एक पुरातात्विक स्थल के रूप में प्रसिद्ध कौशांबी, कानपुर से करीब 200 किमी की दूरी पर स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने महानिर्वाण के छठे और नौवें वर्ष में यहां रुक कर लोगों को उपदेश दिये थे। चंद्र राजवंश के राजा कौशंब ने कौशांबी नगर की स्थापना की थी। प्राचीन कहानियों के अनुसार कौशांबी को यह नाम कोसम के पेड़ों से मिला, जिन्हें काटकर इस शहर की स्थापना की गयी थी। बुद्ध साहित्य की एक प्रसिद्ध पुस्तक के अनुसार अगुत्तर निकाय, प्राचीन भारतीय इतिहास के 16 महा जनपदों में से एक था। 460-444 ई.पू. के दौरान राजा उद्यन ने वत्स राज्य पर शासन किया, जो उस समय बेहद शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासक था। राजा उद्यन के शासन काल के दौरान कौशांबी वत्स राज्य की राजधानी थी। यहां स्थित उद्यन किले के अवशेष इस बात की गवाही देते हैं कि किसी जमाने में यह शहर शिक्षा का केन्द्र हुआ करता था। खुदाई के दौरान यहां सम्राट अशोक के शासन काल की कलाकृतियों के कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं। लेकिन लोक कथाओं में इस जगह को महाभारत के साथ भी जोड़ा जाता रहा है, जिसके अनुसार इस स्थान को महत्व देते हुए पांडवों की नयी राजधानी के रूप में चुन लिया गया था। इसका प्रमाण इस शहर के चारों ओर खिंची किले की दीवार और खाई से मिलता है तथा भारी संख्या में मिला रोड़ा-पत्थर इस बात की गवाही देता है कि यहां व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य हुआ होगा। 

एक अन्य चीनी यात्री फाहियान ने अपनी भारत यात्रा के संस्मरण में कौशांबी का जिक्र करते हुए इसे उस समय के सर्वोत्तम शहरों में से एक बताया है। कौशांबी में पुरातात्विक स्थल कौशम इनम और कौसम खिरज नामक गांवों के बीच स्थित है। यह गांव यमुना नदी के किनारे बसे महाजनपुर जिले के केन्द्र हैं। बुद्धकाल के दौरान यह शहर व्यापार का भी एक प्रमुख केन्द्र था। 1861 में जब पुरातात्विक विभाग के जरनल कनिंघम और उनके सहयोगी अफसरों ने इस स्थान की खुदाई की तो पाया कि किले की बाहरी दीवार करीब चार मील लंबी थी। इसके अलावा सुरक्षा के मद्देनजर किले के बाहर एक गहरी खाई भी खोदी गयी थी। खुदाई के दौरान यहां ईंटों से बनी एक दीवार भी मिली, जो मौर्य और गुप्त वंश के राजाओं द्वारा बनवाई गयी लगती है। इतना ही नहीं खुदाई के दौरान यहां से सोने और चांदी के सिक्के, मिट्टी के बर्तन, तांबे के बर्तन और बेशकीमती चीजें भी मिलीं। एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ आज यह शहर एक आध्यात्मिक स्थल के रूप में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां स्थित कालेश्वर मंदिर भक्तों को अपनी ओर बहुत आकर्षित करता है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में शिवरात्री के पर्व पर भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इसके अलावा जैन धर्म के अनुयायियों में प्रसिद्ध दिगंबर जैन मंदिर भी यहां का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। 

अन्य आकर्षण