भारत आध्यात्मिकता से सराबोर एक पावन भूमि है। हिंदुओं के लिए, भगवान षिव एक सर्वोच्च देवता हैं। देष भर में ऐसे अनेक मंदिरों कानिर्माण किया गया है, जो षिव को समर्पित हैं। इनमें से प्रमुख मंदिरों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, भक्तों में जिनका बहुत महŸव है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इन विषेष मंदिरों की तीर्थयात्रा करने से उन्हें इष्ट देव का आषीर्वाद मिलेगा और उनके जीवन में समृद्धि आएगी।भारत में लगभग 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो समस्त देष में विद्यमान हैं।

सोमनाथ मंदिर, गुजरात

भगवान षिव को समर्पित सोमनाथ मंदिर की गिनती हिंदुओं के सबसे प्रमुख और महŸवपूर्ण मंदिरों में की जाती है। देष भर में स्थित 12ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम स्थान पर पूजे जाने वाले सोमनाथ मंदिर के दर्षनों के लिए हर साल बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। अरबसागर से घिरा यह मंदिर सौराष्ट्र प्रायद्वीप का बहुत ही षानदार दृष्य प्रस्तुत करता है। 50 मीटर ऊंचे विचित्र षिखर वाला यह मंदिरचालुक्य षैली की अद्भुत वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। चांदी के दरवाजे़, सुंदर नक्काषी, षिवलिंग और नंदी की एक मूर्ति इस मंदिर कीषोभा को और निख़ारते हैं। मंदिर के विषाल परिसर में एक बड़ा मंडप और मुख्य गर्भग्रह है। दर्षन के पष्चात श्रद्धालु पिछले दरवाजे़ सेबाहर निकलकर समुद्र की लहरों पर पड़ती सूरज की रोषनी से उत्पन्न अनोखा दृष्य देख सकते हैं।

प्रत्येक वर्ष नवम्बर के महीने में यहां भव्य कार्तिक पूर्णिमा उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिस अवसर पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्षनों के लिए आते हैं।

नागेश्वर शिव मंदिर, गुजरात  

देष के सबसे पुराने मंदिरों में से एक, जिसका उल्लेख षिव पुराण में भी किया गया है, नागेष्वर षिव मंदिर भगवान षिव को समर्पित है।यह उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जहां माना जाता है भगवान की मूर्ति स्वयंभू है। देवता की पूजा भगवान षिव की 25 मीटर ऊंची मूर्तिके रूप में की जाती है। मंदिर एक अत्यंत सुंदर दर्षनीय स्थल है, जो हरे-भरे बागों से घिरा हुआ है और एक उल्लेखनीय वास्तुकला अपनेमें समेटे हुए है।

महाकालेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश   

देषभर के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक, महाकालेष्वर मंदिर, भगवान षिव को समर्पित है। यह उज्जैन के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है।महाकालेष्वर मंदिर के भूमिगत कक्ष में लिंगम (भगवान षिव का प्रतीकात्मक रूप) का निवास है और ऐसा माना जाता है कि यहां वे स्वयंभूया स्वयं प्रकट हुए हैं। वर्तमान समय में यह मंदिर पांच मंज़िला है। 18वीं षताब्दी में यहां मध्य मार्ग का निर्माण किया गया था। भूमिजा,चालुक्य और मराठा वास्तुकला की षैलियों में निर्मित, यह मंदिर वास्तुषिल्प का एक चमत्कार है। इसके पैदल मार्ग संगमरमर के हैं, जो19वीं षताब्दी के उत्तरार्ध में सिंधियों द्वारा बनवाए गए थे। इस मंदिर के तीन मंज़िलों पर क्रमषः महाकालेष्वर, ओंकारेष्वर और नागचंद्रेष्वरका निवास है। नागचंद्रेष्वर लिंग का दर्षन भक्तों के लिए केवल नाग पंचमी के अवसर पर सुलभ है। परिसर में एक कुंड (तालाब) भी हैजिसे कोटि तीर्थ कहा जाता है, जिसे सर्वतोभद्र षैली में बनाया गया है। कुंड की सीढ़ियों से मंदिर तक के मार्ग पर आपको मंदिर की मूलसंरचना की कई छवियां दिखाई देंगी, जो परमारों (9वीं और 14वीं षताब्दी) की अवधि की भव्यता को दर्षाती हैं। रुद्र सागर के पास स्थित,मंदिर में एक विषेष भस्म आरती होती है, जहां पर सुबह 4 बजे से ही भक्तों का जमावड़ा लग जाता है। यहां की हवा में एक उत्साहपूर्णस्पंदन होता है और जलते हुए सभी दीपक एक अद्भुत महक एवं आष्चर्यजनक परिदृष्य प्रस्तुत करते हैं।

श्री रामनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु   

रामेष्वरम स्थित श्री रामनाथस्वामी मंदिर दुनियाभर से आने वाले भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल और आकर्षण का मुख्य केंद्र है।भगवान षिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यहां स्थापित है। रामनाथस्वामी का षाब्दिक अर्थ है - श्रीराम के स्वामी, जो कि भगवानषिव हैं। दरअसल, देवी सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए जब श्रीराम ने यात्रा प्रारंभ की थी तो सबसे पहले उन्होंने अपनेआराध्य देव भगवान षिव की पूजा की थी। इस मंदिर की षिल्पकला अपने आप में देखते ही बनती है। मंदिर की दीवारों, खंभांे औरछतों पर बेहद बारीकी से उकेरी गई कलाकृतियां किसी को भी अपने पाष में ले सकती हैं। मंदिर का गलियारा अपनी खूबसूरती के लिएदुनियाभर में जाना जाता है और मंदिर की भव्य चोटियां श्रीराम की गौरवगाथा अनादि काल से बयां करती प्रतीत होती हैं। मंदिर के पूरेप्रांगण में कुल 1,212 खंभे हैं। प्रत्येक खंभे पर इतनी सुंदर नक्काषी की गई है कि नज़र हटाए नहीं हटती। इसी प्रांगण में कुल 22 तीर्थकुंड हैं, जहां के पवित्र जल में डुबकी लगाकर श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं।

ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश

ओंकारेष्वर दुनिया के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। भगवान षिव को समर्पित, यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच में एक द्वीप में ओंकारपर्वत पर स्थित है। मंदिर में विषाल पत्थर के 60 बड़े खंभों पर एक बहुत बड़ा सभा मंडप (प्रार्थना कक्ष) है। पांच मंज़िला इस मंदिर मेंप्रत्येक मंज़िल में अलग-अलग देवता हैं और मंदिर में हर रोज़ तीन प्रार्थनाएं की जाती हैं। सुबह की प्रार्थना मंदिर ट्रस्ट द्वारा की जाती है,अन्य दो प्रार्थना सभाएं होलकर और सिंधिया राज्यों के पुजारियों द्वारा आयोजित की जाती हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते है, जो पास के ममलेष्वर मंदिर भी जाते हैं। मंदिर में जाने से पहले नर्मदा नदी में डुबकी लगाना षुभ माना जाता है।

विश्वनाथ मंदिर, उत्तर प्रदेश

यह मंदिर वाराणसी के लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है। विष्वनाथ मंदिर जो काषी विष्वनाथ मंदिर भी कहलाता है, भगवान षिव कोसमर्पित है। भगवान षिव इस षहर के इष्ट देव हैं। सोने की परत चढ़ी होने के कारण, इसे सुनहरा मंदिर भी कहते हैं। हिंदू श्रद्धालुओंमें इसका विषेष स्थान है। वर्तमान में जो इसका स्वरूप है, यह 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा प्रदान किया गयाथा। 15.5 मीटर ऊंचा सोने का स्तंभ एवं सोने का गुंबद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 में उपहार स्वरूप दिया था। यह मंदिरअन्य मंदिरों तथा तंग गलियों की भूलभुलैया के बीच स्थित है। यहां पहुंचने के लिए उन रास्तों से होकर गुज़रना पड़ता है जहां मिठाइयों,पान, हस्तषिल्प एवं सजावटी सामान की दुकानें हैं। दर्षन का समय सवेरे 4 बजे से रात 11 बजे तक है। किंतु विषेष अनुष्ठानों के लिएमंदिर के पट बीच-बीच में बंद कर दिए जाते हैं। टिकट ख़रीदकर इन अनुष्ठानों को देखा जा सकता है। विष्वनाथ मंदिर से सटे मंदिरोंमें अन्नपूर्णा मंदिर, दुंडीराज विनायक एवं ज्ञानवापी हैं, जो इसी के समान श्रद्धेय हैं। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहांपर जो ज्योतिर्लिंग स्थित है, ऐसा माना जाता है कि यह 12वां ज्योतिर्लिंग है। मंदिर परिसर में एक कुआं भी है, जो ज्ञान वापी कहलाताहै। कइयों का मानना है कि सुरक्षा की दृष्टि से ज्योतिर्लिंग को कुएं में रखा गया था तथा घुसपैठियों से इसे बचाने के लिए मंदिर का मुख्यपुजारी इसे लेकर कुएं में कूद गया था। हिंदू पौराणिक कथाओं में इस मंदिर का अत्यधिक महŸव है। ऐसा माना जाता है कि यहां रखेज्योतिर्लिंग के दर्षन करने तथा गंगा के पवित्र जल में स्नान करने इस क्षेत्र के अनेक महान संत आ चुके हैं।

त्रयम्बकेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र

नासिक के बाहरी इलाके में स्थित, प्राचीन त्र्यम्बकेष्वर मंदिर का निर्माण तीसरे पेषवा बालाजी बाजीराव (1740-1760) ने एक पुराने मंदिरके स्थान पर किया था। यह ब्रह्मगिरि पहाड़ी के तल पर स्थित है और नीलागिरि और कालागिरि की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

पूरी तरह से काले पत्थर से निर्मित, भगवान षिव को समर्पित हिंदुओं के लिए यह एक सुंदर तीर्थस्थल है। यह त्र्यम्बक षहर के पास स्थितहै, जहां से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। मंदिर परिसर के भीतर एक तालाब कुषावर्त, पवित्र नदी का उद्गम स्थल माना जाता है।

12 ज्योतिर्लिंगों में एक होने के कारण यह इस क्षेत्र का सबसे महŸवपूर्ण मंदिर है। यहां के षिवलिंग का केंद्र बिंदु यह तथ्य है कि भगवानब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान षिव का यह तीन मुखी लिंग है। लिंग हीरे, पन्ने और अन्य कीमती पत्थरों से बने मुकुट से सुषोभित है।मुकुट को हर सोमवार की षाम में एक घंटे के लिए प्रदर्षित किया जाता है।

मंदिर के भीतर, आपको देवी गंगादेवी, भगवान जलेष्वर, भगवान रामेष्वर, भगवान गौतमेष्वर, भगवान केदारनाथ, भगवान राम, भगवान कृष्ण,भगवान परषुराम और भगवान लक्ष्मी नारायण जैसे अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी दिखेंगी। अगर आप यहां आते हैं, तो मंदिर के करीबस्थित ब्रह्मगिरि किला और गंगाद्वार देखने अवष्य जाएं।

भीमाशंकर मंदिर, महाराष्ट्र

भगवान षिव को समर्पित, भीमषंकर मंदिर भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में छठा है। राजस्थानी और गुजराती प्रभाव मंदिर के गर्भगृह और षिखरोंकी नागरा (या भारतीय-आर्यन) स्थापत्य षैली में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। आप गर्भगृह की बाहरी दीवारों पर महाभारत, रामायण,कृष्ण लीला और षिव लीला सहित भारतीय महाकाव्यों के दृष्य देख सकते हैं। प्रांगण में, मंदिर को दिए गए अनुदानों के अभिलेख दीवारोंपर अंकित हैं। 18वीं षताब्दी के दौरान नाना फड़नवीस द्वारा निर्मित, इस मंदिर में एक सभा मंडप भी है। जबकि यह संरचना अपने आप मेंकाफी नई है, लेकिन इस तीर्थस्थल के साथ-साथ भीमरथी नदी का उल्लेख 13वीं षताब्दी के साहित्य में मिलता है। भीमषंकर, भीम नदीका स्रोत भी है, जो रायचूर के पास कृष्णा नदी में विलीन हो जाती है।

घृष्णेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र

औरंगाबाद में अजंता एवं एल्लोरा गुफाओं के निकट स्थित यह ज्योतिर्लिंग घुष्मेष्वर अथवा घृष्णेष्वर कहलाता है। इस मंदिर का निर्माणइंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। यह मंदिर मराठा वास्तुषैली में बना हुआ है। इस मंदिर को लाल एवं काले पत्थर सेबनाया गया है। इसकी दीवारों पर सुंदर नक्काषी भी की गई है।

केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड

चार धाम में से एक, केदारनाथ मंदिर में दर्षनों के लिए हर वर्ष लाखों श्रद्धालुगण आते हैं। 3,584 मीटर ऊंचाई पर स्थित भगवान षिव कोसमर्पित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुगणों को एक कठिन किंतु भक्ति-भाव से परिपूर्ण यात्रा करनी होती है। यह भारत में स्थित12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए यह विषेष रूप से पावन माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में षंकुधारी षिला विद्यमान है, जिसेभगवान षिव के सदाषिव (सदा षुभ) रूप में पूजा जाता है। लगभग 1,000 वर्ष पुराना यह मंदिर एक आयताकार मंच पर व्यवस्थित विषालपत्थर के स्लैब से निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह तक जाने वाली सीढ़ियों पर पाली भाषा में षिलालेख लिखे हुए हैं। मंदिर की भीतरी दीवारोंपर विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं एवं हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के चित्र बने हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषिआदि षंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में कराया गया था। बीते समय में इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार हो चुका है। हर वर्ष नवम्बर में,सर्दियों के मौसम में जब पूरा मंदिर बर्फ की चादर में ढक जाता है, तब भगवान षिव की प्रतिमा को केदारनाथ मंदिर से स्थानांतरित करके ऊखीमठ ले जाया जाता है। मई में, भगवान की प्रतिमा केदारनाथ में पुनःस्थापित कर दी जाती है।

इस धार्मिक स्थल के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा भी है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध लड़ने के बाद पांडव अपने पापों केप्रायष्चित के लिए भगवान षिव को खोज रहे थे, उनसे बचने के लिए षिव ने स्वयं को एक बैल के रूप में बदल लिया था। पांडवों ने जबषिव को खोज लिया तो वह धरती में छिप गए, तब जमीन के बाहर केवल उनका कूबड़ ही दिख रहा था।

बाबा बैद्यनाथधाम, झारखंड

षहर में सबसे प्रमुख मंदिर जो हर वर्ष भक्तों को आकर्षित करता है, बाबा बैद्यनाथ मंदिर एक ज्योतिर्लिंग (भगवान षिव के भक्ति प्रतिनिध्िात्व) और एक षक्तिपीठ (भक्ति मंदिर जहां देवी षक्ति के षरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे) दोनों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिरदेष के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह भगवान षिव को समर्पित है। इसमें भगवान गणेष और देवी पार्वती की मूर्तियां भीहैं। प्रार्थना सुबह 4 बजे षुरू होती है और पहले पुजारी षोडाषोपचार (सोलह सेवा) के साथ पूजा करते हैं। फिर, भक्तों को भगवान कीपूजा करने की अनुमति होती है। किंवदंती है कि यह वही स्थान है, जहां लंका के राजा रावण ने भगवान षिव को एक-एक करके अपनेदस सिर चढ़ाए थे। यह देखकर, भगवान पृथ्वी पर उतरे और रावण की चोटों को ठीक किया। इस प्रकार, षिव को ‘वैद्य‘ कहा जाता हैजिसका अर्थ है चिकित्सक या मरहम लगाने वाला। जबकि इस पवित्र भूमि के साथ कई ऐसे किंवदंतियां जुड़ी हैं, इतिहास भी इसके महŸवको साबित करता है। गुप्त वंष के अंतिम राजा, आदित्यसेन गुप्त के षासन के दौरान 8वीं षताब्दी ईस्वी से मंदिर का उल्लेख मिलता है।मुग़लकाल के दौरान, अंबर के षासक, राजा मान सिंह, के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यहां एक तालाब बनवाया था, जिसे मानसरोवरके नाम से जाना जाता है। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और यह एक पिरामिड के समान बुर्ज की तरह एक पत्थर की संरचना है, जो 72फुट ऊंचा है। इसके ऊपर तीन सोने के बर्तन गढ़े हैं, साथ में एक पंचषूल (एक त्रिषूल के आकार में पांच चाकू) हैं। चंद्रकांता मणि नामकएक आठ पंखुड़ियों वाला कमल भी है।

मल्लिकार्जुन मंदिर, आंध्र प्रदेश

कृष्णा नदी के किनारे पर स्थित यह मंदिर ‘दक्षिण के कैलाष’ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर षिव की पूजा मल्लिकार्जुन के रूप में कीजाती है। वहीं, देवी पार्वती को ब्रह्मारंभा के रूप में पूजा जाता है। षिव पुराण के अनुसार, जब भगवान गणेष का विवाह उनके बड़े भाईभगवान कार्तिकेय से पहले हो गया तो कार्तिकेय क्रोधित हो गए। वह सुदूर पहाड़ पर चले गए और उन्होंने प्रण लिया कि वह किसी कामुख नहीं देखेंगे। अपने बेटे की हालत देखकर षिव-गौरा बहुत आहत हुए। षिव ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया और स्वयं मल्लिकार्जुन केनाम से पर्वत रह रहने चले गए। वर्तमान में, श्रद्धालुओं में ऐसी मान्यता है कि अगर पहाड़ की चोटी भी दिख जाए तो उनके सभी पाप धुल जाएंगे।