सेथुकरई

आस्था की स्थली सेथुकरई को सेथुकोस्ट के नाम से भी जाना है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यह वही स्थान है, जहां श्रीराम ने रावण की कैद से देवी सीता को छुड़ाने के लिए सेतु का निर्माण किया था। उस काल में उनके द्वारा बनाए गये सेतु के अवशेष आज भी यहां देखे जा सकते हैं। यहां आने वाले पर्यटक आदि सेतु के पवित्र जल में स्नान अवश्य करते हैं। क्योंकि प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यह वही स्थान है, जहां श्रीराम ने लंका की ओर प्रस्थान करने से पहले स्नान किया था। यहां समुद्र के किनारे हनुमान जी का एक छोटा मंदिर, भारी संख्या में भक्तों को अपनी ओर हर दिन आकर्षित करता है। इस मंदिर को सेतु बंधन अंजनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। रामेश्वरम से सेथुकरई करीब 70 किमी दूर है, जहां रामेश्वरम आने वाले यात्रियों को जरूर जाना चाहिये। 

सेथुकरई

कोथंदरामास्वामी मंदिर

रामेश्वरम के बेहद करीब स्थित है कोथंदरामास्वामी मंदिर। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार रावण के छोटे भाई विभिषण ने इस स्थान पर भगवान राम के समक्ष आत्मसमपर्ण किया था। इस मंदिर में श्री राम, देवी सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी और विभिषण की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मंदिर की दीवारें बेहद खूबसूरत चित्रों से सजी हैं, जिनमें रामायण की विभिन्न कथा-कहानियां अनूठे ढंग से उकेरी गयी हैं। मंदिर का एक मुख्य आकषर्ण अथिमरम वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह यहां का सबसे प्राचीन वृक्ष है। यहां आने वाले श्रद्धालु पास ही में स्थित नंदमबक्कम भी जा सकते हैं, जहां श्रीराम ने भृंगी ऋषि के आश्रम में कुछ दिन व्यतीत किये थे। भीड़ से बचने के लिए तथा मंदिर को अच्छी तरह से देखने के लिए यहां तड़के आना सुविधाजनक है। यदि यात्री यहां रुकना चाहें, तो मंदिर में ही उनके ठहरने के लिए कमरों का भी प्रबंध है। 

कोथंदरामास्वामी मंदिर

अग्नितीर्थम

अग्नितीर्थम, दो शब्दों अग्नि और तीर्थम को मिलाकर बना है, जिसमें अग्नि का अर्थ आग है और तीर्थम का अर्थ पवित्र जल है। पौराणिक ग्रंथों और पुस्तकों में इस स्थल का उल्लेख एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में मिलता है। यह रामेश्वरम स्थित सभी 64 पवित्र कुंडों में से एक है और हिन्दुओं के लिए एक बेहद पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। रामेश्वरम आने वाले सभी तीर्थगण इस कुंड के पवित्र जल में डुबकी अवश्य लगाते हैं। उनका विश्वास है कि ऐसा करने से उनके सभी दोष और कष्टों का निवारण हो जाता है। यह तीर्थ मंदिर परिसर के बाहर पूर्वी तट पर स्थित है। वैसे तो यहां रोजाना ही स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है, लेकिन अमावस्या और पूर्णिमा के दिनों में यहां स्नान करने का विशेष महत्व है। 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब श्रीराम ने दुष्ट रावण का वध कर दिया था, तब उन्होंने अपने ईष्ट देव भगवान शंकर की आराधना की थी, ताकि वह ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें। इसके पश्चात उन्होंने अग्नितीर्थम के पवित्र जल मे स्नान किया था। इसीलिए भक्तों का ऐसा विश्वास है कि श्रीराम की तरह, अगर वे भी इस कुंड में डुबकी लगाएंगे तो उनके भी कष्टों और पापों का नाश हो जाएगा। 

अग्नितीर्थम

श्री रामनाथस्वामी मंदिर

रामेश्वरम स्थित श्री रामनाथस्वामी मंदिर दुनियाभर से आने वाले भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल और आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। भगवान शिव के प्रसिद्ध बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक यहां स्थापित है। रामनाथस्वामी का शाब्दिक अर्थ है- श्रीराम के स्वामी, जो कि भगवान शिव हैं। दरअसल, देवी सीता को दुष्ट रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए जब श्रीराम ने यात्रा प्रारंभ की थी तो सबसे पहले उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान शिव की पूजा की थी। 

इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में देखते ही बनती है। मंदिर की दीवारों, खंबो और छतों पर बेहद बारीकी से उकेरी गयी कलाकृतियां किसी को भी अपने पाश में ले सकती हैं। मंदिर का गलियारा अपनी खूबसूरती के लिए दुनियाभर में जाना जाता है और मंदिर की भव्य चोटियां श्रीराम की गौरवगाथा अनादि काल से बयां करती प्रतीत होती हैं। मंदिर के पूरे प्रांगण में कुल 1212 खंबे हैं और प्रत्येक खंबे पर इतनी खूबसूरत नक्काशी की गयी है कि नजर हटाएं  नहीं हटती। इसी प्रांगण में कुल 22 तीर्थ कुंड हैं, जहां के पवित्र जल में डुबकी लगाकर श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां के पवित्र जल में स्नान करने से आपके सभी पाप धुल जाते हैं और आप दोषमुक्त हो जाते हैं। यह मंदिर सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है।  

श्री रामनाथस्वामी मंदिर