यह किला भगवान कृष्ण के मामा, राक्षस कंस का महल माना जाता है। यह किला यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसके आंशिक खंडहर अभी भी इसकी पूर्व भव्यता को दर्शाते हैं। इस किले में हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला के मिश्रण के निशान आसानी से देखे जा सकते हैं। इस बात से यह प्रमाण मिलता है कि इस किले पर न जाने कितने ही राजाओं ने इस पर अपनी सत्ता स्थापित की होगी। कई राजाओं के हाथों से गुजर जाने के बाद, 16वीं शताब्दी के दौरान जयपुर के राजा मान सिंह द्वारा इस महल को पुन: निर्मित किया गया।
कहा जाता है कि बाद में महाराजा सवाई जय सिंह (सन् 1699-1743) ने किले के परिसर में एक वेधशाला भी बनवाई थी, लेकिन इसका अब कोई अवशेष नहीं है। किले के बाहर स्थित पुराना दर्शक कक्ष, विशेष रूप से देखने लायक है जिसमें लाल बलुआ पत्थरों के बने कई विशाल स्तंभ हैं। यमुना नदी के उत्तरी तट पर स्थित होने के कारण, इस किले का इस्तेमाल पहले पहल बाढ़ से बचाने के लिये किया जाता था। यह किला जनता के लिये सालों भर हर दिन खुला रहता है, लेकिन यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के महीनों के बीच माना जाता है जब तापमान में थोड़ी गिरावट आ जाती है।

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