सुव्यवस्थित रत्नादुर्ग किले में घूमना, कोंकण की यात्रा का सबसे अच्छा अनुभव है। इसकी बनावट घोड़े की नाल जैसी प्रतीत होती है, यह मज़बूत किला एक बंजर चट्टान पर स्थित है, जहां से अरब सागर का मनमोहक दृश्य दिखता है। बारहवीं शताब्दी के बहमानी काल में निर्मित इस किले के पास ही प्रसिद्ध भगवती देवी मंदिर है, जिस कारण इस किले को 'भगवती किला' भी कहा जाता है।  120 एकड़ में फैला यह किला तीन भागों में विभाजित है। यदि आप भरपूर एवं संतोषजनक अनुभव लेना चाहते है, तो इसके लिए आपको किले की प्राचीर की तरफ जाना होगा, जहां आपको विशाल समुद्र और समानांतर रेखा में बसे भीड़-भाड़ वाले मछुआरों के छोटे-छोटे गांव दिखाई देंगे, जो सच में एक अदभुत नजारा है। यह किला तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, इसके चौथी ओर एक लाइटहाइस है। हालांकि आगंतुकों को अनुमति के बिना लाइटहाउस में प्रवेश करना मना है। इसके अलावा बगल में चार तोपें रखी हुई हैं, जिनमें से दो लगभग 12 फीट लंबी हैं, जिससे इस किले की भव्यता का अहसास होता है। यहां आप मराठा नौसैनिक प्रमुख कान्होजी आंग्रे की मूर्ति, युगों-पुराना लकड़ी का स्तंभ और एक दर्पण जो कान्होजी आंग्रे के निर्वासन के दौरान बर्मी राजा द्वारा उपहार में दिया गया था आदि को भी देखना ना भूले।  

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