शाहनजफ़ इमामबाड़ा

शाहनजफ़ इमामबाड़ाए सफ़ेद गुंबद वाला मक़बरा है जिसका निर्माण नवाज़ गाज़ीउद्दीन हैदर ने पल्टन घाट पर कराया था। ग़ाज़ीउद्दीन हैदर वर्ष 1816.1817 में मुगलों के अंतिम वज़ीर ;मंत्रीद्ध और अवध राज्य के पहले राजा थेए जिनको शाहनजफ़ में दफ़नाया गया था। यही वजह है कि इस इमामबाड़े को कर्बला के नाम से भी जाना जाता है। उनकी तीन पत्नियांए मुबारक महलए सरफ़राज़ महल और मुमताज़ महल भी यहीं दफन हैं। यह इमामबाड़ा पैग़म्बर मोहम्मद की सबसे लाडली बेटी बीबी फ़ातिमा के शौहर ख़लीफ़ा हज़रत अली के प्रति उनकी इबादत का प्रतीक और श्रद्धांजलि है। यह इमारत इराक के नजफ़ शहर में हज़रत अली के मकबरे की प्रतिकृति है। यह सिकंदर बाग के पास गोमती नदी के तट पर स्थित है। इसके एक ओर मुबारक महल का मकबरा हैए जिस पर चांदी.सोने की नक्काशी की गई है। इस्लामी तारीख़ ;चंद्र मास के मुताबिकद्ध रजब के 13वीं तारीख़ए तथा 7वें और 9वें मुहर्रम के बीचए जब हज़रत अली का जन्मदिन मनाया जाता हैए उस समय शाहनजफ़ इमामबाड़ा बहुत खूबसूरत दिखाई देता है।

शाहनजफ़ इमामबाड़ा

शहीद स्मारक

शहीद स्मारक खूबसूरत पार्क के बीच सफेद संगमरमर से बनी हुई एक इमारत है जो हमें शहीदों की याद दिलाती है। यह वर्ष 1970 में लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा गोमती नदी के तट पर रेजीडेंसी के सामने बनाया गया थाए जिसमें भारत के वर्ष 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सैकड़ों जवान शहीद हुए थे। स्मारक की डिजाइन और परिकल्पना प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री प्रसन्ना कोठारी ने की थी। यह नई दिल्ली के इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति की शैली का अनुकरण करता हैए जो उन हजारों जवानों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। आप यहां उन लोगों को श्रद्धांजली दे सकते हैं जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इस शांत.माहौल में आप इस पार्क के बड़े मैदान में घूम सकते हैं।

शहीद स्मारक

चारबाग

लखनऊ के दो मुख्य रेलवे स्टेशनों में से एक चारबाग रेलवे स्टेशनए वास्तुशिल्प का एक चमत्कार हैए जिसमें ब्रिटिश प्रभावों के साथ मिश्रित राजस्थानी और मुगल शैलियों का बेहतरीन समावेश है। स्टेशन ऊपर से शतरंज की बिसात की तरह दिखाई देता हैए जिसमें बुर्ज और गुंबद शतरंज के बिसात से मिलते.जुलते हैं। हालांकि सामने सेए यह एक राजपूती महल जैसा दिखता है। इस तरह के निर्माण की विशेषता यह है कि इस भवन के अंदर एक बड़ा जलाशय खूबसूरती से छिपा हुआ है। चारबाग को वर्ष 1914 में एक अंग्रेज जेएच हॉर्नमैन द्वारा डिजाइन किया गया था। यह स्टेशन ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि महात्मा गांधी पहली बार पंडित जवाहरलाल नेहरू से यहीं मिले थे। वर्ष 1916 में कांग्रेस विधायिका का उद्घाटन सत्र भी चारबाग रेलवे स्टेशन पर ही हुआ था। स्टेशन के ठीक बाहर दर्शनीय हनुमान मंदिर है। संत शाह सैयद क़यामुद्दीन का अंतिम विश्राम स्थल खम्मन पीर बाबा की मजार भी चारबाग के करीब स्थित है। यह 900 साल से भी अधिक पुराना है। इस परिसर में एक भव्य मस्जिद भी है।

चारबाग

रेज़िडेंसी

गोमती नदी के निकट सीढ़ीदार लॉन और उद्यानों से घिरी रेज़िडेंसीए शहर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। मूल रूप से इसे वर्ष 1780 और 1800 के बीच नवाब सआदत अली खान के शासन में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि द्वारा बनवाया गया था। इस रेजीडेंसी में ब्रिटिश जनरल के लिए आवासीय क्वार्टरए शस्त्रागारए अस्तबलए औषधालयए पूजा स्थलों हेतु बड़े परिसर मौजूद हैं। इमारत के खंडहर इसकी पूर्व महिमा को दर्शाते हैं। आज इन खंडहरों को देखकर कोई भी इसके औपनिवेशिक आकर्षण में डूब जाता है। यहां पर बेली गार्ड गेट नामक एक प्रवेश द्वार है जिसका नामकरण इस रेज़िडेंसी के प्रथम निवासी कर्नल जॉन बेली के नाम पर किया गया था। इस गेट से अंदर जाने पर आपको वास्तुकला और डिज़ाइन की बेहतरीन झलकियां दिखाई देंगी। मुख्य भवनों की ओर चलने पर आपको दो संरचनाएं दिखाई देंगी। पहली संरचना वह कोषागार हैए जो वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। दूसरी संरचना में तत्कालीन बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने वाली संगमरमर की पट्टिकाएं लगी हैं। यहां के बैंक्वेट हॉल की छत काफ़ी ऊंची और नक्काशीदार है और इसके केंद्र में एक सुंदर फौव्वारा लगा हुआ है। इसको देखकर आपको भव्य बॉलरूम नृत्य और भव्य पार्टियों के समय की याद आ जाऐगी। इस हॉल के सामने डॉण् फैयरर का ;रेज़िडेंट सर्जनद्ध घर हैए जिसका उपयोग विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के आश्रय एवं अस्पताल के रूप में किया जाता था। इस परिसर के भीतर स्थित रेज़िडेंसी संग्रहालय में वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह के चित्रों और दस्तावेज़ों का प्रदर्शन किया गया है। यहां एक ब्रिटिश मेजर जनरल और उसकी पत्नी का स्मारक भी है जिसे ब्रिगेड मेस और बेगम कोठी के नाम से जाना जाता है। इस स्मारक पर अवध नवाब से निकाह करने वाली एक विदेशी महिला बेगम मख़दराह आलिया ने क़ब्ज़ा जमा लिया था। पर्यटकए रेज़िडेंसी के पास चर्च के खंडहरों को भी देख सकते हैं।

रेज़िडेंसी

डॉण् अम्बेडकर मेमोरियल पार्क

डॉण् बीण् आर अंबेडकर पार्क गोमती नगर इलाक़े में 107 एकड़ में फैला है। अंबेडकर मेमोरियल पार्क ज्योतिबा फुलेए श्री नारायण गुरुए कांशीरामए बिरसा मुंडाए शाहूजी महाराज तथा कई अन्य सुधारकों के समानता मानवता और न्याय के प्रति समर्पण भावना की स्मृति में बनाया गया है। यह पार्क राजस्थान से लाए गए लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। पार्क में प्रवेश करते हीए आपको 112 फुट ऊंचा एक स्तूप दिखाई देगा। इस स्तूप के चारों तरफ कई स्तंभए हाथियों की बड़ी.बड़ी मूर्तियां और डॉण् अम्बेडकर की मूर्तियां हैंए जिन पर उनके जीवन सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। पुष्प पंखुड़ियों वाले पुष्प के समान गर्भगृह में गुंबद के सामने उनकी प्रतिमा स्थित है। जैसे.जैसे आप अंदर की ओर आगे बढ़ते हैंए आप डॉण् भीमराव अम्बेडकर समाजिक परिवर्तन संग्रहालय में पहुंच जाएंगेए जिसमें ज्योतिबा फुलेए श्री नारायण गुरुए और कांशीराम आदि गणमान्य लोगों की प्रतिमाएं हैं। गौतम बुद्धए कबीरदासए और संत रविदास जैसे संतों की लगभग 18 फुट लंबी संगमरमर की प्रतिमाएं यहां स्थापित की गई हैं। आपको यहां एक गलियारा मिलेगाए जिसमें आकर्षक कांस्य भित्ति चित्रों का प्रदर्शन किया गया है। यहां प्रतिबिम्ब स्थल के नाम से मशहूर एक शांत गेटवे को दोनों ओर से 62 हाथियों की मूर्तियों से सुसज्जित किया गया है जो रात में सुंदर रोशनी की चादर ओढ़ लेता है। पार्क और यहां की मूर्तियों को अच्छी तरह से देखने के लिए डॉण् अंबेडकर मेमोरियल दृश्य स्थल पर ज़रूर जाएं। हालांकि यह स्मारक पूरे वर्ष भर खुला रहता हैए लेकिन यहां घूमने के लिए सर्दियों का मौसम सबसे बेहतरीन हैए क्योंकि यह मौसम इस परिसर को पूरी तरह से घूमने के लिए सबसे मुफीद है।

डॉण् अम्बेडकर मेमोरियल पार्क

ला मार्टीनियर कॉलेज

औपनिवेशिक कशिश की एक झलकए शहर की ऐतिहासिक इमारतों में से एकए ला मार्टीनियर कॉलेज एक खूबसूरत इमारत है। वर्ष 1845 में इसे मेजर जनरल क्लॉड मार्टिन की वसीयत के अनुसार स्थापित किया गया था। 13 सितंबरए 1800 को लखनऊ में फ्रांसीसी मूल के इस संस्थापक का निधन हो गया और उनकी मृत्यु के दिन को संस्थापक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें ला मार्टीनियर मेमोरियल हॉल के नीचे बेसमेंट में दफनाया गया था। कॉलेज का एक समृद्ध इतिहास है और यह कॉलेज वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित हुआ था। इसे ब्रिटिशों के हवाले कर दिया गया था और स्कूल की सुरक्षा की दृष्टि से प्रिंसिपल ने बड़ी मात्रा में यहां रसद रखवा दिया था। इस कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं। इसने हमें सैनिकए नाविक और पायलट दिये हैंए जिन्होंने दो विश्व युद्धों और स्वतंत्र भारत के युद्धों के बीच फैली डेढ़ शताब्दी के दौरान अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है। निस्संदेहए स्कूल के इस समृद्ध इतिहास को देखते हुए यहां हमारा एक दौरा तो बनता ही है। ला मार्टीनियर के दो मुख्य परिसर हैं.जूनियर स्कूल परिसर में तीन खंडों में प्री.स्कूल और जूनियर कक्षाएं हैंए जबकि कॉन्स्टैंटिया कैम्पस में आवासी विद्वानों और स्टाफ के रिहाइशी क्वार्टरों के साथ मीडियम और सीनियर कक्षाएं हैं। इन दो इमारतों के बीच एक हरियाला गोल्फ कोर्स है। कॉलेज का प्रसिद्ध स्वागत कक्षए श्ब्लू रूमश् संस्थापक के एक बड़े पोर्ट्रेट से सजा है। क्रमशरू अलंकृत छतों और रंगीन कांच की खिड़कियों वाले गिरजाघर और पुस्तकालय विक्टोरियन वास्तुकला की उम्दा मिसालें हैं।

ला मार्टीनियर कॉलेज

रूमी दरवाज़ा

तुर्की में कॉन्स्टैंटिनोपल में एक प्राचीन द्वार की डिज़ाइन से मिलता.जुलता रूमी दरवाज़ा 1780 में एक अवध नवाब नवाज़ए असफ.उद्.दौला द्वारा बनवाया गया था। इसे तुर्की गेट के रूप में भी जाना जाता हैए इसकी सजावटी इमारत के सबसे ऊपरी हिस्से में एक आठ.मुखी छाते जैसी संरचना बनी है। अब लखनऊ के एक प्रतीक के बतौर जाना जाने वालाए रूमी दरवाज़ा पहले पुराने शहर के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल किया जाता थाए और इसकी ऊंचाई 60 फीट है। इसे वर्ष 1784 के अकाल के दौरान रोज़गार पैदा करने के लिए बनवाया गया था। द्वार की स्थापत्य शैली एकदम नवाबी है। इसमें प्रयुक्त सामग्री इसे उस मुग़ल शैली से अलग करती हैए जिसमें बलुआ लाल पत्थर पसंद किया जाता थाए जबकि यहां चूने में लिपीं ईंटें इस्तेमाल होती थींए जिनमें ज्‍़यादा मुखर मूर्तिकला मुमकिन हैए जो पत्थर पर नामुमकिन होती। यह दरवाज़ाए अपनी बारीक फूल.नक्काशी पर इठलाता है। पुराने समय मेंए इसके प्रवेश द्वार के माथे पर एक विशाल लालटेन होती थीए जो रात में जलायी जाती थीए और मेहराब से पानी के फव्वारे निकला करते थे। शहर में पहली बार आने वाले पर्यटकों के लिएए रूमी दरवाज़ा देखने की चीज़ है। लगभग सभी संचालित भ्रमण यात्राओं व हेरिटेज गश्तों में इसे ज़रूर शामिल किया जाता है।

रूमी दरवाज़ा

हुसैनाबाद इमामबाड़ा या छोटा इमामबाड़ा

लखनऊए नवाबी वास्तुकला के शानदार उदाहरणों से भरा पड़ा हैए लेकिन वर्ष 1838 में नवाब मुहम्मदअली शाह द्वारा निर्मित छोटा इमामबाड़ा की बात ही कुछ और है। नवाब और उनकी अम्मी का मक़बराए दोनोंए यहीं हैं। इस परिसर में अवध के राजा की बेटीए राजकुमारी ज़ीनत अलगिया की कब्रए सतखंडा नामक बुर्जए नौबत खाना नामक एक रिवायती प्रवेश द्वार और हुसैनाबाद मस्जिद हैं। छोटे इमामबाड़े में सोने का पानी चढ़ा एक गुंबदए अनेक कंगूरे और खूबसूरत झाड़ फानूस हैं। इसमें पांच द्वार हैं और इसकी बाहरी दीवारों पर आयतें उकेरी हुई हैं। शेनाशीं और अज़ाखाना नाम से दो मुख्य हॉल हैं। इस बाद वाले को हॉल को सोने का पानी चढ़ी किनार वाले आइनों और रंगीन कलाकृतियों से सजाया गया है। इसके अलावाए बहुत खूबसूरत झूमर भी यहां लगी हुई हैंए कहा जाता है कि इन्हें बेल्जियम से मंगाया गया था। इन्हीं चिराग़ों और बिल्लौरी झूमरों के कारण इस प्रतिष्ठित इमारत को रोशनी का महल भी कहते हैं। यह इमामबाड़ाए बड़े इमामबाड़े के पश्चिम में स्थित है। इमारत के बहिरंग में एक सुनहरी गुंबद है जिस पर उम्दा सुलेख है। त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों के दौरान यह अपने सबसे अच्छे रूप में होता हैए जब पूरी इमारत को रोशन किया जाता है और वह एक गहने की तरह चमकती है।

हुसैनाबाद इमामबाड़ा या छोटा इमामबाड़ा

बड़ा इमामबाड़ा

बड़ा इमामबाड़ा संभवतः लखनऊ का सबसे जाना पहचाना और लोकप्रिय प्रतीक है। साल भर हज़ारों पर्यटक यहां आते रहते हैं।किसी अकाल के दौरान अवध के लोगों को रोज़गार मुहैया कराने के लिए एक राहत परियोजना के रूप में निर्मित बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण नवाब असफ.उद्.दौला द्वारा 18वीं सदी के दौरान किया गया थाए और बुनियादी रूप से इसके नाम का मतलब इबादत का एक बड़ा मुक़ाम है। नफीस मेहराबों और झरोखों वाली इसकी वास्तुकलाए राजपूतए मुग़ल और गोथिक प्रभाव समेटे हुए है। इमामबाड़ा के दो मुख्य प्रवेश हैंए दोनों ही बड़े दरवाज़ों से महफूज़ हैं। कहा जाता है कि इसके सेंट्रल हॉल की छत में बिना बीम या खंभों के इंटरलॉकिंग ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। ढांचे में गलियारों का एक अद्भुत चक्रव्यूह है जिसे श्भूल भूलैयाश् कहा जाता है। इसमें 1000 से अधिक पेचीदा गलियारों का एक संजाल हैए जिनमें से कुछ प्रवेशद्वारों या निकास बिंदुओं तक जाते हैं और बाकी बंद गलियों तक। उलझते.उलझाने वालेए रास्तों के मुहानों पर 489 द्वार भी बने हैं। नवाब की कब्र एक छतरी के नीचे मौजूद है। एक समय मेंए गोमती नदी तक जाती एक मील.लंबी अंडरग्राउंड सुरंग होती थी जो इसके तिलिस्म को और बढ़ाती थी। प्रमुख इमारत को घेरे हरे.भरे वृक्ष और बग़ीचे हैं जो एक इत्मीनानी टहल के लिए या बड़ा इमामबाड़ा की शान में आराम करने के लिए एकदम सही हैं।

बड़ा इमामबाड़ा