झांसी में संग्रहालय, किले और स्मारक देखने के अलावा और भी बहुत कुछ है करने को। मसलन, अगर आप यहां आएं तो यहां से कांच की बेहद खूबसूरत चूड़ियों की खरीददारी करना न भूंले। 

साउंड एंड लाइट शो

झांसी के किला में होने वाला प्रसिद्ध ध्वनि एवं प्रकाश प्रदर्शन रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्सों की एक श्रृंखला पेश करता है, जिन्होंने अपनी बहादुरी दिखाते हुए अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे और उनके सामने हार नहीं मानी थी। झांसी का यह भव्य किला 17वीं शताब्दी में ओरछा के सम्राट राजा बीर सिंह देओ ने बनवाया था और कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई इतने ऊंचे किले से अपने पुत्र को पीठ पर बांध कर घोड़े समेट यहां से कूद गयी थीं। यह ध्वनि एवं प्रकाश शो उस वक्त के हालतों तथा देश में चल रही स्वतंत्रता संग्राम की पहली लहर पर भी रौशनी डालता है। 

साउंड एंड लाइट शो

खरीददारी भी हो जो जरा....

शापिंग के दीवानों के लिए झांसी बहुत बढ़िया जगह है। क्योंकि से सैलानी यहां से कीमती प्राचीन वस्तुओं की जमकर खरीदारी कर सकते हैं। यहां के कुछ बाजारों में घूमते हुए तो आपको ऐसा लगेगा मानो आप मध्यकालीन युग में लौट गये हैं। इन प्राचीन बाजारों को देख अहसास होता है कि सदियों पहले भी यहां कितनी गहमा गहमी रहा करती होगी। झांसी, यहां मिलने वाली बेहद खूबसूरत कांच की चूड़ियों के लिए भी बेहद प्रसिद्ध है, जिन्हें पर्यटक खरीदना बिलकुल भी नहीं भूलते। सिपरी बाजार यहां के व्यस्ततम बाजारों में से एक है, जहां आप बेहद वाजिब कीमत पर कपड़ों वगैराह की खरीददारी कर सकते हैं। इतना ही नहीं यहां से हाथ से बनी कलाकृतियों तथा इस शहर की शान-ओ-शौकत तथा समृद्ध इतिहास की झलक देती पेंटिंग्स की भी खरीददारी की जा सकती है। वैसे बजट शापिंग के लिए आप सदर बाजार का भी रुख कर सकते हैं, जबिक माणिक चौक से आप गहनों, खिलौनों और बिजली के सामान की खरीददारी कर सकते हैं। 

पारीछा

बेतवा नदी के किनारे बसे इस शहर के नाम पर बेतवा नदी पर ही एक बांध भी बनाया गया है, जो एक जलाशय के साथ-साथ ताप विद्युत संयंत्र भी है। यहां स्थित यह जलाशय शहर से करीब 35 किमी दूर नोटघाट पुल तक जाता है। यह जलाशय पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए वाटर स्पोर्टस और बोटिंग की वजह से खासा लोकप्रिय है। 

पारीछा

महाराजा गंगाधर की छतरी

19वीं शताब्दी में झांसी पर मराठा शासक गंगाधर राव का शासन था और यह छतरी उन्हीं को समर्पित है। गंगाधर राव, रानी लक्ष्मीबाई के पति थे। सन 1853 में महाराजा गंगाधर राव के युद्ध में शहीद हो जाने के बाद रानी ने उनकी याद में इस छतरी का निर्माम एक युद्ध स्मारक के रूप मं करवाया था। झांसी किले में स्थित यह छतरी, खास मराठा-हिन्दु शैली में बनी हुई है। इस छतरी के पास ही लक्ष्मी ताल भी है, जो इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। इस छतरी की घुमावदार छत बेहद खूबसूरत नक्कीशी से उकेरे गये 12 खंबों पर खड़ी है, जो उस समय की विकसित और बेहतरीन वास्तु-कला का एक शानदार उदाहरण प्रतीत होती है। 

जल विहार महोत्सव

मऊरानीपुर में मनाया जाने वाले प्रसिद्ध जल विहार महोत्सव, में आस-पास के राज्यों से भारी संख्या में लोग आते हैं। अपने तरीके का यह अनूठा महोत्सव पर्यटकों को भी खासा आकर्षित करता है, जिसमें स्थानीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। 

झांसी संग्रहालय

सन 1878 में बना झांसी संग्राहलय बेहद प्राचीन कलाकृतियों का अद्भुत खजाना है। यहां आपक चौथी शताब्दी तक की कलाकृतियां और पुरातत्व अवशेष देखने को मिलेंगे। शहर के बीचों बीच स्थित यह संग्रहालय सैलानियों के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस संग्रहालय के चार भाग हैं, जिनमें गुप्त और चंदेल वंश के समय की पांडुलिपियां और तराशी गयी मूर्तियां तथा प्रतिमाएं प्रदर्शित की गयी हैं। इतना ही नहीं यहां अति दुर्लभ पेंटिंग्स, अस्त्र-शस्त्र और टैरकोटा से बनीं बेहद खूबसूरत वस्तुएं भी प्रदर्शित की गयी हैं। चंदेल वंश ने झांसी पर 10वीं से 11वीं शताब्दी तक शासन किया था और इस संग्राहलय में उस काल से जुड़े बहुत सारे दुर्लभ अवशेषों को संरक्षित रखा गया है, जिनमें चंदेल वंश के रजवाड़ा खानदानों द्वारा पहनी जाने वाली खूबसूरत और बेशकीमती पोशाकें, तथा फोटोज के साथ-साथ सोने, चांदी और तांबे से बने सिक्के भी शामिल हैं। यहां एक पिक्चर गैलरी भी है, जिसमें गुप्त काल की महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को प्रस्तुत किया गया है। यह संग्रहालय प्रत्येक सोमवार तथा हर माह के दूसरे शनिवार को बंद रहता है। 

झांसी संग्रहालय