भारत के तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेष राज्यों में पोंगल नामक कृषि-प्रधान पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान महिलाएं पारंपरिक परिधान एवं साड़ियां पहनती हैं। इससे भारत की समृद्ध संस्कृति की ही झलक देखने को मिलती है। आप अगर पोंगल के  दौरान मनाए जाने वाले उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं तो इन आकर्षक साड़ियों को लेना न भूलें। ये साड़ियां अपनी गुणवŸाा एवं अपने डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध हैं।   

कांजीवरम साड़ियां
कहांः कांचीपुरमस्टाइल

सौम्यता एवं सुंदरता के लिए लोकप्रिय कांजीवरम साड़ियां, सदियों से दक्षिण भारतीय महिलाओं के संग्रह का अभिन्न अंग रही हैं। पोंगल के दौरान तो ये साड़ियां मुख्य रूप से पहनी जाती हैं। ये देखने में न केवल आकर्षक होती हैं, अपितु पारंपरिक रूप से भी इनका बहुत महŸव है। इन साड़ियों की विषेषता इनमें प्रयोग होने वाली ज़री है, जो विषुद्ध सोने के धागों से की जाती है। इसकी चमक एवं इसका आकर्षण ही महिलाओं को अपनी ओर खींचता है। इन साड़ियों के ये गुण ही ख़रीदारों की पहली पसंद बनते हैं। ये साड़ियां बेहतरीन स्तर के रेषमी कपड़ों से बनाई जाती हैं। इनमें से अधिकतर साड़ियां षहतूत की रेषम से बनी होती हैं। इस प्रकार के रेषम से निस्संदेह साड़ियों का भार बढ़ जाता है और उसकी गुणवŸाा में भी बढ़ोतरी होती है। इससे साड़ी की चमक व टिकाऊपन दोनों बढ़ जाते हैं। दक्षिण भारतीय घरों में अनेक परिवार हथकरघे पर इन साड़ियों का निर्माण करते हैं। साड़ी जितनी भारी होगी, लपेटने में उतनी आसानी होगी। वह साड़ी पहनने वाली महिला पर ख़ूब फबेगी।

साड़ी का भारीपन बढ़ाने के लिए उसे माड़ में भिगोकर, सूरज की रोषनी में सूखने के लिए रख दिया जाता है।कांजीवरम साड़ियों के निर्माण का आरंभ पल्लव षासनकाल (275 ईस्वी से 897 ईस्वी) के दौरान हुई थी। कांचीपुरम के मंदिर षहर में जन्मीं, कांजीवरम की कल्पना त्योहारों के दौरान षहर के स्थानिक भगवान, भगवान षिव की पोषाक के लिए की गई थी। एक सूती वेष्टि को (दक्षिण भारत में पहना जाने वाला पुरुषों का पारंपरिक परिधान), निपुण बुनकरों द्वारा, इस क्षेत्र में उगाए गए बेहतरीन कपास से बुना जाता है, जो भगवान के लिए एक पवित्र चढ़ावा बन गया। जैसे-जैसे समय के साथ षासक बदलते रहे, वैसे-वैसे षहर के मंदिरों में देवता भी बदलते गए। चोल राजाओं के षासन के दौरान कांचीपुरम में अधिक से अधिक भगवान विष्णु के मंदिर बनाए गए। सूती वेष्टि को चमकीले रंग के रेषम की किनारियों से सजाया और सोने के धागों से अलंकृत किया गया था। यह परिवर्धन सौराष्ट्र के कुषल बुनकरों द्वारा किया गया था। इनके बारे में माना जाता है कि वे सौराष्ट्र (वर्तमान गुजरात) से तमिलनाडु चले गए थे। उन्होंने कपड़े के मुख्य भाग से किनारी को जोड़ने के लिए, बुनाई की प्रसिद्ध कोरवाई तकनीक को अपनाया था।
धीरे-धीरे कपास के स्थान पर रेषम का प्रयोग होने लगा, जो अत्यधिक षुद्ध और विलासी था तथा भगवान विष्णु की पूजा के लिए बेहतरीन था।कांचीपुरम को 13वीं षताब्दी में प्रसिद्धि मिली, जब कला और संस्कृति के महान संरक्षक माने जाने वाले विजयनगर के राजाओं ने चोलों का स्थान लिया। विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय (1509-1529) ने बुनाई को बढ़ावा दिया और षाही घराने की महिलाओं के लिए, त्योहारों और विवाह समारोहों में पहनने के लिए विषेष साड़ियां बनवाईं। एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, कांचीपुरम के रेषम बुनकर ऋषि मार्कंडे के वंषज हैं, जिन्हें देवताओं का निपुण बुनकर माना जाता था। यह कहानी षायद यहां बुनी गई साड़ियों पर बनाई गई आकृतियों से भी प्रेरित है, जो आस-पास के मंदिरों की देवी-देवताओं की आकृतियों और धर्मग्रंथों से ली गई हैं।

कांची सूती
कहांः कांचीपुरम

यद्यपि तमिलनाडु के कांचीपुरम की रेषमी साड़ियां जहां भारत भर में प्रसिद्धि के षिखर पर विराजमान हैं, वहीं यहां बनने वाली कांची सूती साड़ियां भी कम लोकप्रिय नहीं है। आकर्षक दिखने वाली ये साड़ियां बेहद हल्की एवं हवादार होती हैं। इन पर विभिन्न रंगों के संयोजन से आकर्षक रूपांकन अंकित किए जाते हैं। आमतौर पर इन साड़ियों को गर्मियों में पहना जाता है। फिर भी महिलाएं इन्हें पोंगल के दौरान पहनती हैं। इन साड़ियों की विषेषताओं को बढ़ाने में इन पर की गई फूल-पयों की कढ़ाई होती है। यह कढ़ाई न तो रेषमी धागों से की जाती है और न ही इन पर ज़री के बाॅर्डर होते हैं।

चेट्टीनाद कंधांगी साड़ियां
कहांः चेट्टीनाद

सुंदर कंधांगी साड़ियांे का निर्माण तमिलनाडु के चेट्टीनाद क्षेत्र में किया जाता है। इन साड़ियों का निर्माण चेट्टीयार समुदाय के कारीगरों द्व ारा किया जाता है। इन्हें चोल षासकों ने (9वीं से 13वीं सदी तक) संरक्षण प्रदान किया था। ये साड़ियों विभिन्न रंगों में उपलब्ध होती हैं। इन पर चेक (खाके) बने होते हैं और इनका बाॅर्डर रंग-बिरंगा होता है। इन साड़ियों की लंबाई 120 सेंटीमीटर होती है। इन्हें स्त्री (प्रेस) करने की आवष्यकता नहीं पड़ती। हरे, काले, लाल, सुनहरे पीले इत्यादि रंगों में मिलने वाली साड़ियों महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हैं। 

मदुरै चुंगिदी एवं सनगुदी साड़ियां
कहांः मदुरैमदुरै

अपनी चुंगिदी एवं सनगुदी साड़ियांे के लिए बहुत प्रसिद्ध है। चुंगिदी साड़ियां दो रंगों में उपलब्ध होती हैं। इन पर ज्यामितीय प्रिंटों से प्रेरित पैटर्न बने होते हैं, जो कोलम अथवा रंगोली कहलाते हैं। साड़ियों पर ये प्रिंट सामान्य तकनीक ‘टाई एवं डाई’ से उकेरे जाते हैं। आमतौर पर चुंगिदी साड़ियां लाल, काले, नीले एवं बैगनी रंगों में उपलब्ध होती हैं। यह साड़ी मछुआरा स्टाइल में पहनी जाती है। चुंगिदी साड़ियांे का बाॅर्डर अमूमन साड़ी के मुख्य रंगी के विपरीत होता है। इससे इसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। वहीं सनगुदी लंबी साड़ियां होती हैं। सदियों से यह इस इलाके की महिलाओं के आकर्षण का केंद्र रही हैं।
ये साड़ियों पर्यावरण अनुकूल होती हैं। इन्हें रंगने वाले रंग पेड़ों की पŸिायों से बनाए जाते हैं। ये साड़ियां सूती धागों से बनाई जाती हैं। साड़ी के मुख्य भाग पर छोटे बिंदुओं को उकेरा जाता है। इन साड़ियों के बाॅर्डर पर बेहद महीन कढ़ाई की जाती है। चुंगिदी साड़ियांे की भांति, इनका बाॅर्डर भी अमूमन साड़ी के मुख्य रंगी के विपरीत होता है किंतु इनका हल्का एवं पतला कपड़ा ही इन्हें चुंगिदी साड़ियांे से भिन्न बनाता है। इन विषेषताओं के कारण ही महिलाओं को ये साड़ियां गर्मियों में पहनना बेहद भाता है। सनगुदी साड़ियां घर पर आसानी से धो सकते हैं। इनका रखरखाव भी बहुत आसान होता है। 

गडवाल साड़ियां
कहांः आंध्र प्रदेष

 बेहद आकर्षक इन साड़ियांे की उत्पŸिा आंध्र प्रदेष में हुई थी। इस राज्य की महिलाएं इन साड़ियों को विषेष तौर पर पोंगल के दौरान पहनती हैं। ये साड़ियां सूती धागों से बुनी जाती हैं तथा इसका रेषमी बाॅर्डर होता है। इन बाॅर्डर पर सुनहरे धागों से कढ़ाई की जाती है तथा विभिन्न प्रकार से अलंकृत होती है। अमूमन इस साड़ी का मुख्य रंग और बाॅर्डर का रंग एक दूसरे के विपरीत होता है। रोचक बात यह है कि ये साड़ियों बेहद हल्की और मुलायम होती हैं। ये साड़ियां तह करके माचिस की डिब्बी में भी रखी जा सकती है। इन साड़ियों को चमकीले रंगों में बनाया जाता है। किंतु पारंपरिक रूप से महिलाएं रंगीन बाॅर्डर वाली, सफेद रंगी की रेषमी साड़ी पहनना पसंद करती हैं। इन पर आम, मोर इत्यादि की आकृतियां बनी होती हैं।

मंगलगिरी सूती एवं रेषमी साड़ियां
कहांःआंध्र प्रदेष

समृद्ध संस्कृति एवं वस्त्रों का संकेत देती आंध्र प्रदेष की मंगलगिरी सूती एवं रेषमी साड़ियांे की उत्पŸिा इन्हीं नाम से लोकप्रिय कस्बों में हुई है। ये साड़ियां एक ही प्रकार के रंगों के पैटर्न पर बनाई जाती हैं, जिनका बाॅर्डर ज़री की कढ़ाई से सुसज्जित होता है। हाथ बुनी सूती साड़ियां बहुत मुलायम होती हैं। पारंपरिक रूप से इन साड़ियों में निज़ाम बाॅर्डर बनाया जाता है, जो तत्कालीन नवाबों के षासनकाल की यादें ताज़ा कर देते हैं।पोंगल के दौरान महिलाएं मंगलगिरी रेषमी साड़ियों को भी बड़े चाव से पहनती हैं। ये साड़ियों मंगलगिरी पट्टू भी कहलाती हैं, जो लाल, गुलाबी, पीले एवं हरे रंग में उपलब्ध होती हैं। इन साड़ियों का पल्लू ज़री की कढ़ाई से भरा पड़ा होता है। इन पर फूल, बेलें, चैकोर खाने बने होते हैं। वर्तमान में, इन साड़ियों के लिए कलमकारी तकनीक का भी उपयोग होने लगा है जो आकर्षक डिज़ाइन के लिए पहचानी जाती है।

कुप्पादम साड़ियां
कहांः आंध्र प्रदेष

बेहद आकर्षक एवं समृद्ध दिखने वाली कुप्पादम साड़ियां आंध्र प्रदेष में बहुत लोकप्रिय हैं। पोंगल के दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सांे में महिलाएं इन साड़ियों को बड़े चाव से पहनती हैं। ये साड़ियां अपने चमकीले रंगों एवं उन पर उकेरे गए डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध हैं।