मंगी तुंगी पहाड़ियां

सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में दो पहाड़ियों का एक समूह मंगी तुंगी काफी सुंदर है। जबकि चोटियां स्वयं बंजर चट्टानों वाली है, वहां से हरी भरी घाटी बहुत ही सुन्दर दिखती हैं। साफ दिनों में भूरे और हरे नीले आकाश के परिदृश्य में ये आश्चर्यजनक दृश्य बनाती हैं। यदि आप लकीर से हटकर चलना पसंद करते हैं, तो मंगी तुंगी एक सही जगह है। शांतिपूर्ण और विचित्रता का यह सही मिश्रण है जो आपकी छुट्टी को विशेष बना देगा।
यह श्री मंगी तुंगी दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र, एक प्रमुख जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध हैं। पहाड़ियों के तल पर कई जैन स्मारक भी देखने लायक हैं।
मंगी तुंगी का एक अनूठा पहलू यह है कि यह माना जाता है कि हजारों जैन संतों ने यहां मोक्ष (आत्मा का उद्धार) प्राप्त किया था। इसके अलावा, इस स्थान का भगवान राम और देवी सीता, भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई भगवान बलराम की कहानियों से घनिष्ठ संबंध है।
मंगी तुंगी में कई गुफाएं भी हैं, जिनका नाम तीर्थंकरों (संतों) के नाम पर रखा गया है, जैसे महावीर, ऋषभनाथ, शांतिनाथ और पार्श्वनाथ। कुछ गुफाओं में संस्कृत के फीके पड़े शिलालेख हैं, जिन्हें अब पढ़ना मुश्किल है।
मंगी पश्चिमी शिखर है, जो 4,343 फीट ऊंचा है, जबकि तुंगी पूर्वी शिखर है, जो समुद्र तल से 4,366 फीट ऊंचा है। मंगी में लगभग 10 गुफाएं हैं, जिनमें से एक में भगवान महावीर की भव्य सफेद संगमरमर की मूर्ति है। तुंगी पांच अच्छी तरह से बनाए मंदिरों और दो गुफाओं का घर है। यहां रहते हुए, गुफाओं से दूर पहाड़ियों का पता लगाने के लिए कुछ समय निकालें। आपको चट्टानों में खुदी हुई भगवान यक्ष, देवी यक्षिणी और भगवान इंद्र की कुछ प्यारी छवियां मिल सकती हैं।

मंगी तुंगी पहाड़ियां

मुक्तिधाम

शायद सबसे खूबसूरत और नासिक के सभी मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर मुक्तिधाम राजस्थान से लाये संगमरमर से बनाया गया है। यह एक वास्तुकलात्मक आश्चर्य है जिसमें आधुनिक शैलियों से प्रभावित एक विशिष्ट भारतीय सौंदर्यबोध है।

यह मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है क्योंकि इसमें श्री भगवद गीता के सभी 18 अध्यायों को प्रदर्शित किया गया है, ये सभी दीवारों पर नक्काशी कर उकेरी गई हैं। भक्त भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, देवी सीता, भगवान हनुमान, देवी दुर्गा, और भगवान गणेश की मूर्तियों को अपना क्ष्र्रद्धा-पुष्प अर्पण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आपको यहां 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां भी मिलेंगी। मुख्य मंदिर के परिसर के भीतर ही भगवान कृष्ण को समर्पित एक मंदिर है। छोटे मंदिर की दीवारों पर, भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों के साथ-साथ भारतीय महाकाव्य महाभारत के प्रकरण भी अंकित हैं। मंदिर परिसर के भीतर एक धर्मशाला भी बनाई गई है जो एक बार में 200 तीर्थयात्रियों को स्थान दिया जा सकता है।

मुक्तिधाम

तपोवन

तपोवन पवित्र दंडकारण्य वन का एक हिस्सा माना जाता है, यह घने जंगलों से घिरा हुआ है और एक शांत वातावरण प्रदान करता है। यह नदियों कपिला और गोदावरी के संगम पर स्थित है। यह जंगल से होकर गुजरता है, और शांतिपूर्ण वातावरण में मधुर संगीत का सृजन करती है।

पूर्व में तपोवन महान संतों के लिए ध्यान के लिए एक स्थान के रूप में कार्य करता था। इसमें गोपालकृष्ण और लक्ष्मी-नारायण के मंदिर हैं, सालों भर भक्तों का यहां आना होता है। इसके अलावा, कपिला तीर्थ भी एक भ्रमणीय स्थल हैं, कहा जाता है यहां पर एक महान संत ने ध्यान लगाया था। पर्यटक यहां तीन कुंड भी जा सकते हैं, जिन्हें ब्रह्म तीर्थ, शिव तीर्थ और विष्णु तीर्थ के रूप में जाना जाता है, ये एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

तपोवन

भक्ति धाम

डिंडोरी नाका में स्थित भक्ति धाम मंदिरों की बहुतायता के कारण प्रसिद्ध है। इसलिए यह धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है। यह भगवान कृष्ण और उनकी दिव्य पत्नी, देवी राधा को समर्पित है। मुख्य गर्भगृह में, आपको भगवान कृष्ण और देवी राधा की नक्काशीदार मूर्तियां मिलेंगी, साथ ही गुजरात के एक हिंदू संत संत जलाराम बप्पा की मूर्ति भी मिलेगी।

मंदिर को फीके लाल पत्थर से शानदार ढंग से तैयार किया गया है। टाइलों से आच्छादित एक विशाल प्रांगण है जहां तीर्थयात्री और छात्र शांत बैठ सकते हैंं, ध्यान लगा सकते हैं। सदियों पुरानी धार्मिक शिक्षाओं की आधुनिक संभावनाओं पर समूह चर्चा कर सकते हैं। मंदिर के पीछे एक पार्क है, जहां आप पत्तेदार पेड़ों की छतरी के नीचे टहल सकते हैं, या सिर्फ बैठे रह कर शांत चित्तता का अनुभव कर सकते हैं। यहां भक्ति धाम का सुकून वातावरण आपको आनन्दित कर देगा।

भक्ति धाम

वेद मंदिर

वेद मंदिर गुरु गंगेश्वरानंदजी महाराज का मंदिर है, जिन्हें वर्तमान समय में वैदिक कलाओं का प्रतिनिधि और राजदूत माना जाता है। इतालवी संगमरमर में निर्मित, वेद मंदिर एक चित्ताकर्षी वास्तुशिल्प कृति है, जिसमें कांच की दीवारें और फ्लड लाईट्स की रोशनी आंतरिक सज्जा को रोशन करती है। भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और देवी सीता की मूर्तियां के अलावा गुरु गंगेश्वरानंदजी महाराज की मूर्ति के भी रखी पाई जा सकती हैं।
मंदिर मूल वैदिक लिपियों और वैदिक मंत्रों के ऑडियो और वीडियो फ़ाइलों का एक सच्चा खजाना है। यह वैदिक प्रथाओं और भारत के सांस्कृतिक लोकाचार को प्रोत्साहित करता है जो पर्यटकों को मोहित करता है। अब जबकि इसका महत्व और लोकप्रियता धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से बढ़ रही है, अधिक से अधिक पर्यटक भारतीय संस्कृति की जड़ों के बारे में अधिक जानने के लिए यहां आते हैं। वेद मंदिर के पास रहने और अपने दैनिक जीवन में वैदिक शास्त्रों की शिक्षाओं को अपनाने का प्रयास करते हैं।

तीर्थयात्रियों की इस वढ़ती आवादी को समायोजित करने के लिए आलंदी और पंढरपुर में आरामदायक कमरे उपलब्ध कराने वाले धर्मशालाएं स्थापित की गई हैं।

वेद मंदिर

सोमेश्वर मंदिर

नासिक के उपनगर क्षेत्र में बसा भगवान शिव और भगवान हनुमान को समर्पित, यह मंदिर एक शांत वातावरण में बना हुआ है। पर्यटकों को मुख्य शहर की हलचल से शांति और सुकून मिलेगी। यहां की सुखद जलवायु में आपको सहजता महसूस होगी, सहज हो प्रभु की प्रार्थना भी अच्छी होगी और मंदिर को पूरी तरह से देख सकेंगे।

गोदावरी नदी के तट पर स्थित, सोमेश्वर मंदिर नासिक के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। पर्यटकों को इसकी फोटोजेनिक अग्रभाग और तैराकी और नौका विहार आदि गतिविधियों की बहुतायता अपनी ओर खींचती है। पास में बच्चों का एक पार्क भी है।
अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर ने कई फिल्मों की पृष्ठभूमि के रूप में काम किया है। यहां आने के रास्ते में आनंदवाली नामक गांव में थोड़ा वक्त अवश्य गुजारें, आनंदीबाई पेशवा और राघो बाडा पेशवा ने कुछ समय यहां बिताया था। एक छोटा लेकिन सुंदर मंदिर, नवशा गणपति उनके द्वारा यहां बनाया गया था।

सोमेश्वर मंदिर

शिरडी

भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक शिरडी, साईं बाबा के कारण जाना जाता हैं। वे अपनी दिव्य शक्तियों के लिए जाने जाते हैं, पांच दशकों से अधिक समय तक जीवित रहें और लोगों को उनके उपदेश का लाभ मिलता रहा। समाधि मंदिर, जहां वे रहते थे, में एक कमरा है जिसमें श्री साई द्वारा जीवनकाल के दौरान उपयोग की गई चीजों को दर्शाया गया है। इसलिए उनके शिष्यों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है, जो उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं और आज भी उनका सम्मान करते हैं। मंदिर में उनके नश्वर अवशेष भी रखे हैं।
हर दिन सभी पंथों और धर्मों के 60,000 से अधिक पर्यटक और भक्त मंदिर में आते हैं, और त्योहारों के मौसम के दौरान यह संख्या और बढ़ जाती है। मंदिर सुबह 4:00 बजे खुलता है और मूर्ति की एक झलक पाने और उसकी पूजा करने के लिए एक कतार में इंतजार करना पड़ता है। शिरडी में श्री साई के जीवन से जुड़े अन्य स्थानों में द्वारकामाई मस्जिद, चावड़ी और गुरुस्थान शामिल हैं।

द्वारकामाई मस्जिद के अंदर एक मंदिर के साथ एक मस्जिद है। भारत में अपनी तरह का यह एकमात्र हो सकता है। मस्जिद का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि साईं बाबा ने जिस धूनी या पवित्र अग्नि को यहां जलाया था, उसे आज भी जलाया जाता है। धूनी से निकलने वाली राख में हीलिंग पॉवर माना जाता है।

शिरडी

रामकुंड

रामकुंड शहर का सबसे पवित्र स्थान है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान राम यहां स्नान किया करते थे। यह गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि रामकुंड के पानी में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और वह अधिक सकारात्मक और परोपकारी दृष्टिकोण के साथ नए सिरे से शुरुआत कर सकता है।

रामकुंड अक्सर हर 12 साल में शहर में आयोजित होने वाले प्रसिद्ध कुंभ मेले का स्थल बन जाता है। भक्तों का यह भी मानना ​​है कि उनके मृतकों की राख को विसर्जित करने से उन्हें जीवनकाल के बाद शांति मिलेगी।

रामकुंड

भागुर

हरी-भरी पहाड़ियों और सुखद मौसम वाला भागुर एक खूबसूरत प्राकृतिक शहर है। नाशिक से दूर सप्ताहांत मनाने की यह एक अच्छी जगह है। एक घंटे की ड्राइव में पहाड़ी श्रृंखला के साथ ही नीचे की घाटियों के शानदार दृश्य दिखाई देते हैं। जब आप शहर में हैं, तो भागुर देवी मंदिर के लिए कुछ समय अवश्य निकालें, बड़ी संख्या में यह भक्तों को आकर्षित करती है। यह छोटा सा सुंदर मंदिर उन लोगों के लिए एक आकर्षण है, जो लकीर से हट कर चीजें देखना पसंद करते हैं। भागुर के स्थानीय लोगों की जीवंतता और पुरोहितों से परिचित होने का यह एक शानदार अवसर है। मंदिर के अहाते का परिक्रमा लेते हुए देवी का आशीर्वाद लें या फिर आंगन में बैठकर शांतिपूर्ण ध्यान का आनन्द लें।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भागुर का एक खास महत्व है क्योंकि यह महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर का जन्मस्थान है।

भागुर

कालाराम मंदिर

शहर के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों में से एक, कालाराम मंदिर भगवान राम को समर्पित है। भगवान की मूर्ति काले पत्थर में बनी है और इसलिए इसका नाम 'कलाराम' है, जिसका हिंदी में अर्थ है 'काला राम'। मंदिर पंचवटी क्षेत्र के भीतर स्थित है और यह माना जाता है कि इसका निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहां भगवान राम अपने वनवास के दौरान रहा करते थे।

काले रंग की थीम को बरकरार रखते हुए, मंदिर में प्रवेश द्वार पर उसी रंग में भगवान हनुमान की एक मूर्ति भी है। साथ ही भगवान लक्ष्मण और देवी सीता की दो फुट ऊंची काले पत्थर की मूर्तियां भी हैं। बड़ा मंदिर परिसर 17 फुट ऊंची दीवारों से घिरा है, जिसके बीच में मुख्य मंदिर है। विश्राममंडप मंदिर से अलग रखा गया है, यह एक विशाल खुली जगह है जहां भक्त आराम कर सकते हैं, और ध्यान लगा सकते हैं।

कालाराम मंदिर

अंजनेरी

अंजनेरी में हरी-भरी हरियाली, ठंडी जलवायु और आध्यात्मिक ऊर्जा लाजिमी है। इसका नाम अंजना देवी, पवनपुत्र हनुमान की मां के नाम पर रखा गया है। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि मुख्य पहाड़ी के ऊपर गुफा में अंजना देवी ने भगवान हनुमान को जन्म दिया था। इस मंदिर को अंजना माता मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां वह अपने बच्चे के लिए प्रार्थना करती थी। किंवदंती के अनुसार भगवान शिव अंजना माता को जीवन के सर्वोत्तम उपहार के लिये उन्हें आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं।

अंजनेरी को देखने का सबसे अच्छा तरीका पहाड़ी पर ट्रेकिंग करना है। थकाऊ लेकिन रोमांचक ट्रेक आपको उस गुफा के पास ले जाएगा, जहां भगवान पवन देव ने भगवान हनुमान को एक बच्चे के रूप में लाए थे, जब वह भगवान इंद्र के 'वज्र' की चपेट में आए थे। मार्ग पर एक और गुफा में आपको शिलालेख दिखेंगी, ये लगभग 1,000 साल पुरानी कही जाती हैं।
यह स्थान प्रसिद्ध इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ रिसर्च इन न्यूमिज़माटिक स्टडीज(मुद्राविषयक) के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई जैन और हिंदू मंदिर हैं। इन सबके अलावा, यह अपने पर्यटकों को गांव के देहाती आकर्षण का शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है।

अंजनेरी

त्र्यंबकेश्वर मंदिर

नासिक के बाहरी इलाके में स्थित, प्राचीन त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव (वर्ष 1740-1760) ने एक पुराने मंदिर के स्थान पर किया था। यह ब्रह्मगिरि पहाड़ी के तल पर स्थित है और नीलागिरि और कालागिरि की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

पूरी तरह से काले पत्थर से निर्मित, भगवान शिव को समर्पित हिंदुओं के लिए यह एक सुंदर तीर्थस्थल है। यह त्र्यंबक शहर के पास स्थित है, जहां से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। मंदिर परिसर के भीतर एक तालाब कुशावर्त, पवित्र नदी का उद्गम स्थल माना जाता है।
12 ज्योतिर्लिंगों में एक होने के कारण यह इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यहां के शिवलिंग का केंद्र बिंदु यह तथ्य है कि भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव का यह तीन मुखी लिंग है। लिंग हीरे, पन्ने और अन्य कीमती पत्थरों से बने मुकुट से सुशोभित है। मुकुट को हर सोमवार को शाम में एक घंटे के लिए प्रदर्शित किया जाता है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर

पंचवटी

पवित्र गोदावरी नदी के बाएं किनारे पर स्थित पंचवटी, यात्रियों के लिए आध्यात्मिक रूप से एक महत्वपूर्ण स्थल है। 'पंचवटी' नाम हिंदी के 'पंच' शब्द से आया है जिसका अर्थ है पांच और 'वटी' का अर्थ है बरगद का पेड़। पौराणिक कथाओं में, पंचवटी वह स्थान था जहां भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और देवी सीता ने अपने 14 वर्ष के वनवास के कुछ वर्ष बिताए थे।

भगवान राम के भक्तों के लिए, पंचवटी एक ऐसा तीर्थ स्थल है जिसे वे बहुत प्रिय मानते हैं, क्योंकि यहीं भगवान राम, उनकी दिव्य पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण ने यहां के घने जंगलो में एकांत और आराम पाया।

पंचवटी

सप्तश्रृंगी गाद

नासिक से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित श्री सप्तश्रृंगी गाद ​​समुद्र तल से लगभग 4,659 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 'सप्तशृंगी' शब्द का अर्थ सात सींगों वाली पर्वत चोटियों से है। यह इस स्थान का उपयुक्त नाम है क्योंकि यह सात चोटियों से घिरी पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 510 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

इस स्थल को श्री सप्तश्रृंगी गाद देवी भगवती का घर माना जाता है। देवी की मूर्ति आठ फीट ऊंची है और इसे प्राकृतिक चट्टान में उकेरा गया है। दोनों ओर नौ हाथों वाली, हर हाथ में एक अलग हथियार थामे, सोने के आभूषणों में सजी, एक उच्ची ताज में, देवी की मूर्ति निहारते ही बनती है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक पहाड़ के चेहरे पर स्वयं को उकेरा है।

सप्तश्रृंगी गाद