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राजस्थान की उत्कृष्ट लघु चित्रकारी की कृतियाँ अजमेर में अवश्य खरीदी जानी चाहिए। किंवदंतियों, ऐतिहासिक घटनाओंऔर रंगों के कलात्मक संयोजन से मिल कर उभरे उनके चित्रण ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया है। इन चित्रों की पृष्ठभूमि में घुमड़ते बादलों के साथ बड़ी और घुमावदार आंखों जैसी सुन्दरताओं का अंकन किया गया है। किशनगढ़ चित्रकला अजमेर में लोकप्रिय भारतीय कला की 18 वीं शताब्दी से पहले की शैली है। किशनगढ़ चित्रों के पात्र अधिकतर व्यापक व भव्य परिदृश्य में काम करते हुए दिखाए जाते हैं।
अजमेर शहर अपने चमड़े के काम के लिए प्रसिद्ध है, जो पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए स्थानीय कारीगरों द्वारा किया जाता है। जवाजा और हरमाड़ा के गाँव चमड़े के सामानों के विनिर्माण के मुख्य केंद्र हैं। हरमाड़ा के कारीगर चमड़े की कुर्सियाँ, पर्स, हैंड बैग और जूतियाँ बनाने में माहिर हैं, जिन पर हाथ से कढ़ाई अर्थात कशीदाकारी की जाती है। यहाँ के तिलोनिया गाँव में चमड़े से बने सुन्दर कढ़ाई वाले डिजाइनर हैंडबैग, पर्स, बेल्ट, टोपी, स्टूल और कुर्सियाँ भी देश भर में प्रसिद्ध हैं। पर्यटक प्रसिद्ध मोजरियों या जूतियों को भी ख़रीद सकते हैं जो सिर्फ़ इस राज्य में ही पाई जाती हैं। उन्हें बनाने के लिए चमड़े में कशीदाकारी करने के बाद उस में छिद्र किए जाते हैं, फिर उसे जड़ा जाता है और कई आकर्षक रूप विन्यासों के अनुरूप सिला जाता है। ढोल और तबले जैसे वाद्ययंत्र बनाने में भी चमड़े का उपयोग किया जाता है, जो राजस्थान के लोक संगीतकारों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
अजमेर की कव्वालियाँ और कव्वाल दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। कव्वाली एक लोकप्रिय नृत्य रूप है जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है और उन्हें इस शहर के उत्साह का अनुभव करवाती है। 'कव्वाली' शब्द अरबी शब्द 'क़वोल' से लिया गया है, जिसका अर्थ है ऐसा धार्मिक क्रियाकलाप जो विचारों की शुद्धि में मदद करता है। यह विधा 13 वीं शताब्दी में भारत में लोकप्रिय हुई और तब से अजमेर प्रसिद्ध विश्वप्रसिद्ध कव्वालों का गढ़ बना हुआ है। अल्लाह की शान में रचित कव्वालियों को अजमेर शरीफ दरगाह हॉल के अंदर कव्वालों द्वारा नियमित रूप से गाया जाता है, जिसे महफिल-ए-समा के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर कव्वाली का प्रदर्शन प्रतिदिन शाम 7 बजे से रात 11 बजे तक होता है और यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों के गायकों को अपनी कव्वाली के माध्यम से अल्लाह की इबादत करने के लिए एक मंच पर आने का एक अद्भुत अनुभव देता है। अजमेर की कव्वाली का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा समय वार्षिक उर्स उत्सव के दौरान होता है, जो हर साल सूफी फकीर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु की बरसी के अवसर पर उनकी दरगाह पर आयोजित होता है। इस दौरान दरगाह परिसर के भीतर कई कव्वाली समारोह आयोजित किए जाते हैं और उनमें शिरकत करना वास्तव में एक रूहानी एहसास है।