तवांग युद्ध स्मारक एक स्तूप (बौद्ध तीर्थस्थल) है, जिसे उन भारतीय शहीदों की स्मृति में बनाया गया था जिन्होने सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपने प्राणों की आहूति दी थी। तवांग शहर के बहुत ही नजदीक, इस स्मारक का निर्माण बौद्ध वास्तुकला और सांस्कृतिक तत्वों के उपयोग कर के किया गया है, जिसमें अनेक प्रार्थना चक्र और झंडे, रंगीन सर्प, ड्रेगन और अन्य बौद्ध अवशेष (शरीर) शामिल हैं। इनमें से कुछ सजावटी वस्तुएं, स्थानीय तवांग आबादी द्वारा श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित किये गये हैं। ये सभी चीजें, इस स्थल की पवित्रता को और बढ़ा देती हैं। यहां भगवान बुद्ध जैसे कई देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियों को भी देखा जा सकता है। इस सुरम्य स्मारक का वातावरण बेहद शांत है और इसके मैदान के चारों ओर, सालो भर बर्फ से ढके पहाड़ों और बीहड़ पहाड़ियां को देख जा सकत है। स्तूप के चारों ओर, राष्ट्रीय ध्वज, सेना ध्वज, वायु सेना ध्वज के साथ-साथ 27 अन्य रेजिमेंटों के झंडे फहराए जाते हैं, जिन्होंने सन् 1962 के युद्ध में हिस्सा लिया था। स्मारक का निर्माण सशस्त्र बलों के 2,420 सदस्यों की स्मृति में किया गया था, जिन्होंने कामेंग जिले में युद्ध के दौरान अपना बलिदान दिया था। स्मारक पर समर्पण पट्टिका में लिखा गया है, 'उनके नाम हमेशा अमर रहेंगे'। स्मारक, दो प्रमुख हॉल में विभाजित है। एक में संग्रहालय है, जिसमें शहीदों के सामान रक्खे हैं। और दूसरे का उपयोग एक सभागार के रूप में किया जाता है, जहां लाइट और साउंड का एक शो होता है, जो आपको युद्ध के दिनों में वापस ले जाता है। दीवार पर कई तस्वीरें हैं, जो सैनिकों के बहादुरी के कारनामों को दर्शाती हैं, और कई चित्रण हैं जो युद्ध के दौरान, भारतीय और चीनी, दोनों सेनाओं द्वारा उपयोग किए गये हथियारों और टैंकों को प्रदर्शित करती हैं। यहां पर कई सारे ऐसे डिस्प्ले हैं जिनमें उन बीहड़ इलाकों और सीमावर्ती क्षेत्रों के मानचित्र देखने को मिलते हैं जहां अधिकांश लड़ाइयां लड़ी गईं थी। युद्ध स्मारक के पास एक उपहार की दुकान भी है जहां से स्मृति चिह्न खरीदे जा सकते हैं, और यहां से अर्जित राशि सेना कल्याण हेतु खर्च की जाती है।

अन्य आकर्षण