लकड़ी के हस्तशिल्प

तमिलनाडु में मिलने वाले लकड़ी से बने हस्तशिल्प बेहद ही आकर्षक होते हैं, जो राज्य के अनुष्ठानों और परंपराओं के प्रतीक हैं। घरेलू उपयोग की रोजमर्रा की वस्तुएं, सजावट का सामान, विभिन्न आकारों के पारंपरिक फलक, बारीक नक्काशीदार छोटे मंदिर, दीवार की सजावट, मूर्तियां, ये सभी ऊटकमुंड के बाज़ारों में मिलती हैं। इनमें फूल-पत्तियों के चित्र वाले टेबल और हिन्दू काव्य-पुराणों के दृश्यों वाले वाल पैनेल्स अत्यंत रोचक हैं। लघु उत्पादों के अतिरिक्त लकड़ी के कारीगर बांस की टोकरियां , बेंत, सरकंडों और ताड़ के पेड़ों की टोकरियां, रस्सियां और चटाइयां बनाते हैं।

लकड़ी के हस्तशिल्प

कोटा स्टोन पॉटरी

प्राचीन काल से नीलगिरी में निवास करने वाली जनजातियों में से एक है कोटा जनजाति। इस जनजाति की महिलाओं को ही कोटा स्टोन पॉटरी बनाने की अनुमति है। जहां अन्य पॉटरी कला में मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, वहीं कोटा पॉटरी में काले पत्थर का उपयोग किया जाता है। कोटा स्टोन पॉटरी से बनी वस्तुओं में बारीक नक्काशी होती है, जो आपके घर की शोभा बढ़ा देगी। कोटा स्टोन के एक्सट्राक्सन से लेकर मोल्डिंग, सेपिंग, और फायरिंग तक, सब कुछ जनजाति की महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। जनजाति के भीतर पत्थर के बर्तनों के उत्पादों का उपयोग न केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, बल्कि रोजमर्रा की कार्यों जैसे खाना पकाने, सफाई, पानी के भंडारण, बर्तन आदि के लिए भी किया जाता है। महिलाएं अपने समुदाय के भीतर अनाज के बदले में बर्तनों का विनिमय (बार्टर) भी करती हैं। ऊटकमुंड में आमतौर पर सभी बाजारों में आदिवासी कलाकृतियों की बिक्री होती है।

कोटा स्टोन पॉटरी

टोडा पुगर कढ़ाई

पुगर कढ़ाई का एक बहुत विशिष्ट रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ है फूल। इसमें अलग-अलग ज्यामितीय आकार की कढ़ाई लंबे शॉल पर की जाती है, जिन्हें पुतकुली कहा जाता है। डिजाइन ज्यादातर प्रतीकात्मक हैं, जिसमें पुष्प आकृति से लेकर पशु और मानव चित्र शामिल हैं। पुगार कढ़ाई टोडा जनजाति की विशेषता है और इसे टोडा कढ़ाई भी कहा जाता है। पुगार का काम शॉल, मैट, बैग आदि पर किया जाता है। लाल और काले रंग की कढ़ाई विशेष रूप से टोडा महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। पुगार दिखने में एक महीन कपड़े की तरह दिखता है, असल में सफेद सूती कपड़े पर लाल और काले धागों को मिलाकर इसे बनाया जाता है। जनजाति के सदस्य खुद को पुगार कढ़ाई किए गए शॉल और लहंगे से सजाते हैं। इस शिल्प को भौगोलिक पहचान दी गई है और इसे भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया है।

टोडा पुगर कढ़ाई