचाई पर बलूत और बुरुंष के जंगलों और कम ऊंचाई पर चीड़ के जंगलों से ढका हुआ है। इसके अलावा, इसमें 25 प्रकार के पेड़, 24 प्रकार की झाड़ियां और सात प्रकार की घास पाई जाती हैं। मुख्य प्रवेष से फॉरेस्ट रेस्ट हाउस तक जीप सफ़ारी कर सकते हैं। गेरड बेंड की ओर के प्रवेष द्वार और पेलियो बेंड की ओर से भी अभयारण्य के पूर्वी किनारे पर जा सकते हैं। केदारनाथ की चोटी सहित, हिमालय की कई चोटियां यहां से दिखाई देती हैं।


गोविंद पषु विहार वन्यजीव अभयारण्य, उत्तराखंड
गोविंद पषु विहार में हिम तेंदुआ, भूरा भालू, पष्चिमी ट्रगोपैन, कस्तूरी मृग, गोल्डन ईगल और भारतीय साही जैसी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। आप लुप्तप्रायः पक्षियों जैसे स्टेपी ईगल, हिमालयन स्नोकॉक और दाढ़ी वाले गिद्ध को भी देख सकते हैं। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है।

चैल वन्यजीव अभयारण्य, हिमाचल
प्रदेष यह पूर्ववर्ती षाही षिकार रिज़र्व हुआ करता था, जिसे वर्ष 1976 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर दिया गया था। चैल में विभिन्न प्रकार के वन्यजीव जैसे तेंदुए, भारतीय मुंजटैक, सांभर, जंगली सूअर आदि पाए जाते हैं। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर तक है।  

सिंबलवाड़ा वन्यजीव अभयारण्य, हिमाचल प्रदेष
कई स्थानिक और प्रवासी पक्षियों के लिए घर, यह अभयारण्य बर्डवॉचिंग के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। हरे-भरे जंगलों में साल के जंगल भी विद्यमान हैं। इन जंगलों में अनेक वन्यजीव देखने को मिलते हैं। कुछ सामान्य जीव जो आप यहां देख सकते हैं, वे हिरण, जंगली सूअर, सांभर, चीतल आदि हैं।

नागार्जुनसागर वन्यजीव अभयारण्य, तेलंगाना
श्रीषैलम में स्थित, नागार्जुनसागर वन्यजीव अभयारण्य को नागार्जुनसागर श्रीषैलम अभयारण्य भी कहा जाता है। यह 3,568 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह अभयारण्य लोकप्रिय नागार्जुनसागर जलाषय के निकट स्थित है। यहां पर पाए जाने वाले कुछ जीवों में बाघ, सियार, लंगूर, मकाक और पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियां जैसे मटर फाउल और ग्रे हॉर्नबिल षामिल हैं। अभयारण्य में रेंगने वाले सांप जैसे मगरमच्छ, अजगर, मॉनीटर लिजर्ड, सॉफ्ट-षेल्ड कछुए इत्यादि भी हैं। जंगल में कृष्णा नदी भी बहती है जिसके कारण यहां पर जैव विविधता देखने को मिलती है। घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मई तक है। 

एटुरूनगरम वन्यजीव अभयारण्य, तेलंगाना
प्राकृतिक सौंदर्य को विषुद्ध स्वरूप में देखने के लिए एटुरूनगरम वन्यजीव अभयारण्य की यात्रा सर्वोत्तम माध्यम है। वन विभाग द्वारा आयोजित जीप सफारी ले लें और सुंदर पेड़ों की कतारों से सुसज्जित तंग सड़कों से गुज़रते हुए हिरण, नीलगाय, सांभर और भालू को देखने लिए तैयार हो जाएं। यह अभयारण्य अजगर, कोबरा, मगरमच्छ और अन्य सरीसृप प्रजातियों का आश्रय है। यह तेलंगाना के सबसे लोकप्रिय वन्यजीव अभयारण्यों में से एक तथा दुनिया के दुर्लभ क्षेत्रों में से एक है। इसमें विभिन्न प्रकार की क्षणभंगुर (जो बहुत कम समय के लिए रहती हैं) तत्त्वों की भ्रूणीय प्रजातियां भी पाई जाती हैं। 806 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य, आसान और चुनौतीपूर्ण, दोनों प्रकार की पदयात्रा प्रदान करता है। कुछ दुर्लभ वृक्षों के जीवाष्म भी यहां खोजे गए हैं, जो इसे ऐतिहासिक महत्त्व का क्षेत्र बनाते हैं। दय्यम वागु नदी इस जंगल को दो भागों में विभाजित करती है। इटुरुनगरम वन्यजीव अभयारण्य वरंगल से 110 किलोमीटर की दूरी पर है। तत्कालीन हैदराबाद सरकार द्वारा 1953 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।

पोचाराम वन्यजीव अभयारण्य, तेलंगाना
यह अभयारण्य 130 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और सत्तारूढ़ निज़ामों का पूर्व षिकारगाह था। यह 1952 में स्थापित किया गया था और इसका नाम पोचराम झील के नाम पर रखा गया था। पूरे अभयारण्य में ट्रैकिंग ट्रेल्स विद्यमान हैं, जिनके माध्यम से आगंतुक घने जंगल में घूम सकते हैं। उन्हें वन्यजीवों को देखने का रोमांचकारी अनुभव प्राप्त होगा।

सिवाराम वन्यजीव अभयारण्य, तेलंगाना
गोदावरी नदी के तट पर स्थित, यह अभयारण्य 1987 में स्थापित किया गया था। इस अभयारण्य में बाघ, नीलगाय, लंगूर, आलसी भालू, चीतल, सांभर, अजगर आदि जैसे वन्यजीवों का वास है। गोदावरी के किनारे मगरमच्छों की विषाल आबादी देखने को मिलती है। 

कवल वन्यजीव अभयारण्य, आंध्र प्रदेष
वर्ष 1965 में स्थापित, कवल वन्यजीव अभयारण्य निज़ाम षासकों का पूर्ववर्ती षिकारगाह हुआ करता था। बाघ यहां के मुख्य आकर्षण हैं। 

रोलपडू वन्यजीव अभयारण्य, आंध्र प्रदेष
614 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले, रोलपडू वन्यजीव अभयारण्य 1988 में स्थापित किया गया था। यह गोडावण एवं खरमोर की एक बड़ी आबादी को आश्रय देने के लिए जाना जाता है। अन्य जीव जो आप यहां देख सकते हैं, उनमें काले हिरण, नीले रंग का पक्षी (बोनट), गौरैया, मैना, नीलकंठ पक्षी, भारतीय कोबरा, दबौया सांप आदि प्रमुख हैं।  

पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, असम करीब
38.81 वर्ग किलोमीटर में फैला पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, कांजीरंगा के जंगलों को गहराई से समझने का महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। यह अभयारण्य विष्व प्रसिद्ध एक सींग वाले भारतीय गैंडे का घर है, जो कि अब लगभग लुप्त होती एक प्रजाति है। सघन पेड़-पौधों से लबरेज यह सेंचुरी बहुत से दुर्लभ पक्षियों के लिए भी जानी जाती है। नमी वाला यह इलाका - एजीटांट, तीतर, सफे़द बगुला आदि पक्षियों को बहुत रास आता है। आप अगर भाग्यषाली हैं तो कुलांचे मारती डाॅलफिं़स को भी देख सकते हैं, जो ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती हैं।

दीपोर बील वन्यजीव अभयारण्य, असम गोवाहाटी
से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित दीपोर बील, ब्रह्मपुत्र घाटी से निकलने वाली अनकों नदियों और झीलों में से एक है। यह जगह बर्ड लाइफ़ इंटरनेषनल द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पक्षी स्थल के रूप में चिह्नित की गई है। बीपोर बील, करीब 219 पक्षी प्रजातियों तथा 70 प्रवासी पक्षी प्रजातियों के लिए प्राकृतिक आवास के रूप में जाना जाता है। लोग यहां पर समुद्र में पाई जाने वाली चीलें, सारस की विभिन्न प्रजातियां, हवासील और बेअर्स पोचर्ड की विलुप्त होती प्रजातियां भी देख सकते हैं। इसके अलावा पर्यटकों को यहां अन्य वन्य जीव-जंतु जैसे एषियाई हाथी, तेंदुआ, सांभर, काकड़ और चीनी साही भी देखने को मिलते हैं। इतना ही नहीं यह पार्क करीब 20 प्रजातियों के उभयचरों, 12 प्रकार की छिपकलियों, 18 किस्म के सांपों और कछुओं तथा 50 तरह की मछलियों का भी आवास स्थल है। यहां की इस प्राकृतिक संपदा से रू-ब-रू होने के लिए अक्टूबर से मार्च के बीच में आना चाहिए।

अमचांग वन्यजीव अभयारण्य, असम
गोवाहाटी से करीब 15 किमी की दूरी पर स्थित है अमचांग वन्य जीव अभयारण्य, जिसे 19 जून, 2004 में असम सरकार द्वारा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित किया गया था। करीब 78.64 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के पक्षियों तथा जीव-जंतुओं के  प्राकृतिक आवास के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पर कुछ बेहद प्रसिद्ध जंगली जानवर जैसे फ्लाइंग फाॅक्स, तेंदुआ, दक्षिण एषियाई बंदर, केप्ड लंगूर, जंगली बिल्ली, जंगली सुअर, काकड़, गिद्ध, साही, पायथन, भारतीय कोबरा, माॅनिटर लिजर्ड और लेसर पाइड देखने को मिलते हैं। यह वाइल्ड लाइफ सेंचुरी एडवेंचर प्रेमियों के लिए किसी जन्नत की तरह है क्योंकि जिप लाइनिंग, माउंटेन रैपलिंग, ट्रैकिंग और राॅक क्लाइमिंग जैसे एडवेंचर स्पोट्र्स का आनंद लेने के लिए भारी संख्या में टूरिस्ट यहां आते रहते हैं। अमचांग का ट्रिप, पर्यटकों को रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य के ऐसे सफ़र पर ले जाता है, जिसे वह जीवनभर याद रखते हैं।

काकीजाना वन्यजीव अभयारण्य, असमयह
अभयारण्य स्वर्ण लंगूरों के घर के रूप में प्रसिद्ध है, जो एई नदी के तट पर स्थित है। इस अभयारण्य में आपको तेंदुए, हॉर्नबिल, अजगर, सारस, मॉनिटर छिपकली, पैंगोलिन, साही आदि जैसे वन्यजीव देखने को मिलेंगे।

बोरदोईबुम-बीलमुख वन्यजीव अभयारण्य, असम
वर्ष 1996 में धेमाजी में बोरदोईबुम-बीलमुख वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना की गई थी। हरे-भरे क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में पाई जाने वाली कुछ सामान्य प्रजातियों में बाघ, हाथी, हिरण, भैंसे आदि षामिल हैं।

हूलोंगापार वन्यजीव अभयारण्य, असम
हूलोक गिबन आबादी के लिए प्रसिद्ध, यह अभयारण्य ब्रह्मपुत्र नदी और हरे-भरे बगीचों से घिरा है। गिबस के अलावा, आपको यहां पर असमी माकड, लंगूर, स्लो लोरिस, स्टंप-टेल्ड मकाक, रीसस मकाक, पिगलेट मकाक, हाथी आदि भी देखने को मिलेंगे। 

भीमषंकर वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
यह अभयारण्य उन लोगों के लिए एक उपयुक्त आश्रय है, जो प्रकृति के बीच समय बिताना पसंद करते हैं। मुंबई और पुणे के लोगों के लिए यह अभयारण्य पसंदीदा सप्ताहांत में से एक है। यह अभयारण्य पर्णपाती जंगलों में बना हुआ है। इसे बर्ड लाइफ इंटरनेषनल द्वारा आईबीए (महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र) घोषित किया गया है। इस अभयारण्य में अन्य वनस्पतियों और जीवों के अलावा महाराष्ट्र का राजकीय पषु,    षेखरू या उड़ने वाली विषाल गिलहरी भी पाई जाती है। यहां स्थित वन व्याख्या केंद्र में एक पुस्तकालय भी स्थित है। यह अभयारण्य दुनिया के 12 जैव विविधता वाले प्रमुख केंद्रों में से एक है। पष्चिमी घाटों में स्थित, यह एक जलग्रहण क्षेत्र भी है जो भीमा और घोड़ नदियों को पानी की आपूर्ति करता है। इस अभयारण्य में घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक है।

बोर वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
61 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला बोर एक विषाल वन्यजीव अभयारण्य है जो महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के हिंगनी क्षेत्र में स्थित है। यहां पर आपको बाघ, पैंथर, बंदर, भालू, जंगली कुकुर जैसे वन्यजीव देखने को मिलेंगे तथा यह अभयारण्य सागौन, ऐन, तेंदू और बांस जैसी वनस्पति प्रजातियों का आश्रय-स्थल है। अभयारण्य की यात्रा का सबसे अच्छा समय गर्मियों की सुबह है। बोर वन्यजीव अभयारण्य के संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि यह 16 किलोमीटर के सीमित क्षेत्र को कवर करता है। इसमें जंगली जानवरों, विषेष रूप से आकर्षक बाघ को देखना बहुत आसान हो जाता है। एक षानदार अनुभव प्राप्त करने के लिए, पर्यटक महाराष्ट्र के वन विभाग द्वारा प्रबंधित वन गेस्ट हाउस में रह सकते हैं। वन्यजीव अभयारण्य का नामकरण कलकल करती बोर नदी से हुआ है, जो इसे दो भागों में विभाजित करती है।  

किनवट वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
यह अभयारण्य लगभग 138 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो किनवट वन क्षेत्र का ही हिस्सा है। यवतमाल से तीन घंटे की छोटी ड्राइव करके यहां पर पहुंचा जा सकता है। यहां बाघ, तेंदुए, भालू, नीलगाय, सांभर, चिंकारा, काकड़, चीतल और जंगली सूअर जैसे वन्यजीव देखे जा सकते हैं।   

भामरागढ़ वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीवों में रुचि रखने वाले लोगों की पसंदीदा जगह, भामरागढ़ वन्यजीव अभयारण्य में सांभर, चीतल, काले हिरण, जंगली कुकुर, जंगली सुअर, कांकड़, आलसी भालू, लंगूर और नेवले जैसे कई जीव-जंतु देखने को मिलते हैं। अभयारण्य के घने जंगलों को देखने और यहां विद्यमान घास के मैदानों में घूमने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप अपने साथ एक अधिकृत गाइड किराए पर ले लें। यह गाइड आपकी कार या मिनी बस में आपके साथ जंगल में जा सकता है। पर्यटक उप वन-संरक्षक से संपर्क करके अभयारण्य परिसर में स्थित रेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम की व्यवस्था कर सकते हैं। अभयारण्य की यात्रा के दौरान आपको झीलें भी देखने को मिलेंगी।  इन्हें पलमगौतम और परलकोटा नदियों से पानी की आपूर्ति होती है, जो जंगल से होकर बहती हैं। कुछ दुर्लभ नज़ारों में तेंदुए और उड़ने वाली गिलहरियां भी षामिल हैं। भामरागढ़ वन्यजीव अभयारण्य विदर्भ क्षेत्र के चंद्रपुर ज़िले में स्थित है। नागपुर के आसपास घूमने के लिए यह एक उत्कृष्ट स्थल है। 

चपराला वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र 
वर्धा और वैनगंगा नदियों के संगम पर स्थित चपराला वन्यजीव अभयारण्य महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले में स्थित है। चपराला वन्यजीव अभयारण्य, जंगली जानवरों और पक्षियों का अकूत खज़ाना है। बाघों, तेंदुओं, भालुओं और जंगली कुकुर जैसे जीवों की लगभग 131 प्रजातियां यहां देखने को मिलती हैं। इसके अलावा भारतीय अजगर और आम भारतीय मॉनिटर जैसी लुप्तप्रायः प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं। जंगली सूअर, चित्तीदार हिरण, सांभर, काकड़, नीलगाय, जंगली बिल्ली, सियार, मोर, जंगल के पक्षी और उड़ने वाली गिलहरी भी इस अभयारण्य के मुख्य आकर्षण हैं। चपराला वन्यजीव अभयारण्य में घास के मैदानों के साथ-साथ एक घना वन भी है। इस अभयारण्य की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय फरवरी और मई के महीनों के बीच का समय है। अभयारण्य के आसपास के अन्य दर्षनीय स्थलों में प्रषांत धाम, चपराला मंदिर और मारकंडा मंदिर प्रमुख हैं।

टिपेष्वर वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
यह अभयारण्य बाघ प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कमतर नहीं है। टिपेष्वर अभयारण्य प्रचुर प्राकृतिक सुंदरता और सुरम्य परिदृष्य के साथ संपन्न है। यहां पर आप जिन जीव-जंतुओं को देख सकते हैं, उनमें काले हिरण, नीलगाय, चीतल, सांबर, बंदर, जंगली बिल्लियां, भेड़िये, भालू, सियार और जंगली सूअर षामिल हैं। यह अभयारण्य देष के उन कुछ चुनिंदा स्थलों में से एक है, जहां पर्यटक इन षानदार बाघों को आसानी से देख सकते हैं। यहां पर लगभग 13 बाघ रहते हैं। बाघ देखने के लिए अभयारण्य की यात्रा का सबसे अच्छा समय अप्रैल और मई के गर्मियों के महीनों के दौरान है। पर्यटक टीपेष्वर अभयारण्य के घने जंगलों की सैर के लिए ऑनलाइन सफ़ारी की बुकिंग की जा सकती है। यह अभयारण्य नागपुर से लगभग 172 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वन्यजीवों में रुचि रखने वालों और प्रकृति-प्रेमियों को यह अभयारण्य देखने अवष्य जाना चाहिए।  

नागजीरा वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में सबसे लोकप्रिय वन्यजीवों में से एक, नागजीरा अभयारण्य भंडारा ज़िले में स्थित है। यह अभयारण्य भारत के सभी कोनों से प्रकृ ति-प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमियों को आकर्षित करता है। अभयारण्य में बाघ, पैंथर्स, बाइसन, सांभर, नीलगाय, चोल, जंगली सूअर, भालू और जंगली कुकुर सहित अनेक जानवरों की प्रजातियां पर्यटकों को देखने को मिलती हैं। नागजीरा में तितलियों की एक आष्चर्यजनक विविध् ाता और एक दिलचस्प पानी और धरती पर रहने वाले जानवर और सांपों की अनेक नस्लें पर्यटकों को हतप्रभ करती हैं। पर्यटक पास के नवीनगांव राष्ट्रीय उद्यान की भी सैर कर सकते हैं। अभयारण्य का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका खुली जीप में सवारी करना है। इससे पर्यटकों को जंगली जानवरों को करीब से देखने का मौका मिलता है। इटियाडोह बांध, गोथांगांव में तिब्बती षिविर और प्रतापगढ़ इस अभयारण्य के कुछ अन्य देखने लायक स्थान हैं।

राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
350 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला, राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य राज्य के सबसे प्रसिद्ध जैव विविधता वाले स्थानों में से एक है। यह पष्चिमी घाट के पास स्थित है। कुछ सामान्य प्रजातियां जो आप यहां देख सकते हैं, उनमें भारतीय बिजोन, तेंदुए, विषालकाय गिलहरी, चूहा हिरण, काकड़, बाघ और सुस्त भालू प्रमुख हैं। अभयारण्य कई प्रकार की पक्षी प्रजातियों जैसे कि बाज, प्लोवर, उल्लू, कबूतर, गिद्ध, नैटजा और जंगली मुर्गियांे का निवास है। यदि आप भाग्यषाली हैं, तो आपको मालाबार पिट वाइपर को देखने का अवसर भी मिल सकता है। अभयारण्य देखने जाना हो तो जून से अक्टूबर तक का समय सबसे उत्तम है। पर्यटक वन्यजीव सफ़ारी के माध्यम से या विभिन्न संकरे मार्गों के माध्यम से ट्रैकिंग करके जंगल का भ्रमण कर सकते हैं। दाजीपुर वन्यजीव अभयारण्य और बाइसन अभयारण्य के रूप में भी प्रसिद्ध, यह क्षेत्र तत्कालीन कोल्हापुर महाराजाओं का षूटिंग स्थल हुआ करता था।

सागरेष्वर वन्यजीव अभयारण्य, महाराष्ट्र
लगभग 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला, सागरेष्वर वन्यजीव अभयारण्य विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों के कारण लोकप्रिय है। अभयारण्य में मिश्रित षुष्क पर्णपाती और दक्षिणी कांटेदार जंगलों की वनस्पति का आनंद लिया जा सकता है। यहां विभिन्न प्रकार की प्रजातियां देखने को मिलती हैं। कुछ सामान्य प्रजातियां जो यहां देखी जा सकती हैं, वे हैं भेड़िये, लकड़बग्धा, मृग, जंगली बिल्लियां, लोमड़ी, खरगोष और मोर।

राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
चम्बल नदी के ईको-सिस्टम को सुरक्षित रखने की दिषा में राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य बनाया गया था। यह राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य भी कहलाता है। यह अभयारण्य गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन, घड़ियाल (भारत में पाया जाने वाला एक प्रकार का मगरमच्छ), मगरमच्छ एवं साफ़ पानी के कछुओं के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेष में यह अभयारण्य चम्बल नदी के 400 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका आरंभ राजस्थान के कोटा बैराज से होता है। वर्ष 1979 में इसे राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित किया गया था जो तीन राज्यों - मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष एवं राजस्थान में फैला हुआ है। कोई भी यहां पर पक्षियों की विविध प्रजातियां देख सकता है। यहां पर अब तक प्रवासी एवं स्थानीय पक्षियों की 290 से अधिक प्रजातियांे की पहचान की जा चुकी है। इस अभयारण्य का मुख्य आकर्षण राजहंस हैं, जो नवम्बर में यहां आते हैं और मई तक रहते हैं।

चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
विंध्य पर्वतों के बीच 78 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में व्याप्त चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का नाम चंद्रप्रभा नदी के नाम पर पड़ा है। इसका मतलब चांद की चांदनी होता है। यह नदी कर्मनाषा नदी की सहायक नदी है। ये दोनों नदियां इस वन से होते हुए गंगा नदी में जा मिलती हैं। इस अभयारण्य की स्थापना 1957 में की गई थी, जो कभी एषियाई सिंह के लिए लोकप्रिय था। वर्तमान में, यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा, भेड़िया, जंगली सुअर, नील गाय, सांभर, चिंकारा, चीतल, काले हिरण, घड़ियाल, अजगर जैसे जंगली जानवरों तथा पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। जलप्रपात एवं ट्रैकिंग का रास्ता होने के कारण यह अभयारण्य वाराणसी से दूर एक दिन बिताने के लिए उचित जगह है। इसके अलावा, कई गुफ़ाएं तथा पहाड़ इसे साहसिक यात्रा के लिए एक उपयुक्त स्थल बनाते हैं। आगंतुक यहां पर गुफ़ाओं में बनी सुंदर चित्रकला, बाग, मचान, सनसेट प्वाइंट एवं चट्टानी गुफ़ा भी देख सकते हैं। इस वन में स्वदेषी कबाइली आबादी भी निवास करती है। वे अपने पारंपरिक नृत्य एवं संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं। इनके माध्यम से ये आदिवासी अपनी अनकही कथाओं का उल्लेख करते हैं। इन समुदायों की सुर-लहरियां सुनकर कोई भी यहां पर अपनी षाम बिता सकता है। यहां जाने का उचित समय जुलाई से फरवरी है। इसका प्रवेष द्वार चंद्रप्रभा बांध पर स्थित है। वाराणसी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य स्थित है।

कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
कैमूर वन्यजीव अभयारण्य वाराणसी से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक षांत वन क्षेत्र है। लगभग 1,342 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में कई झरने विद्यमान हैं, जिनमें से करकट और तेलहार बेहतरीन हैं। यह अभयारण्य काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है, जो यहां पर बढ़ी संख्या में पाए जाते हैं। यहां पर आपको बाघ, तेंदुए, जंगली सूअर, सुस्त भालू, सांभर हिरण, चीतल, चार सींग वाले मृग और नीलगाय जैसे कई अन्य वन्यजीव देखने को मिलेंगे। इनके अलावा यहां पर मगरमच्छ, अजगर और सांपों की विभिन्न प्रजातियां भी पाई जाती हैं। यह स्थान पक्षी-प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कमतर नहीं है। ये लोग सारे साल यहां पर कई प्रवासी पक्षियों के अलावा स्थानीय पक्षियों की 70 से अधिक प्रजातियां भी देख सकते हैं। यहां पर आपको पक्षियों की कुछ सामान्य प्रजातियों के अलावा चकवा, दिघोंच, लालसरी, कूट, सुंदर बटवा, मलार्ड बत्तख और काली बत्तख भी देखने को मिलेंगी। सुंदर परिदृष्य देखने के लिए आगंतुक वॉचटॉवर पर चढ़ सकते हैं अथवा वाॅटरहोल तक जा सकते हैं।
इस अभयारण्य को 1982 में स्थापित किया गया था। इसमें वनस्पति की विविधता पाई जाती है, जिसमें अन्य पेड़ों के अलावा बकली, महुआ, ढाक और बांस भी पाए जाते हैं। यह बिहार और उत्तर प्रदेष की सीमा पर स्थित प्रमुख पर्यटन आकर्षणों में से एक है। क्षेत्र की स्थलाकृति में पर्णपाती वन, दलदली क्षेत्र और घास के मैदान षामिल हैं। इसके अलावा, इसमें प्रागैतिहासिक चित्रों वाली गुफ़ाएं और एक जीवाष्म पार्क भी है, जो देखने लायक अनोखी जगह हैं।  

टिकरपाड़ा वन्यजीव अभयारण्य, ओडिषा
भुवनेष्वर से लगभग 142 किलोमीटर दूर स्थित टिकरपाड़ा वन्यजीव अभयारण्य अपने घड़ियाल अथवा मगरमच्छ अभयारण्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह अभयारण्य महानदी द्वारा निर्मित सतकोसिया चट्टानी संरचना से घिरा हुआ है। यहां स्थित घरवले अभयारण्य घड़ियालों का प्रजनन स्थल है। इसमें कई प्रकार के सांप और कछुए भी बसेरा करते हैं। यहां मौजूद घड़ियालों की आबादी को सुरक्षित रखने के लिए यहां एक संरक्षण केंद्र भी है। सतकोसिया की बाईं ओर टिकरपाड़ा मगरमच्छ अभयारण्य स्थित है। यह अपने अद्भुत जंगली परिवेष और वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है। टिकरपाड़ा वन्यजीव अभयारण्य ओडिषा के सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। यह 795.52 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह महानदी के तट पर स्थित है और यहां बाघ, पैंगोलिन, तेंदुए, चित्तीदार हिरण, हाथी, रीसस, मकाक, सांप, कछुए जैसी अनेकों वन्यजीवों की प्रजातियां निवास करती हैं। यहां रिवर राफ्टिंग, पर्वतारोहण, मत्स्य आखेट एवं नौकायन जैसे विभिन्न एडवेंचर स्पोट्र्स का आनंद भी लिया जा सकता है।

बालूखंड कोणार्क अभयारण्य, ओडिषा
पुरी और कोणार्क के बीच के तटीय फैलाव पर स्थित, बालूखंड कोणार्क अभयारण्य 87 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। मरीन ड्राइव रोड इसके बगल से गुज़रती है, जिस पर आप एक सुखद रोड ट्रिप कर सकते हैं। इस ईको-टूरिज़्म स्थल पर कैजुरिना, बबूल, काजू, नीलगिरी, नीम और करंजिया के कई वृक्ष हैं। यद्यपि इस क्षेत्र में अनेक चीतल पाए जाते हैं, लेकिन अधिकतर पर्यटक यहां पर दुर्लभ ब्लैक बक (काले हिरण) देखने ही आते हैं। अभयारण्य के बगल का रेत तट, ओलिव रिडले कछुओं का आश्रय स्थल है। पारिस्थितिक रूप से संवेदनषील घोषित इस अभयारण्य के बीच से दो नदियां, नुआनाई और कुषाभद्र बहती हैं। यह पुरी और कोणार्क से लगभग एक घंटे की ड्राइव पर स्थित है। यह अभयारण्य, इस क्षेत्र की कृषि गतिविधियों में भी योगदान देता है। यह यहां के भूमिगत जलस्तर का पुनः भरण करने में मदद करता है। यहां देखे जाने वाले अन्य वन्यजीवों में बंदरों, गिलहरियों, लकड़बग्घे, जंगली बिल्लियां, मॉनिटर छिपकलियां, सांप, सियार, नेवले और कई प्रकार के पक्षी और सरीसृप षामिल हैं। इस अभयारण्य में घने मैंग्रोव वन भी हैं।

बरदा सिंह अभयारण्य, गुजरात
अरब सागर के ठीक सामने मखमली हरियाली में लिपटे जंगलों और वर्दान्त पहाड़ों के बीच स्थित है बरदा सिंह अभयारण्य। छोटे-बड़े अनेकों नदी-नालों और झरनों की सांप-सीढ़ी से सजी यह जगह खंबाला और फोदरा बांधों के लिए भी जानी जाती है। ये बांध इस जगह की ख़ूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं की प्रजातियों जैसे षेर, मगरमच्छ, सांभर, चिंकारा, तेंदुआ, भेड़िया, गिरगिट, चील और बाज का घर है। इसके साथ-साथ इस अभयारण्य में दुनिया के तीन सबसे ज्यादा विषैले सांप भी पाये जाते हैं। पुराने समय में यह अभयारण्य राणावव रियासत की षिकारगाह हुआ करता था। षहर के बाहरी सिरे पर स्थित यह वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी, पोरबंदर और जामनगर तक फैली हुई है। इसे स्थानीय भाषा में जामबरदा और राणाबरदा के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर्यटक बरदा हिल्स पर ट्रैकिंग करने के साथ-साथ जंगल सफ़ारी का भी आनंद उठा सकते हैं। इस अभयारण्य में सैर-सपाटे के लिए नवम्बर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।

रामपारा वन्यजीव अभयारण्य, गुजरात
पहाड़ियों और जंगली घास से घिरा, रामपारा वन्यजीव अभयारण्य एक ऐसा षुष्क जंगली क्षेत्र है, जहां पर पेड़ अपेक्षाकृत कम ही दिखाई देते हैं। बारहसिंगा इस अभयारण्य का प्रमुख आकर्षण है। भागते-उछलते हिरणों के झुंड यहां जब-तब देखे जा सकते हैं। यहां पाए जाने वाले दूसरे जानवरों में भेड़िया, सामान्य लोमड़ी, लकड़बग्घा और नीलगाय प्रमुख हैं। इस अभयारण्य में पक्षियों की 130 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें तीतर, रिंग डव, बैंगनी सनबर्ड और कई अन्य परिंदे षामिल हैं। यहां घूमने के लिए सर्दियों का मौसम सबसे उपयुक्त है। जीप सफ़ारी से जंगल का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। यह अभयारण्य कभी वांकानेर की पूर्व रियासत के अधीन था। 1983 में इसे रिजर्व फॉरेस्ट घोषित किया गया था।

कूनो पालपुर अभयारण्य, मध्य प्रदेष
घने पतझड़ी पेड़ों के साथ, विंध्य श्रृंखला में फैले घास के मैदानों से घिरा कूनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य लुप्तप्रायः एषियाई षेरों का निवास स्थल है। यह केवल वनस्पतियों एवं वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों का ही घर नहीं है, अपितु यह अभयारण्य कूनो नदी की घाटी में स्थित है तथा यह नदी अभयारण्य में व्याप्त है। वर्ष 1981 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया था, 345 वर्ग किलोमीटर में व्याप्त यह अभयारण्य वन्यजीवों को देखने तथा कूनो नदी में नौका विहार का भी उपयुक्त स्थल है। यह अनेक प्रवासी पक्षियों का भी घर है। अभयारण्य आकर उन्हें देखा जा सकता है।

रालामंडल वन्यजीव अभयारण्य, मध्य प्रदेष
प्राचीन नर्मदा नदी द्वारा काटे गए, रालामंडल राज्य के सबसे पुराने वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है। इस अभयारण्य में आपको बाघ, हिरण, जंगली खरगोष आदि जैसे वन्यजीव देखने को मिलेंगे।

यांगऊपोकपी वन्यजीव अभयारण्य, मणिपुर
वर्ष 1989 में स्थापित, यह अभयारण्य 185 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मणिपुर में स्थित नौ महत्त्वपूर्ण बर्ड एरिया (आईबीए) में से एक है। इसे एकमात्र ऐसा स्थान कहा जाता है, जहां पर आप लुप्तप्रायः हरे मोर भी देख सकते हैं।

दलमा वन्यजीव अभयारण्य, झारखंड
सुबरनरेखा नदी के जलग्रह क्षेत्र में स्थित, दलमा वन्यजीव अभयारण्य षहर के पास सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यटक आकर्षणों में से एक है। आप यहां पर कार्य की भागदौड़ से दूर षानदार सप्ताहांत बिता सकते हैं। वन्यजीव अभयारण्य हाथियों के लिए प्रसिद्ध है और देष के सभी हिस्सों से वन्यजीवों को आकर्षित करता है। यह तेंदुओं, बाघों, कांकड़, भालू और साही का भी घर है। 

हालीडे द्वीप वन्यजीव अभयारण्य, पष्चिम बंगाल
सुंदरबन बायोस्फीयर (जीव मंडल) रिज़र्व में तीन वन्यजीव अभयारण्य हैं। इनके नाम हालीडे द्वीप वन्यजीव अभयारण्य, सजनेखाली वन्यजीव अभयारण्य और लोथियन वन्यजीव अभयारण्य हैं। हालीडे वन्यजीव अभयारण्य को हालीडे द्वीप के रूप में भी जाना जाता है। यह बंगाल की खाड़ी के संगम के करीब, मतला नदी पर स्थित है। यहां पर विभिन्न प्रकार के वन्यजीव जैसे चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, काकड़ और रीसस मकाक (एक तरह का बंदर) देखे जा सकते हैं। पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां भी इस द्वीप में पाई जाती हैं। यहां के स्थानिक अकषेरुकी जीवों (ऐसे जीव जिनमें मेरुदंड नहीं होता) को देखना न भूलें। रॉयल बंगाल टाइगर इस द्वीप पर कभी-कभार ही दिखते हैं। मतला नदी में बहुत सारी मछलियां भी तैरती मिल जाएंगी। 3.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला, यह वन्यजीव अभयारण्य पूरे देष के पर्यटकों को आकर्षित करता है।

बेथुदाहारी वन्यजीव अभयारण्य, पष्चिम बंगाल
बेथुदाहारी वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीवों के षौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां भांति-भांति के जीव-जंतु और वनस्पतियां हैं। यहां कुछ सामान्य प्रजातियां जिन्हें आप देख सकते हैं, उनमें चीतल, घड़ियाल, साही, सियार, जंगली बिल्ली और लंगूर षामिल हैं। यहां पक्षियों की भी कई प्रजातियां हैं, जैसे-पेराकिट (एक प्रकार का तोता), बाज, बसंतगौरी (बार्बेट), भारतीय कोयल आदि। यह अभयारण्य 70 हेक्टेयर में फैला है और एक प्रमुख जूट उत्पादक केंद्र से सटा हुआ है।  

छपरामारी वन्यजीव अभयारण्य, पष्चिम बंगाल
दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा की तलहटी में स्थित यह अभयारण्य वन्यजीवों में रुचि रखने वालों के लिए किसी स्वर्ग से कमतर नहीं है। इस अभयारण्य में आपको तेंदुए, हाथी, गौर जैसे अनेक वन्यजीव देखने को मिलेंगे।     महानंदा वन्यजीव अभयारण्य, पष्चिम बंगाल हिमालय की तलहटी में स्थित यह अभयारण्य, महानंदा नदी के किनारों पर दूर तक फैला हुआ है। यह अभयारण्य एक सींग वाले गेंडों, हाथियों, बाघों, सांभर, तेंदुओं, बायसन इत्यादि की आश्रय स्थली है। 

पाखुई वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष
षानदार बंगाल टाइगर के आश्रय स्थल, इस अभयारण्य में आपको तेंदुए, हिमालयी काले भालू, हाथी, सियार, काकड़, सांभर, पाढ़ा इत्यादि जैसे अनेक वन्यजीव देखने को मिलेंगे।

इटानगर वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष
यह भव्य अभयारण्य लंगूर, मकाक, धीमी लोरिस आदि जैसे अनेक वन्यजीवों की आश्रय स्थली है। लाल पांडा और साही यहां के मुख्य आकर्षण हैं। पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों के लिए यह अभयारण्य एक उपयुक्त जगह है क्योंकि उन्हें यहां पर विविध प्रकार के पक्षी देखने को मिलेंगे।

टैली वैली वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष
337 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला, यह अभयारण्य लुप्तप्रायः पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले धूमिल तेंदुए की आश्रय स्थली है। इसके  अलावा आपको यहां पर देवदार के वृक्ष, बांस, फर्न, ऑर्किड और रोडोडेंड्रन जैसी अनेक वनस्पतियों का विषाल खज़ाना देखने को मिलेगा।    

लेंगटेंग वन्यजीव अभयारण्य, मिज़ोरम
2,141 मीटर ऊंचाई वाली मिज़ोरम की एक सबसे ऊंची चोटी पर स्थित, लेंगटेंग वन्यजीव अभयारण्य अल्पाइन वन से ढका हुआ है। 60 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला, यह अभयारण्य पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है क्योंकि यह पक्षिता (एक विषेष समय के पक्षी) की विविध प्रजातियों का आश्रयस्थल है। यहां पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पक्षी हैं धारीदार पूंछवाला तीतर, महान भारतीय धनेष (हाॅर्नबिल), पुष्पहित धनेष, चितकबरा हॉर्नबिल, खलीज तीतर तथा सफ़ेद गाल वाला तीतर। यही नहीं, यहां पर बाघ, तेंदुआ, हिमालय के काले भालू, सांभर, कांकड़, घोरल, सेराब, रीछ, बड़े भारतीय गंधिबलाव, विषाल गिलहरी आदि को देखा जा सकता है। साथ ही साथ हूलोक गिब्बन, स्लो लॉरिस, लीफ मंकी, आम लंगूर आदि जानवरों को भी देखा जा सकता है। अभयारण्य मिज़ोरम के पूर्वी भाग में स्थित है और यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से अप्रैल के बीच होता है।

खौनग्लुंग वन्यजीव अभयारण्य, मिज़ोरम
आइज़ोल से लगभग 160 किलोमीटर दूर, खौनग्लुंग वन्यजीव अभयारण्य में जंगली सूअर, सांभर हिरण, हुलूक, गिबन, तेंदुए, सेराब, और कांकड़ जैसे जानवरों का निवास है। चट्टानों और हरी पहाड़ियों से आच्छादित यह अभयारण्य लगभग 35 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह अभयारण्य समुद्र तल से 1,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह देष के उत्तर पूर्वी भाग के समृद्ध जीवों और वनस्पतियों की खोज करने वालों के लिए सबसे अच्छे पड़ावों में से एक है। अभयारण्य की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के महीनों के बीच है। किंतु यहां आने से पहले मिज़ोरम के पर्यावरण और वन विभाग के साथ संपर्क करना आवष्यक है।

तृष्णा वन्यजीव अभयारण्य, त्रिपुरा
तृष्णा वन्यजीव अभयारण्य एक विविध स्थलाकृतियों से घिरी हुई वनस्थली है, जो अनेकों बारहमासी झरनों, जल निकायों, घास के विस्तृत मैदानों, अनछुए जंगलों और दुर्लभ वनस्पतियों से आच्छादित व समृद्ध है। 197 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस वनक्षेत्र का मुख्य वन्यजीव आकर्षण भारतीय गौर अर्थात एक अत्यधिक षक्तिषाली जंगली भैंसा है। इसके अलावा, पक्षियों, हिरण, होललॉक गिब्बन, गोल्डन लंगूर, कैप्ड लंगूर, तीतर और विभिन्न अन्य जानवरों और सरीसृपों की किस्में यहां पाई जाती हैं। अभयारण्य भ्रमण के लिए जीप सफ़ारी की सुविधा उपलब्ध है। भारत के सबसे अधिक संरक्षित वनक्षेत्रों में से एक माना जाने वाला यह विषिष्ट स्थान 1988 में स्थापित किया गया था। यह अभयारण्य लोगों को षैक्षिक और दर्षनीय स्थलों की यात्रा के लिए आकर्षित करता है। बेलोनिया के उप-विभागीय षहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित यह अभयारण्य राज्य कें राजमार्ग द्वारा अगरतला से जुड़ा हुआ है।

सिपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य, त्रिपुरा
अगरतला से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित, सिपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य 19 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। इसमें 150 से अधिक प्रजातियों के स्थानीय और प्रवासी पक्षी रहते हैं। इस स्थान को वन्यजीव अभयारण्य और षैक्षणिक तथा अनुसंधान केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। वर्षों से, इस जगह ने अपने प्राकृतिक, वनस्पति और प्राणी उद्यानों के माध्यम से पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमी लोगों की नज़रों में एक अलग ही जगह बना ली है। वनस्पतियों से घिरा हरा-भरा यह इलाका और इसका समषीतोषण मौसम इसे विभिन्न प्रकार के जानवरों के लिए एक अनूठे आश्रय का रूप प्रदान करता है। इनमें कई प्रजातियों के बंदर, लंगूर और मकाक षामिल हैं। इस सुंदर पर्यटन स्थल में कई झीलें हैं। इनमें से अमृत सागर झील सबसे लोकप्रिय है, जहां आगंतुकों को नौका विहार की सुविधा भी प्राप्त है। यह अभयारण्य 1972 में स्थापित किया गया था। इसे पांच वर्गों में विभाजित किया गया है - मांसाहारी पषु अनुभाग, मानव-सदृष पषु अनुभाग, सरीसृप अनुभाग, खुरदार अनुभाग और पक्षी अनुभाग।

भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य, गोवा
पष्चिमी घाट की तलहटी में बसा यह अभयारण्य 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह गोवा का सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य है। इसके भीतर मोलेम नेषनल पार्क स्थित है। यहां आप बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, ताड़ी बिल्ली, सियार, विषाल गिलहरी, बोनट मकाक (एक प्रकार का बंदर), भालू, लकड़बग्घा, सांभर, चित्तीदार हिरण, सुअर, माउस डियर और कांकड़ जैसे जानवरों को देख सकते हैं। इनके अतिरिक्त रूबी-थ्रोटेड पीली बुलबुल, मालाबार चितकबरा हॉर्नबिल, मालाबार ट्रोगन, क्रेस्टेड सर्प ईगल, क्रेस्टेड हनी बज़र्ड, वाइट-रंपेड स्पाइन टेल, एष वुड स्वेलो, ब्लैक-क्रेस्टेड बुलबुल, फॉरेस्ट वैगेट, स्कार्लेट मिनीवेट, चेस्टनट-बेलिड न्यूटच, वेलवेट-फ्रंटवेट नटचट और सल्फर-बेलिड वार्बलर भी अभयारण्य में पाए जाते हैं। सरीसृपों में कांस्य-बैक ट्री सांप, बिल्ली सांप, कूबड़-नाक गड्ढे वाइपर, भारतीय रॉक पायथन, मालाबार पिट वाइपर, चूहा सांप, रसेल के वाइपर, भारतीय कोबरा और आम क्रेट षामिल हैं। हालांकि, इस अभयारण्य का सबसे प्रसिद्ध सरीसृप निवासी किंग कोबरा ही है। अभयारण्य को देखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि लंबी पैदल यात्रा की जाए। आपको यहां पर अनेक ट्रैक और हाइक मिलेंगे। इन मार्गों पर आप अपने साथ गाइड भी लेकर जा सकते हैं। यहां पर एक इंटरप्रिटेषन सेंटर भी है, जिसमें इस अभयारण्य से संबंधित संग्रहणीय वस्तुओं और डेटा को सहेजकर रखा गया है।

मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, तमिलनाडु
दक्षिण भारत में स्थापित होने वाले पहले अभयारण्यों में से एक, मुदुमलाई वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी जवाहरलाल नेहरू पार्क का एक हिस्सा है। 321 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला मुदुमलाई, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के जंक्षन पर स्थित है। 1,140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस वन्यजीव अभयारण्य के उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में नमी से भरपूर टीक वन, दलदल, सूखे सागवान के जंगल और कई प्रकार के जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास है। यह अभयारण्य पषु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को देखने के लिए एकदम सही जगह है। यहां विविध प्रकार के पक्षी जैसे हाॅर्नबिल, मिनीवेट, फेयरी ब्लू बर्ड और जंगली मुर्गियां देखने को मिलते हैं। पक्षियों की गतिविधियों का भरपूर आनंद लेने के लिए यह जगह उत्कृष्ट है। यहां पर्यटक अनेक प्रकार के जंगली जानवर जैसे पैंथर, हाथी, गौर, माउस डियर, भालू, सांभर, चित्तीदार हिरण, कांकड़, काले हिरण, मालाबार की विषाल गिलहरियां, चार सींग वाले मृग (चैसिंगा), छोटे भारतीय षावक, साही आदि को देख सकते हैं। यदि आप भाग्यषाली हैं, तो आपको पानी के कुंड के पास बाघ भी दिख सकते हैं! पार्क में अनेक प्रकार के रेंगने वाले जीव (सरीसृप) जैसे सांप, मॉनिटर छिपकली और उड़ने वाली छिपकली आदि पाए जाते हैं। अधिक रोमांचक अनुभव के लिए पर्यटक हाथी की सवारी द्वारा भी यहां घूम सकते हैं। वर्ष 1972 में स्थापित थेपकाडू एलीफेंट कैम्प यहां का प्रमुख आकर्षण है।

पाॅइंट कैलिमेर वन्यजीव और पक्षी अभयारण्य, तमिलनाडु 
दलदल, सूखे सदाबहार जंगल और मैंग्रोव के पेड़ों के कारण, यहां किसी भी मौसम में आया जा सकता है। यह अभयारण्य पिकनिक और घूमने-फिरने के लिए बेहतरीन जगह है। यह समुद्र तट के बेहद निकट है। यह विषेष रूप से प्रवासी जलपक्षी और फ्लेमिंगो के लिए प्रसिद्ध है। सर्दियों में यहां लगभग पांच से दस हज़ार फ्लेमिंगो बड़ी आसानी से देखे जा सकते हैं। इस अभयारण्य का लगभग आधा हिस्सा दलदल से घिरा हुआ है, जो इसे प्रवासी और जल पक्षियों के लिए एक आदर्ष निवास स्थान बनाता है। बसंत के दौरान, पेड़ और झाड़ियां जंगली जामुन से लद जाती हैं। इससे हरे कबूतर और गुलाबी मैना जैसे हज़ारों पक्षी यहां आकर्षित होते हैं। इतना ही नहीं, सर्दियों के दौरान कीटभक्षी पक्षियों का झुंड भी यहां एकत्रित होता है, जो वनस्पति के ढेर के कारण आकर्षित होते हैं। इसमें पैराडाइज़ फ्लाई कैचर, भारतीय पित्त, श्रीक, स्वालो, ड्रोंगो, मिनिवेट्स, ब्लू जैस और वुड-बक्स आदि षामिल हैं। पक्षियों के अलावा इस अभयारण्य में काले हिरण, जंगली सूअर, चीतल, डॉल्फिन और कछुए भी पाए जाते हैं। पानी की उपलब्धता के कारण चैती, गूल, टर्न, प्लोवर, स्टिल्ट्स आदि ने भी इसे अपना घर बना लिया है।  

अन्नामलाई वन्यजीव अभयारण्य, तमिलनाडु
लगभग 958 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला अन्नामलाई वन्यजीव अभयारण्य, अन्नामलाई पहाड़ियों के नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के दक्षिण् ाी भाग में स्थित है। इसके मुख्य पर्यटन क्षेत्र को टाॅप स्लिप के नाम से जाना जाता है। यह समुद्र तल से 350 मीटर से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके परिदृष्यों में अधिकतर घने जंगलों वाली पहाड़ियां, घास के मैदान, पठार और गहरी घाटियां, सदाबहार व अधर्् ा-सदाबहार जंगल तथा पर्णपाती वन देखने को मिलते हैं। यहां के अर्ध-सदाबहार और गीले समषीतोष्ण आवासों में सागौन, गुलाब की लकड़ी और कई विविध उष्णकटिबंधीय प्रजातियां मौजूद हैं। पौधों की लगभग 8,000 प्रजातियों के साथ ही इस अभयारण्य में दोनों निवासी और प्रवासी पक्षियों की 500 प्रजातियों का बसेरा भी है। कुछ लोकप्रिय वन्यजीव जो आप यहां देख सकते हैं, उनमें तेंदुआ, हाथी, भालू, उड़ने वाली गिलहरी, जंगली भालू, जंगली कुकुर आदि षामिल हैं।

बीर भुनेरहेरी वन्यजीव अभयारण्य,
पंजाब ढेरों वनस्पतियों और किस्म-किस्म के वन्यजीवों से भरपूर बीर भुनेरहेरी वन्यजीव अभयारण्य में काला हिरण, सांभर, साही, सियार, लकड़बग्घे, जंगली बिल्लियां और विभिन्न किस्म के पक्षी जैसे कबूतर, तोते, बटेर, चित्तीदार उल्लू आदि कीकर, षीषम, जामुन जैसे ढेरों किस्म के घने वृक्षों के बीच पाए जाते हैं। किसी ज़माने में यहां पटियाला रियासत के राजा-महाराजा षिकार के लिए आया करते थे। 1972 में इसे वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया। पटियाला के बाहरी इलाके में स्थित यह अभयारण्य 661 हेक्टेयर से भी ज्यादा बड़ा है और यहां से होकर गुजरती एक सड़क के कारण यह दो हिस्सों में बंटा हुआ है। इस अभयारण्य का लगभग 240 हेक्टेयर हिस्सा कंटीली तारों से घिरा हुआ है। यह एक षांत, घना, हरा-भरा वन क्षेत्र है जिसमें वन्यजीवों को बेहद करीब से देखा जा सकता है।

जसरौता वन्यजीव अभयारण्य, जम्मू-कष्मीर
ऊझ नदी के तट पर स्थित जसरौता वन्यजीव अभयारण्य 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित है। विभिन्न जंतुओं एवं वनस्पतियों से समृद्ध यह अभयारण्य चीतल, जंगली सुअर, रीसस बंदर जैसे अनेक स्तनधारियों का प्राकृतिक आवास है, जिसमें चीतल प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं। इस अभयारण्य में बांस तथा इसकी झाड़ियों की अधिकता है। इस क्षेत्र में मोर, लाल जंगली मुर्गा, जंगली बटेर, हरे कबूतर तथा नीले जंगली कबूतरों सहित प्रवासी पक्षियों का भी आवास है। यहां घूमने का सर्वोत्तम समय मार्च से मई तक और जंतुओं में रुचि रखने वाले लोगों के लिए सितम्बर से मार्च तक है।  

सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य, छत्तीसगढ़ रायपुर
से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाली से परिपूर्ण यह स्थल छोटी पहाड़ियों एवं साल के जंगलों से घिरा हुआ है। यह अभयारण्य 1974 में बनाया गया था। इसका नाम सीतानदी के नाम पर पड़ा है। इसकी उत्पत्ति इस अभयारण्य के बीच में होती है तथा यह देवकूट के निकट महानदी से जा मिलती है। इस अभयारण्य में सीतानदी के अलावा सोंढुर एवं लेलंग नदियां भी बहती हैं। यहां स्थित विषाल सांढुर बांध देखने लायक जगह है। समृद्ध वनस्पति एवं वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध यह अभयारण्य देष के बेहतरीन अभयारण्यों में से एक है। यहां पर आपको जो वन्यजीव देखने को मिलेंगे, उनमें बाघ, तेंदुए, सियार, चमगादड़, जंगली बिल्ली, काले हिरण, बायसन, भालू, चीतल, सांभर, नीलगिरी, कोबरा एवं अजगर प्रमुख हैं। यह अभयारण्य पक्षियों की गतिविधियां देखने वालों के लिए भी उपयुक्त जगह है। यहां पर पक्षियों की 175 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें कंसारो, सफे़द बगुला एवं सारस प्रमुख हैं।