भारत के चार हिस्सों हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में आयोजित किया जाने वाला कुंभ मेला शायद दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है। यह प्रत्येक चार साल में चार शहरों में से किसी एक में आयोजित किया जाता है। उज्जैन में आयोजित होने वाले मेले को सिंहस्थ कुंभ महापर्व कहा जाता है, जो पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है। इसकी गणना ऐसे हिंदू तीर्थस्थल के रूप होती है, जिसकी पवित्र नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। बहुत से भक्त इसी विश्वास से दुनिया के कोने-कोने से यहां आते हैं और क्षिप्रा के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। यह मेला स्वयं में एक जीवंत और विस्मयकारी आयोजन है। संस्कृति और परंपरा में रम जाने के लिए यह मेला एक बड़ा अवसर है।

इस लोकप्रिय त्यौहार की शुरुआत के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। देवता और राक्षस (असुर) उस अमृतकलश (अमृत का कलश) के लिए लड़ रहे थे, जो उन्हें आदिम समुद्र (समुद्रमंथन) के मंथन से मिला था। राक्षस अधिक शक्तिशाली थे इसलिए देवताओं ने चारों देवों-ब्रहस्पति, सूर्य, चंद्र और शनि को अमृत कलश सौंप दिया। वे इस अमृत कलश को लेकर भाग गये ताकि असुरों से यह सुरक्षित रहे। कहा जाता है कि राक्षसों ने पृथ्वी के चारों ओर 12 दिन-रात तक इन देवताओं का पीछा किया। पीछा करने के दौरान, देवताओं ने हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में वो कलश रखे। एक अन्य किंवदंती के अनुसार माना जाता है कि देवताओं और राक्षसों के बीच एक लड़ाई हुई, जिसमें कलश फट गया और उसका अमृत इन चार स्थानों पर गिर गया।

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