गंगा आरती वाराणसी में संध्या को होने वाला एक शोभमान अनुष्ठान हैए जिसे अवश्य देखना चाहिए। प्रतिदिन गोधुली के समय गंगा की आरती का आयोजन किया जाता है। घाटों पर पुजारियों के समूह द्वारा यह समारोह किया जाता है। शंख की ध्वनिए अनेक घंटियों की झंकारए पीतल के झांझों के बजने एवं मंत्रोच्चारण के बीच पंक्तिबद्ध पुजारी हाथ में पीतल के दीपों को थामे और उन्हें ऊपर.नीचे हिलाते.डुलाते वाराणसी की जीवनरेखा यानी कि गंगा की आराधना करते हैं।


गंगा आरती करने वाले सभी पुजारी एक समान परिधान अर्थात् धोती व कुर्ता पहने होते हैं। आरती की तैयारी की दिशा में पांच ऊंचे तख़्त एकत्रित किए जाते हैं। देवी गंगा की प्रतिमा रखी जाती है तथा उसके सम्मुख पुष्प एवं अगरबत्ती रखते हैं। आरती जैसा अनुष्ठान उन्हीं पुजारियों द्वारा किया जाता है जो वेदों एवं उपनिषदों में पारंगत होते हैं। इनका नेतृत्व गंगोत्री सेवा समिति के प्रमुख पुजारी द्वारा किया जाता है। गंगा आरती लगभग 45 मिनटों तक की जाती है। 
श्रद्धालु पावन गंगा को आदर स्वरूप पत्तों की नावों पर छोटे दीप नदी में प्रवाहित करते हैं। सूर्य की रोशनी जब कम होने लगती है तब नदी पर तैरते असंख्य दीप अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करता है। एक घंटे तक चलने वाले इस अनुष्ठान को घाटों अथवा नदी पर तैरती नौका से देखा जा सकता है।