मथुरा और वृंदावन अपने होली के त्योहारों के लिए जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण अपने बालक अवतार में अपनी माँ से रोते रोते यह कहते हैं कि राधा गोरी क्यों है, जबकि उनका रंग सांवला है। तब यशोदा मां ने उन्हें राधा पर रंग फेंकने की सलाह दी, इस प्रकार ब्रज की होली का जन्म हुआ। ऐसा कहा जाता है कि हर साल, भगवान कृष्ण अपने गांव (नंदगांव) से देवी राधा के गांव (बरसाने) की यात्रा करते थे, जहां राधा और गोपियां उन्हें डंडे से मारती थीं। बरसाने में होली का उत्सव, त्योहार की वास्तविक तिथि से एक सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है, उसके अगले दिन से ही नंदगांव में भी इसकी तैयारी शुरु हो जाती है। मथुरा और वृंदावन में, इस उत्सव को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, जैसे बरसाने और नंदगांव में लट्ठमार होली है, जहां लाठी का उपयोग ताल उत्पन्न करने के लिये किया जाता है, जिस पर युवक और युवतियां नृत्य करते हैं; गोवर्धन पहाड़ी के पास गुलाल कुंड में फूलों वाली होली होती है, जिस दौरान रास लीला की जाती है, और रंग बिरंगे फूलों से होली खेली जाती है; और है वृंदावन में विधवा की होली। यह शहर की विधवाओं के लिए सबसे खास और भावनात्मक समारोह है, क्यों कि उन्हें रंगों से खेलने की मनाही होती है। इस दिन वे सफेद साड़ियों में लिपटे हुए, एक दूसरे पर गुलाल फेंकती हैं और आनन्दित होकर उत्सव का मज़ा उठाती हैं। बांके बिहारी मंदिर में होली का उत्सव पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है- जैसा कि माना जाता है कि भगवान कृष्ण सफेद कपड़े पहनकर अपने भक्तों पर गुलाल उड़ाते थे, उसी तरह मंदिर के पुजारी इसी प्रथा का पालन करते हुए भक्तों की भीड़ पर गुलाल और फूल बरसाते हैं। पूरे परिसर में जप और प्रार्थना के गीत सुने जा सकते हैं। मथुरा के द्वारकाधीश जैसे अन्य मंदिरों में भी, काफी बड़े और सबसे ज्यादा जोश के साथ होली के समारोहों का आयोजन किया जाता है। मथुरा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर दाऊजी मंदिर है, जहां हरुंगा नामक उत्सव इसी समय शुरु होता है। होली के त्योहार के एक दिन बाद मनाया जाने वाले इस अनुष्ठान में पुरुष महिलाओं के ऊपर रंग-बिरंगा पानी डालते हैं, जो उनके कपड़ों को फाड़ देती हैं और पुरुषों को छेड़तीं हैं।

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