जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य

गुजरात-राजस्थान सीमा पर गुजरात के बनासकांठा जिले में, उदयपुर से लगभग 190 किमी दूर जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य, विलुप्ति की कगार पर खड़े स्लॉथ भालू का घर है। इसका नाम जेसोर पहाड़ी के नाम पर पड़ा है, जो गुजरात की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। अभयारण्य 180.66 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली है और लुप्तप्राय कई पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की प्रजातियों का घर है। यहां तेंदुआ, रीसस मकैक, भारतीय सिवेट कैट, पोर्क्युपाइन (साही). लोमड़ी, धारदार लकड़बग्घा और जंगली सूअर आदि पाए जा सकते हैं। यह कुछ दुर्लभ प्रजातियों सहित कई प्रकार के पक्षियों का घर भी है। इस क्षेत्र को मई 1978 में एक वन्यजीव अभयारण्य(वाइल्डलाइफ सेन्कचुरी) के रूप में घोषित किया गया था और यह, ये रेगिस्तान और जंगल के बीच एक बफर का काम करके अरावली के ईकोसिस्टम के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां यात्रा का सबसे अच्छा समय मानसून और सर्दियों के बाद का है।

जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य

अंबाजी

गुजरात-राजस्थानी सीमा पर अरावली पहाड़ियों में स्थित अरासुरी अंबाजी माता मंदिर हिंदू भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है। उदयपुर से लगभग 170 किमी की दूरी पर यह एक बहुत पूजनीय तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में देवी अम्बा की कोई मूर्ति नहीं है, लेकिन अंदर दीवार में एक छोटी सी गुफा है, जिसमें एक सोने की परत चढ़ा हुआ पवित्र शक्ति वीर श्री यंत्र रखा हुआ है। इसे सजाया और पूजा जाता है। मंदिर के गर्भ में 103 फीट ऊपर की ओर सुवर्ण कलश शिखर (शिखर) है जो संगमरमर के टुकड़े को तराश कर बनाया गया है, जिसे विशेष रूप से अरासुर पहाड़ी पर खानों से लाया गया था। मंदिर की चोटी पर तीन टन से भी अधिक वज़न वाला सोने का कलश है जो पवित्र ध्वज को धारण करता है।

अंबाजी

माउंट आबू

उदयपुर से लगभग तीन घंटे की दूरी पर राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू है, जो अरावली रेंज में है और समुद्र तल से 1,722 मीटर ऊपर है। झील, झरनों और अनोखे जैन मंदिरों का आनंद लेने के लिए यहां उदयपुर से आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके बीचोबीच शांत और निर्मल निकी झील मौजूद है। कहा जाता है कि इस झील को देवताओं ने नख यानी नाखूनों से खोदा था, इसीलिये इसका यह नाम पड़ा। यह हरी पहाड़ियों, अच्छे से बनाए गए पार्कों और टॉड रॉक, जो पानी में कूदते एक टॉड जैसा दिखता है, सहित अन्य चट्टानों से घिरी हुई है। 14वीं शताब्दी का रघुनाथ मंदिर झील के दक्षिणी किनारे के पास है। झील में बोटिंग करना लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। पहाड़ी पर सनसेट पॉइंट भी काफी लोकप्रिय है, जहां से डूबते सूरज के शानदार दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।

शहर 289 वर्ग किलोमीटर के माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य (वाइल्डलाइफ सेन्कचुरी) से घिरा हुआ है, जो ज्यादातर पहाड़ों पर फैला हुआ है। यहां दुनिया के सबसे बेहतरीन जैन मंदिरों में से एक देलवाड़ा मंदिर भी हैं। कई दशकों में बने, इन संगमरमर के मंदिरों का निर्माण शहर की स्थापना से कई शताब्दियों पहले किया गया था। मंदिरों में से दो में इतनी बारीकी से नक्काशी की गई है कि ऐसा लगता है मानो जैसे इन्हें दिव्य हाथों द्वारा बनाए गया हों। इनमें सबसे पहला और पुराना है विमल वसाही, जिस पर काम वर्ष 1031 में शुरू हुआ और पूरा होने में 14 साल से अधिक का समय लगा। यह सबसे पहले तीर्थंकर (जैन शिक्षक), आदिनाथ को समर्पित है। लूना वसही मंदिर 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित है और इसे वर्ष 1230 में बनाया गया था और कहा जाता है कि इसे पूरा होने में 15 साल लग गए थे। इस मंदिर में, संगमरमर की इतनी बारीक नक्काशी की गई है कि इसके कई हिस्सों में ऐसा लगता है कि मानो पत्थर रोशनी के लिए पारदर्शी हो गया हो।

माउंट आबू

डूंगरपुर

उदयपुर से लगभग 110 किमी दूर अरावली रेंज की तलहटी में स्वर्ग सी सुंदर दिखने वाली डूंगरपुर की पहाड़ी है। जो यहां पाए जाने वाले हरे संगमरमर के लिए मशहूर है।
डूंगरपुर माही और सोम के उपजाऊ मैदानों के बीच मोजूद यह काफी हरी-भरी जगह है। यहां दोनो नदियां इसके बीच से गुज़रती हैं, जिसके कारण यहां पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं अच्छी तादाद में पाये जाते हैं। इस शहर का नाम यहां के स्थानीय भील सरदार डुंगरिया के नाम पर है। इसे 1258 में मेवाड़ के तत्कालीन शासक करण सिंह के सबसे बड़े पुत्र रावल वीर सिंह द्वारा स्थापित किया गया था।

यहां का मुख्य आकर्षण 19वीं शताब्दी का उदय बिलास पैलेस है। मुगल और राजपूत की मिली-जुली वास्तुकला के साथ, यह महल, जो अब एक होटल है, स्थानीय हरे ग्रेनाइट से बनाया गया है और नक्काशीदार बालकनियों, मेहराबों और खिड़कियों से सजा हुआ है।
यहां का एक और लोकप्रिय आकर्षण है जूना महल, जो 13वीं शताब्दी में पीले पत्थर से बनी एक सात मंजिला संरचना है। ये महल फ्रैस्को, म्युराल्स, स्थानीय हरे पत्थरों और आईनों से सजा हुआ है। डूंगरपुर का सरकारी पुरातत्व संग्रहालय (आर्कियोलाजिकल म्युजियम) काफी मशहूर है और यहां 6वीं शताब्दी की विभिन्न देवताओं की मूर्तियां, पत्थर के शिलालेख, सिक्के और पेंटिंग्स हैं। इसे वर्ष 1959 में खोला गया था और यहां वागड़ क्षेत्र से खुदाई की गई वस्तुओं का संग्रह है। इनके अलावा, महल के साथ-साथ गैब सागर झील भी एक लोकप्रिय जगह है।

डूंगरपुर