वैष्णो देवी

जम्मू से 16 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर स्थित वैष्णो देवी मन्दिर में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं। उत्तर भारत के पवित्रतम हिन्दू तीर्थस्थलों में से यह एक तीर्थस्थल है। यह मन्दिर 5200 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ महाकाली, महा सरस्वती तथा महालक्ष्मी के रूप में भगवती शक्ति की पूजा की जाती है। एक गुफा रूपी मन्दिर में तीन पवित्र 'पिण्डी' या पत्थर हैं जिन्हें उपर्युक्त तीनों शक्ति-रूपों का प्रतीक मानते हुए उनकी आराधना की जाती है। रोचक बात यह है कि एक ही चट्‌टान से निर्मित होने के बावजूद इन तीनों पिण्डियों का रंग तथा संरचना अलग-अलग है। सबसे बायीं ओर स्थित फीका सफेद पत्थर देवी सरस्वती का रूप, बीच में स्थित पीला-लाल पत्थर देवी लक्ष्मी का प्रतीक तथा इसके बायीं ओर स्थित काला पत्थर देवी काली का प्रतीक माना जाता है।कहा जाता है कि इस पवित्र गुफा का निर्माण महाभारत के समय पांडवो ने किया था। इस देवी का प्रथम सन्दर्भ महाभारत में उस समय मिलता है जब पाण्डव तथा कौरव कुरुक्षेत्र में युद्ध की तैयारी कर रहे थे। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के परामर्श पर अर्जुन ने विजय के लिए देवी का वरदान प्राप्त करने की इच्छा से देवी माता का ध्यान किया था।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार 700 वर्ष पूर्व भगवान श्रीविष्णु की आराधक वैष्णो देवी ने अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली थी। एक दिन भैरों नाथ नामक एक अन्य देवता ने उन्हें देख लिया और उनका पीछा करना शुरू कर दिया। देवता से भागते भागते देवी को प्यास लगी और उन्होंने भूमि में एक तीर मारा जहाँ से एक झरना फूट पड़ा। जिस चरण पादुका नामक स्थान पर उन्होंने विश्राम किया वहाँ पर उनके पद-चिह्न बने हुए हैं। बाद में वह अर्द्धक्वांरी स्थित गुफा में प्रवेश कर गयीं। नौ महीने के पश्चात भैरों नाथ ने उन्हें ढूँढ निकाला और देवी ने गुफा के दूसरे सिरे को एक धमाके के साथ खोल दिया। इसके पश्चात उन्होंने महाकाली का रूप धारण किया और भैरों नाथ का सिर काट डाला। जिस स्थान पर भैरों नाथ का कटा हुआ सिर गिरा वहाँ भैरों नाथ का मन्दिर बना हुआ है। अनेक लोगों का विश्वास है कि गुफा के मुहाने का शिलाखण्ड उस भैरों नाथ के धड़ के रूप में बना हुआ पत्थर है जिसे मरते हुए क्षणों में देवी ने क्षमा कर दिया था। एक अन्य कथा के अनुसार वैष्णो देवी को प्रारम्भ में त्रिकुटा कहा जाता था और जब वह नौ वर्ष की थीं तो भगवान विष्णु के अवतार कहे जाने वाले भगवान श्रीराम की आराधना करते हुए एक समुद्रतट पर तपस्या कर रही थीं। उसी समय राक्षसराज रावण द्वारा हरण की गयी माता सीता की खोज करते हुए भगवान राम वहाँ से गुजरे। एक बालिका को ध्यान में लीन देखकर उन्होंने उसे वरदान दिया और त्रिकुटा ने उनसे कहा कि उसने उन्हें (भगवान राम को) पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। किन्तु चूँकि भगवान राम पत्निव्रता थे और उनका एकमात्र देवी सीता के प्रति अनुराग था इसलिए वे दूसरा विवाह नहीं कर सकते थे। बालिका के समर्पण से प्रभावित होकर उन्होंने उसका नाम वैष्णवी रखा और वचन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में अवतार लेकर उनसे विवाह करेंगे। उन्होंने उनसे त्रिकूट पर्वत श्रृंखलाओं की गुफा में ध्यान करने के लिए कहा और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें एक धनुष-बाण, एक शेर तथा बन्दरों की एक छोटी सेना प्रदान की।

वैष्णो देवी

रणवीरेश्वर मन्दिर

भगवान शिव (पवित्र त्रिदेव का एक अंश) को समर्पित उत्तर भारत का सबसे बड़ा मन्दिर रणवीरेश्वर मन्दिर दो अलग-अलग हॉल में विभाजित है जहाँ भगवान शिव के दो पुत्रों भगवान गणेश तथा भगवान कार्तिकेय की मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसका प्रमुख आकर्षण इसके केन्द्रीय भाग में स्थित 8 फीट लम्बा शिवलिंग है जिसके साथ 15 सेमी से 38 सेमी माप के पत्थरों पर कारीगरी किये गये 12 शिवलिंग हैं। इसके अतिरिक्त दोनों हॉलों में लगभग 1.25 लाख छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। 1883 में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के महाराजा रणवीर सिंह द्वारा निर्मित कराया गया यह मन्दिर सचिवालय के निकट स्थित है। यहाँ पर्यटन का उत्तम समय सितम्बर से अप्रैल तक है।

रणवीरेश्वर मन्दिर

रघुनाथ मन्दिर

शहर के बीचोबीच स्थित रघुनाथ मन्दिर उत्तर भारत का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है। यहाँ सात मन्दिर हैं जिनके प्रत्येक अपने-अपने शिखर हैं। मुख्य मन्दिर भगवान राम को समर्पित है। इस मन्दिर की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है की मन्दिर के तीन ओर का अन्दरूनी भाग सोने की चादरों से ढका हुआ है। इसके अतिरिक्त इसमें एक गैलरी है जिसमें अनेक शिवलिंग तथा सालिग्राम हैं। मन्दिर की दीवारों की कारीगरी आँखों को अपनी ओर तुरन्त आकर्षित कर लेती है। इस मन्दिर में एक पुस्तकालय भी है जिसमें संस्कृत की दुर्लभ पुस्तकें तथा पाण्डुलिपियाँ रखी हुई हैं।इस मन्दिर का निर्माण 1853 में जम्मू तथा कश्मीर राज्य के संस्थापक महाराजा गुलाब सिंह द्वारा प्रारम्भ कराया गया था और 1860 में उनके पुत्र महाराजा रणवीर सिंह द्वारा इसका निर्माण पूरा किया गया।

रघुनाथ मन्दिर

पीर खो मन्दिर

आग्नेय चट्टानों तथा पृष्ठभाग में कीकर से युक्त पीर खो मन्दिर मध्य शहर के निकट ही स्थित है। इस मन्दिर में दो गुफाएँ हैं जो संगमरमर की सीढ़ियों से युक्त 20 से 30 फीट गहरी हैं। 12 फीज ऊँची एक बड़ी गुफा से जुड़ी 3 फीट चौड़ी एक गुफा के बीचोबीच प्राकृतिक रूप से बना एक शिवलिंग है। यद्यपि इस मन्दिर के निर्माण का समय ज्ञात नहीं है किन्तु अनेक लोगों का विश्वास है कि यह शिवालिक क्षेत्र का सर्वाधिक प्राचीन मन्दिर है।इस मन्दिर की उत्पत्ति के विषय में अनेक दन्तकथाएँ हैं। एक सर्वाधिक लोकप्रिय कथा के अनुसार रामायण काल के रीछराज जामवन्त ने यहाँ निवास किया था जिसके कारण इसे जामवन्त गुफा भी कहा जाता है।

 पीर खो मन्दिर

गौरीकुण्ड

गौरीकुण्ड नामक प्राकृतिक झरना अपने पवित्र जल के लिए विख्यात है जो अनेक पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ देवी पार्वती प्रतिदिन निकट के सुध महादेव मन्दिर में पूजा करने के लिए जाने से पूर्व आया करती थीं और स्नान किया करती थीं। यह भी कहा जाता है कि इस कुण्ड (तालाब) के पवित्र जल में स्नान करने से मनुष्य दुर्भाग्यशाली नहीं होता है। पर्यटक यहाँ से कैलाश पर्वत देख सकते हैं।यहाँ भगवान शिव और देवी पार्वती का एक मन्दिर बनाया गया है जहाँ वर्ष भर श्रद्धालु आते रहते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष जून में एक मेला आयोजित किया जाता है जिसके दौरान शंकर और उमा के रूप में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। तीर्थयात्री पूजा करने के पश्चात देवकी नदी में स्नान करते हैं। गौरीकुण्ड जम्मू से लगभग 100 किमी की दूरी पर है।गौरीकुण्ड के निकट पटनीटॉप एक अन्य दर्शनीय स्थल है जो सुन्दर दृश्यावलियों और रोमांचकारी पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है। इन रोमांचकारी पर्यटनों में पैराग्लाइडिंग और हॉट एयर बैलूनिंग (गर्म हवा वाले गुब्बारों की सैर) प्रमुख हैं।

गौरीकुण्ड

बाबा धनसर

शांत और निर्मल करुआ झील के निकट स्थित बाबा धनसर कटरा के निकट पवित्र स्थलों में से एक है। यहाँ शिवजी का एक मन्दिर तथा एक अति सुन्दर झरना है जो चट्टानों से निकलकर घने जंगल में गिरता है। इससे अनेक छोटे-छोटे जलप्रपात निर्मित हुए हैं जो बहते हुए घाटी में एक तालाब का रूप ले लेते हैं। इस क्षेत्र में महाशिवरात्रि के अवसर पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और इस मेले में आसपास के अनेक श्रद्धालु शामिल होते हैं।पौराणिक कथा है कि जब भगवान शिव देवी पार्वती को अपने अमरत्व की शक्ति दिखाने के लिए अमरनाथ गये तो उन्होंने शेषनाग को अनन्तनाग में छोड़ दिया। शेषनाग ने वासुदेव के रूप में मनुष्य का रूप धारण किया और उनके एक पुत्र धनसर हुआ जो बाद में ऋषि बन गया। इस प्रकार उनके नाम पर इस स्थान का यह नाम पड़ा।

बाबा धनसर

सुकराला देवी मन्दिर

देवी शारदा की अवतार सुकराला माता को समर्पित यह प्राचीन मन्दिर समुद्रतल से लगभग 3,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह कठुआ ज़िले के बिल्लावर में स्थित है। देवी सुकराला को माँ दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। इस मन्दिर का निर्माण हिमाचल प्रदेश के चम्बा के निर्वासित राजकुमार माधो सिंह द्वारा करवाया गया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार देवी ने स्वयं को एक पत्थर के रूप में बैठी हुई अवस्था में अंकित कर लिया। यहाँ शेर पर बैठी हुई देवी की पीतल से बनी मूर्ति है जिसका शीर्ष भाग चाँदी से निर्मित है। यहाँ श्रद्धालु देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की पूजा करने आते हैं जो राक्षसराज महिषासुर के शीर्ष पर खड़ी हैं।

सुकराला देवी मन्दिर

क्रिमची मन्दिर

स्थानीय लोगों द्वारा पाण्डव मन्दिर के नाम से विख्यात तीन प्राचीन क्रिमची मन्दिर भगवान विष्णु, भगवान गणेश तथा देवी पार्वती को समर्पित हैं। माना जाता है कि इन मन्दिरों का निर्माण 11वीं तथा 12वीं शताब्दी में किया गया था और ये सम्भवत: जम्मू-कश्मीर राज्य के प्राचीनतम मंदिरो में से एक हैं। इसकी वास्तुकला प्राचीन ग्रीक (हेलेनिक) शैली की है। ये मन्दिर पत्थरों पर स्थित हैं जो छोटी जलधारा से घिरा है। इन मन्दिरों की वास्तुकला अद्भुत और हिन्दू देवताओं के आकर्षक प्रतिमाओं से परिपूर्ण है। मुख्य मन्दिर की ऊँचाई 50 फीट है। इस स्थान से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा है कि महाभारत काल में राजा कीचक ने क्रिमची नामक क़स्बा बसाया और पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ वर्षों तक यहाँ शरण ली इसीलिए इन मन्दिरों को पाण्डव मन्दिर भी कहा जाता है।

क्रिमची मन्दिर

पीर बाबा की दरगाह

पीर बाबा की दरगाह के दर्शन करने सभी धर्मों के अनेक लोग आते हैं। स्थानीय लोग पीर बाबा (पीर बूढ़न अली शाह) को अपना रक्षक मानते हैं और उनका विश्वास है कि जब तक पीर बाबा की नजर उन पर है तब तक उनमें कोई आंच नहीं आ सकती। पौराणिक कथाओं के अनुसार पीर बाबा गुरु गोविन्द सिंह के घनिष्ठ मित्र थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन मात्र दूध पीकर गुजार दिया। वे 500 वर्षों तक जीवित रहे और जम्मू-कश्मीर की जनता उनमें बहुत अधिक श्रद्धा रखती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात उन्होंने उन्हें देवता मानकर उनकी दरगाह बना दी। जम्मू के नागरिक विमानपत्तन के पीछे स्थित इस दरगाह पर बृहस्पतिवार को भारी भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि यदि इस स्थान पर कोई फूल और चादर चढ़ाता है तो उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

पीर बाबा की दरगाह

शाहदरा शरीफ

सभी धर्मों के मानने वाले लोगों द्वारा दर्शनीय शाहदरा शरीफ का निर्माण बाबा गुलाम शाह को श्रद्धांजलि देने के लिए 19वीं शताब्दी में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा बनवाया गया था। माना जाता है कि सैदियाँ (अब पाकिस्तान के रावलपिण्डी में) में जन्मे पीर गुलाम शाह ने जीवन व्यतीत करने के लिए शाहदरा को अपना आवास बनाया। कहा जाता है कि 1829 ई. में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने सेनानायक गुलाब सिंह को भेजा। किन्तु सेनापति के अनेक सैनिक मारे गये और जब वह थाना-मण्डी में अपने खेमे में विश्राम के लिए रुके तो उन्हें बाबा गुलाम शाह के विषय में जानकारी मिली और वे उनसे मिलने के लिए गये। जब बाबा ने उन्हें देखा तो वे मुस्कराये। कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि वह गुलाब सिंह के उज्ज्वल भविष्य को देखकर मुस्करा रहे हैं। इसके बाद बाबा ने उनसे एक पर्वत की चोटी पर चढ़कर आसपास देखने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वे अपनी आँखों से जितनी दूर तक देख सकते हैं वह क्षेत्र एक दिन उनके राज्य का अंग बनेगा। सेनापति ने जम्मू, कश्मीर, तिब्बत और किश्तवाड़ की ओर देखा और श्रद्धावश उन्होंने बाबा से कुछ भूमि ग्रहण करने का आग्रह किया जिस पर बाबा ने जम्मू में शाहदरा शरीफ की भूमि माँगी। बाद में गुलाब सिंह जम्मू-कश्मीर के राजा बने और बाबा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करने वहाँ गये। किन्तु बाबा अपना स्थान छोड़ चुके थे और गुलाब सिंह ने उस स्थान पर उनकी दरगाह बनवाई। यह दरगाह जम्मू से 177 किमी दूर है।

शाहदरा शरीफ

पीर की गली

'पीर' शब्द धर्म के प्रति समर्पित किसी व्यक्ति को कहा जाता है। लिखित अभिलेखों के अनुसार मुगल रोड पर स्थित पोशना और हीरपुर गाँव के बीच स्थित इस स्थान का नाम शेख अहमद करीम नामक सन्त ने रखा। स्थानीय लोग अब भी उनकी पूजा करते हैं और उन्हें अब भी जीवित सन्त मानते हैं। यह दरगाह पीर की कब्र नहीं है बल्कि यह वह स्थान है जहाँ उन्होंने ध्यान लगाया था। कहा जाता है कि अन्दर एक पत्थर पर उनके हाथ के चिन्ह हैं। इसके अतिरिक्त यह स्थान चारों ओर से बर्फ से ढकी चोटियों से घिरा है जिसके कारण यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पीर बाबा उन लोगों की मदद के लिए अब भी आते हैं जो उन्हें पुकारता है। यदि आप यहाँ भ्रमण करने का इरादा रखते हैं तो आप यहाँ से थोड़ी दूर श्रीनगर भी जा सकते हैं।

पीर की गली

अखनूर

जम्मू से 28 किमी दूर हिमालय की तलहटी में अखनूर नामक सुन्दर शहर स्थित है। यहाँ प्राचीन कलाकृतियाँ हैं जो सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित हैं। इस शहर के आकर्षण का केन्द्र चेनाब नदी के तट पर स्थित गुरुद्वारा है। यहाँ चेनाब के तट पर आकर्षक पार्क से युक्त परशुराम का मन्दिर है जो शाम के समय मोती की तरह चमकता है और रात में परीलोक की तरह दिखाई देता है।मई में यहाँ परशुराम जयन्ती का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है जिसे आप इस माह में अपने भ्रमण के दौरान देख सकते हैं। यहाँ एक शिवलिंग भी है जिसके विषय में धारणा है कि इसका निर्माण पाण्डवों ने किया था और साथ ही पाण्डव गुफा में भगवान कृष्ण की निशानियाँ भी हैं। अखनूर के निकट अम्बारा नामक एक बौद्ध मठ है जो लगभग पहली शताब्दी तथा सातवीं शताब्दी के बीच निर्मित किया गया था। धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थान होने के साथ साथ यह छुट्टियाँ बिताने के लिए भी आदर्श स्थान है।

अखनूर